वैवस्वत मनु के कुल में रेवत नाम के एक राजा हुए । शत्रुओंको परास्त करनेवाले रेवत ने समुद्र के मध्य एक सुंदर नगरी का निर्माण करवाया था । उस नगरी का नाम कुशस्थली था, उसी नगर में रहकर रेवत अपने राज्य का कार्य संभालते । रेवत के सौ पुत्र थे, जो उनके समान ही पराक्रमी और शक्तिशाली थे । राजा रेवत की एक अति सुंदर और शुभ लक्षणों से सम्पन्न पुत्री थी, जिसका नाम रेवती था ।
जब राजकुमारी विवाह के योग्य हो गई तो महाराज रेवत किसी कुलीन राजकुमार के विषय में विचार करने लगे । वह मन ही मन सोचने लगे यह कन्या किसके लिए योग्य होगी । अच्छा तो यही होता कि मैं सृष्टिकर्ता प्रजापिता ब्रह्मा जी के पास जाकर, उनको ही मेरी पुत्री के लिए योग्य वर के बारे में पूछ लेता । इस प्रकार विचार करके राजा रेवत अपनी पुत्री रेवती को साथ लेकर तुरंत ही ब्रह्मलोक को चले गए । उस समय ब्रह्मलोक में सारे देवता गंधर्व किन्नर यक्ष और नाग उपस्थित थे । सभी ऋषिगण ,सिद्ध ,चारण सब के सब हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी की स्तुति कर रहे थे ।
जिस समय राजा रेवत अपनी पुत्री रेवती को साथ लेकर ब्रह्मलोक गए थे ,वहां पर गंधवों का संगीत चल रहा था । सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जगन्माता सरस्वती के साथ वहां उपस्थित होकर वह संगीत सुन रहे थे । वहां पर संगीत चलते हुए देखकर राजा रेवत कुछ देर तक वहीं रुक गए । जब संगीत समाप्त हुआ तो राजा रेवत ब्रह्माजी के सामने गए और हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए । राजा रेवत ने अति विनाय के साथ ब्रह्मा जी को अपनी पुत्री रेवती को दिखा कर कहा, प्रभु मेरी पुत्री विवाह के योग्य हो गई है । मैं इस के योग्य वर के बारे में पूछने के लिए आपके सामने आया हूं । इसीलिए आप कृपा कर मुझे यह बता दीजिए कि अपनी पुत्री का विवाह में किसके साथ करू । मैंने बहुत सारे राजकुमार इसके लिए देखें किंतु कोई भी मेरे मन को नहीं भाया । आप किसी ऐसे राजकुमार के बारे में मुझे बताइए जो कुलीन हो और सारे शुभ लक्षणों से संपन्न हो और मेरी पुत्री का अच्छे से ख्याल रख सके ।
राजा रेवत की बातें सुनकर ब्रह्माजी मुस्कुराए और कहने लगे, रेवत जिन राजकुमारों को तुमने देखा है वह सभी अब जीवित नहीं है । वे क्या उनके बहुत सारी पीढ़ियों का अंत हो गया, उसका कारण यह है कि जितनी देर तुमने मेरे इस ब्रह्मलोक में बिताया है उतने में पृथ्वी पर 108 युग बीत गए हैं । ब्रह्मलोक और पृथ्वी लोक में समय की गति अलग-अलग है, इस समय पृथ्वी पर अट्ठाविसवा द्वापर युग चल रहा है । तुमने जो नगरी बसाई थी वह अब राक्षसों द्वारा ध्वंस हो गई है । राक्षसों ने तुम्हारे कुल के संबंधियों कर हरादिया और तुम्हारे सारे नगरवासी डर कर इधर-उधर भाग गए । इस समय वह नगरी मथुरा नाम से विख्यात है ।
उस मथुरा नाम की नगरी के राजा शूरसेन का पुत्र कंस था । उसी कंस को भगवान नारायण के अवतार श्री कृष्ण ने मार दिया । कंस ने श्री कृष्ण के माता-पिता देवकी और वसुदेव जी को कारागार में डाल रखा था । कंस के मरने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने माता-पिता को कारागार से छुड़वाया और राजा शूरसेन, जो कंस के पिता थे उन्हें फिर से राजगद्दी पर बैठा दिया । कंसके ससुर का नाम जरासंध था उसने भगवान श्रीकृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा नगरी पर कई बार आक्रमण किया, किंतु हर बार श्री कृष्ण द्वारा परास्त होकर भाग गया । तब उसने कालयवन नाम के एक म्लेच्छ को श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए भेजा । तब श्रीकृष्ण ने अपने नगरवासियों के साथ मथुरा नगरी त्याग दी । राजा मुचकुंद द्वारा कालयवन का अंत किया और वह स्वयं द्वारका में जाकर बस गए ।
द्वारका तुम्हारे द्वारा समुद्र के मध्य में बनाया गया वहीं नगर है । वह भी टूट कर बिखर गया था भगवान श्री कृष्ण ने शिल्पियोंद्वारा उसका जीर्णोद्धार कराया है और वे श्रीकृष्ण अब वही पर रह रहे हैं । रेवंत भगवान श्री कृष्ण का अवतार पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए ही हुआ है । मथुरा त्यगनेके बाद भगवान श्रीकृष्ण अब द्वारका में रहकर ही अपने अवतार का कार्य करेंगे । कुछ समय बाद भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध भी कराएंगे । पांडवों और कौरवों के बीच में होनेवाले इस युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण अपने सखा अर्जुन के सारथी बनेंगे । अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार को वेदों का सार वह अद्भुत और दिव्य ज्ञान सुनाएंगे जो संसार मे भगवद्गीता के नाम से विख्यात होगा ।
ब्रह्मा जी कहते हैं, रेवत इन्हीं भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई का नाम बलराम है । बलराम जी भगवान शेषनाग के अवतार माने जाते हैं । स्वयं योगमाया ने इन्हें देवकीजी के गर्भ से निकालकर रोहिणी जी के गर्भ में स्थापित किया था , इसीलिए इनका नाम संकर्षण भी है । यह बलराम कृष्ण के बड़े भाई बहुत ही बलशाली है और सभी के मन को आनंद प्रदान करने वाले हैं इसीलिए इनका नाम बलराम रखा गया है । हल और मूसल इन बलराम के आयुध है । भगवान श्री कृष्ण ने जब त्रेतायुग में श्रीराम का अवतार धारण किया था तब यह बलराम उनके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में अवतरित हुए थे ।
ब्रह्माजी ने कहा, रेवत तुम्हारी पुत्री रेवती के लिए पृथ्वीपर इस समय इन शेषनाग के अवतार बलराम के अतिरिक्त कोई दूसरा योग्य वर नहीं है । इसीलिए तुम अभी पृथ्वीपर जाओ और अपनी पुत्री का विवाह बलराम जी से करा दो । ब्रह्माजी से आज्ञा मिलने के बाद राजा रेवत द्वारका में आए और उन्होंने ब्रह्माजी के आदेश अनुसार अपनी पुत्री का विवाह बलराम जी से करा दिया । रेवती से विवाह के पश्चात बलराम जी बहुत प्रसन्न हुए थे । पुत्री के विवाह के बाद राजा रेवत सन्यास ग्रहण करके तपस्या के लिए हिमालय को प्रस्थान कर गए । उन्होंने वहां पर भगवान नारायण की श्रद्धा पूर्वक घोर तपस्या आरंभ कर दी ।
इस तरह भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का विवाह राजा रेवत की पुत्री रेवती के साथ हुआ था ।
Categories: देवी भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ
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