
द्वारिका में सत्राजित नाम का एक भोजवंशी राजा रहता था जो भगवान सूर्यनारायण का परम भक्त था । उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्यनारायण ने उसे अपना लोक दिखाया था और सम्यन्तक नाम की एक मणि उसे दी थी । जब सत्राजित इस मणि को अपने गले में धारण करके आ रहा था , तब द्वारिका वासी भगवान द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के सामने आकर यूँ कहने लगे , प्रभु लगता है सूर्यनारायण आपसे मिलने आ रहे हैं । यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण हंसने लगे और कहा , बच्चों यह सूर्यनारायण नहीं है, यह तो सूर्यनारायण की दी हुई सम्यन्तक मणि को धारण करने वाला सत्राजित आ रहा है । सत्राजित की है सम्यन्तक मणि हर दिन 8 मण सोना देती थी , जिससे वह बहुत धनवान और कीर्तिमान बन गया था ।
एक बार सत्राजित का भाई प्रसेनजीत , इस सम्यन्तक मणि को अपने गले में धारण करके शिकार खेलने के बहाने जंगल में गया । वहां उसने कई प्राणियों का शिकार किया , तत्पश्चात एक सिंह ने प्रसनजीत की हत्या कर दी और मणि लेकर वह एक गुफा के पास गया । यह गुफा श्री रामभक्त जम्बुवन्त की थी , जाम्बवन्त ने उस सिंह को मारकर मणि उसके पास से ले ली और अपने पुत्र को खेलने के लिए दे दी ।
इधर द्वारिका में यह किंवदंती फैल गयी की हो ना हो श्री कृष्ण ने ही प्रसनजीत को मारकर मणि अपने पास रख ली है । अपने ऊपर इस लगे हुए इस कलंक को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण , अपने कुछ सैनिकों और द्वारिका वासियों के साथ प्रसनजीत को ढूंढने के लिए जंगल में गए । बहुत दूर जाने के बाद वहां उन्हें प्रसनजीत का शरीर मिला और पास ही सिंह के पंजों के निशान मिले । श्री कृष्ण उन पंजों के निशानों का पीछा करते-करते उस गुफा तक चले गए जहां जम्बुवन्त ने सिंह का वध करके मणि ले ली थी ।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने सैनिकों और साथ आए हुए द्वारिका वासियों से कहा कि , तुम लोग यहीं पर गुफा के बाहर खड़े रहो , मैं अंदर जा कर यह पता लगाता हूं कि मणि है या नहीं । फिर तो सैनिक और द्वारिका वासी भगवान श्री कृष्ण के कहने पर वही गुफा के बाहर रह गए और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अंदर चले गए । अंदर जाकर उन्होंने देखा कि एक बालक अपने हाथ में सम्यन्तक मणि लेकर खेल रहा है , भगवान श्री कृष्ण ने उसके हाथ से वह मणि लेनी चाहि लेकिन वह बालक चिल्ला उठा । बालक की चीख सुनकर जम्बुवन्त बाहर आया । इसके बाद श्री कृष्ण और जामवंत के बीच मणि के लियर युद्ध शुरू हो गया ।
गुफा के बाहर खड़े सैनिक और द्वारिका वासियों ने 12 दिन तक भगवान श्री कृष्ण के आने की प्रतीक्षा कि । जब वे नहीं आए तो वह सब द्वारिका वापस चले गए और वसुदेव जी को यह बात कह सुनाई । अपना पुत्र गुफा से बाहर नहीं आया यह सुनकर वसुदेव जी को बहुत ही दुख हुआ अपने पुत्र को फिर से पाने के लिए देवर्षि नारद के सुझाव पर वसुदेव जी ने अंबा यज्ञ आरंभ कर दिया ।
इधर गुफा में श्री कृष्ण और जम्बुवन्त दोनों का युद्ध कई दिन तक चला । भगवान श्री कृष्ण को जम्बुवन्त बराबर की टक्कर दे रहा था । तत्पश्चात भगवान ने जम्बुवन्त के छाती पर एक मुक्का मारा और जम्बुवन्त नीचे गिर गया । श्री कृष्ण की शक्ति को देखो जम्बुवन्त यह पता चल गया कि यह वही भगवान श्रीराम हैं जिन्होंने त्रेता युग में रावण का अंत किया था और जिनके से समुद्र भी भयभीत हो गया था । तब जम्बुवन्त ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम कर अपनी हार स्वीकार कर ली और उनसे क्षमा भी मांगली ।जम्बुवन्त ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की थी वह उनकी पुत्री जम्बुवंती से विवाह कर ले । श्री कृष्ण तुरंत ही इस बात को मान गए और जम्बुवंती को लेकर ठीक उसी दिन अपने घर वापस आए जिस दिन वसुदेव जी ने अंबानी की पूर्ति की ।
इस तरह जम्बुवन्त की पुत्री जम्बुवंती भगवान श्री कृष्ण की पत्नी हुई ।
Categories: श्री कृष्ण की कथाएँ
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