देवी भक्त राजा पुरंजय की कथा जिसने दैत्यों के साथ युद्ध में देवराज इंद्र को अपना वाहन बनाया था

पूर्व समय की बात है इक्ष्वाकु अयोध्या के राजा थे । राजा इक्ष्वाकु को सूर्यवंश का प्रवर्तक माना जाता है । वंश की वृद्धि के लिए राजा इक्ष्वाकु ने भगवती जगदंबा की बहुत ही कठिन तपस्या की थी । देवर्षि नारद राजा इक्ष्वाकु के उपदेशक थे । नारद जी ने राजा को भगवती जगदंबा के मंत्र की दीक्षा दी थी । इक्ष्वाकु के 100 पुत्र थे, उनमें से 50 पुत्रों को उन्होंने उत्तर देश का अधिकार सौंप दिया और बाकी बचे 48 पुत्रों को उन्होंने दक्षिण देश में राज्य भार संभालने के लिए भेजा । उनके बाकी दो पुत्र उनकी सेवा के लिए उनके साथ ही रहने लगे ।

इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षी हुए, यही विकुक्षी शशाद नाम से विख्यात हुए । राजा इक्ष्वाकु की मृत्यु के बाद अयोध्या का राज्यभार राजकुमार शशाद के हाथ में आगया । इन राजा शशाद ने सरयू नदी के तट पर बहुत सारे यज्ञ करवाए थे । शशाद के पुत्र का नाम कुकुत्स्य था , कुकुत्स्य भगवती जगदंबा के परम उपासक थे । अपना बहुत सा समय भगवती जगदंबा की आराधना में लगाते थे, महाराज शशाद का स्वर्गवास हो जाने के बाद अयोध्या का राज्यभर कुकुत्स्य के हाथ में आगया । कुकुत्स्य ने अपने पिता और पितामह के राज्य पर बलपूर्वक शासन किया था ।

इसी समय की बात है देवताओं और दैत्यों में घोर युद्ध हुआ । उस युद्ध में सारे देवता दैत्यों से परास्त हो गए और राज्य हीन गए । तब सहायता मांगने के लिए सारे देवता भगवान विष्णु के पास गए । उस समय भगवान विष्णु शेष की शैया पर सो रहे थे । देवताओं को अपने पास आए हुए देखकर भगवान विष्णु ने पूछा, देवताओं आप लोगों का यहां पर किस कारणवश आना हुआ है । विष्णु जी की बात सुनकर देवता बोले, प्रभु इस संसार में आपसे कोई बात छिपी नहीं है । दैत्यों ने हमें युद्ध में परास्त कर दिया है । इसी कारणवश सहायता मांगने के लिए हम आपके पास आए हैं । अब आप ही इन दैत्यों से हमारा खोया हुआ राज्य प्राप्ति करने में हमारी सहायता कीजिए ।

देवताओं की बातें सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराए और कहने लगे, देवताओं तुम लोगों को अयोध्या के राजा कुकुत्स्य को अपना मित्र बनाने का प्रयत्न करना चाहिए । राजा कुकुत्स्य, शशाद के पुत्र है, भगवती जगदंबा की कृपा से इन्हें अतुलनीय शक्ति प्राप्त है । ये आदि शक्ति जगदंबा के परम भक्त है, अयोध्या नरेश कुकुत्स्य बहुत ही धर्मात्मा पुरुष है । इसीलिए यही तुम्हे दैत्यों को परास्त करने में तुम्हारी सहायता करेंगे । तुम लोग अभी इनके पास जाओ और इनसे मित्रता करके इनकी सहायता लो । भगवान विष्णु जी आज्ञा पाकर सारे देवता अयोध्या पहुंचे ।

देवताओं को अपने पास आए हुए देखकर राजा कुकुत्स्य ने बड़ी सावधानी से उन सब का स्वागत किया । राजा ने बड़े ही आदर के साथ सभी देवताओं को अपने आगमन का कारण पूछा । राजा ने कहा, देवताओं आज मैं धन्य होगया मैं मेरे जीवन को सफल समझता हूं, क्योंकि आप सब लोगों ने अपने दुर्लभ दर्शन कराया । अब आप लोग मुझे मेरे कर्तव्य के बारे में बताने की कृपा करें, जो कार्य साधारण मनुष्य के लिए दुर्लभ समझा जाता है, भगवती जगदंबा की कृपा से मेरे लिए वह बहुत ही सरल है । इसीलिए आपका जो भी कार्य हो वह मुझे बताने की कृपा कीजिए । भगवती जगदंबा की दी हुई शक्ति के बल पर मैं उसे अवश्य ही पूरा कर दूंगा ।

अयोध्या नरेश राजा कुकत्स्य की यह बात सुनकर सारे देवता अति प्रसन्न हो गए और कहने लगे महाराज दैत्यों के साथ हमारा घोर संग्राम हुआ । जिसमें दैत्यों ने हमें परास्त कर दिया है । सहायता के लिए हम भगवान विष्णु के पास गए, तब उन भगवान नारायण ने हमें तुम्हारे पास भेजा है । उन्होंने कहा है कि भगवती जगदंबा की कृपा से तुम्हें अतुलनीय शक्ति प्राप्त है और तुम ही दैत्यों को परास्त करके हमें हमारा राज्य वापस दिला सकते हो । इसीलिए तुम दैत्यों साथ युद्ध करके हमें हमारा राज्य वापस दिलाओ, इस समय हमारी आपसे यही विनती है ।

देवताओं की बात सुनकर राजा कुकुत्स्य ने कहा, देवताओं मैं अवश्य ही तुम्हारी सहायता करूंगा । इसी समय दैत्यों से युद्ध करने के लिए तुम लोगों के साथ चलूंगा, किंतु सफलता प्राप्त करने के लिए देवराज इंद्र को मेरा वाहन बनना पड़ेगा । कुकुत्स्य की बातें सुनकर सारे देवता देवराज इंद्र से कहने लगे, देवराज संकोच कोई कारण नहीं है, आपको दैत्यों को परास्त करने के लिए इन महाराज कुकुत्स्य का वाहन बनने के लिए तैयार हो जाना चाहिए । पहले तो देवराज लजाये , किंतु बाद में भगवान विष्णु की प्रेरणा से महाराज कुकुत्स्य के सवारी बनने के लिए तैयार हो गए ।

देवराज इंद्र ने उसी समय एक वृषभ का रूप धारण कर लिया । ऋषभ के रूप में देवराज इंद्र ऐसे दिख रहे थे  मानो भगवान शिव के वाहन  नंदी हो । देवराज इंद्र को वृषभ रूप धारण किए हुए देख महाराज कुकुत्स्य उसी समय उनपर सवार हुए । वृषभ रुपधारी देवराज इंद्र के कुकुद पर  बैठने के कारण इन महाराज का नाम कुकुत्स्य पड़ा और देवताओं के राजा इंद्र को अपना वाहन बनाने के कारण  इन्हें  संसार में  इंद्रवाह कहा गया । उसी समय राजा वृषभरूप इंद्र पर सवार होकर युद्ध करने के लिए चले गए ।

उसके बाद देवता और दैत्यों में फिर से घोर संग्राम हुआ । उस संग्राम में राजा कुकुत्स्य ने बहुत पराक्रम के साथ दैत्यों को हराने में देवताओं की सहायता की । यह सब भगवती जगदंबा की अतुलनीय शक्ति के प्रभाव का ही फल था ।  दैत्यों को परास्त करने के बाद देवताओं को बड़ी प्रसन्नता हुई । सारे देवता महाराज कुकुत्स्य की प्रशंसा करने लगे और भगवती जगदंबा के प्रति उनकी अपार श्रद्धा को देखकर उनके सामने नतमस्तक भी हुए । दैत्यों को पराजय करने के कारण महाराज कुकुत्स्य को पुरंजय की उपाधि प्राप्त हुई ।

इस तरह अयोध्या नरेश कुकुत्स्य ने दैत्यों को पराजय करने में देवराज इंद्र को अपना वाहन बनाया था । इसी कारण उनका नाम इंद्रवाह पड़ा था और वह पुरंजय भी कह लाए थे । भगवती जगदंबा द्वारा प्रदान की हुई अतुलनीय शक्ति के प्रभाव से ही महाराज पुरंजय ये कार्य करने में समर्थ हुए थे ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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