
कुरुक्षेत्र के यद्ध के बाद युधिष्टिर हस्तिनापुर के राजा बन गए । धृतराष्ट्रने अठारह वर्षोतक वहीं रहकर अपना कष्टमय जीवन व्यतीत किया । एक दिन धृतराष्ट्र ने अपना शेष जिवन वन में बिताने का निर्णय लिया और अपने इस निर्णय को अर्जुन से कहा । उनोहनें युधिष्टिर से अपने पुत्रों को श्राद्ध देने के लिए कुछ धन मंगा । युधिष्टिर ने अपने भाइयों और माता से पूछकर धृतराष्ट्र को उनके पुत्रो के श्राद्ध हेतु धन दिया । भीम युधिष्टिर के इस निर्णय के विरुद्ध थे । धृतराष्ट्र नेअपने पुत्रों का श्राद्ध किया और गांधारी के साथ वन चलेगये । कुंती और विदुर भी उन दोनों के साथ वन चली गयी । वन में धृतराष्ट्र ,विदुर , गांधारी और कुंती ने एक कुटिया बनाकर वही योग के अभ्यास में लग गए । इस तरह छह वर्ष बीत गए ।
जब इसतरह धृतराष्ट्र , गांधारी , कुंती और विदुर को तपस्वी जीवन व्यतीत करते छह वर्ष बितगये , युधिष्टिर ने एकदिन अपने भाइयों से कहा मैंने स्वप्न में माता कुंती को देखा है । वे वन में है और माताका शरीर बहोत ही दुर्बल है । मेरे मन मे आता है कि मैं वन जाकर माता से मिलु । वहां पर मेरी भेंट धृतराष्ट्र , विदुर और माता गांधारी सेभी होजाएगी । यदि आपलोग मेरे साथ आना चाहे तो आ सकते हो । युधिष्टिर की बातें सु कर द्रौपदी , सुभद्रा, उत्तरा , बाकी चारों पांडव और अन्य बहुत लोग कुंती से मिलने वन गए । आश्रम जाकर सब एक दूसरे से मिले ।
विदुर को आश्रम में ना देख युधिष्टिर ने धृतराष्ट्र से उनके बारे में पूछा । धृतराष्ट्र ने कहा , विदुर गंगा के तट पर बैठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर रहे होंगे । अगले दिन जब युधिष्टिर गंगा के तट पर भ्रमण कर रहे थे , तब उन्हें वहां विदुर जी ध्यान में लीन दिखाई दिए । युधिष्टिर ने उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम किया , जैसे ही युधिष्टिर की आवाज विदुर जी के कान में पड़ी उनके मुख से एक तेज निकल कर युधिष्टिर के मुख में समगया , क्योंकि वे दोनों ही धर्मराज के अवतार थे । युधिष्टिर ने जब विदुर के शरीर को आग देना चाहा , आकाश से एक आवाज आयी की , इनके शरीर को अग्नि मत दो । विदुर एक महान पुरुष थे । युधिष्टिर बहोत दुखी होकर आश्रम गए और सबको विदुर जी के मृत्यु का समाचार सुनाया जिसे सुनकर सबको बहोत दुख हुआ ।
उस समय आश्रम पर सत्यवती पुत्र व्यास , कृपाचार्य , नारद और अन्य बहुत से मुनि युधिष्टिर से मिलने आये थे । तब कुंती ने व्यास से कहा , मैंने अपने पुत्र कर्ण को जन्म के समय ही देखा था , मेरी इच्छा है कि मैं उसे एक बार देखूं । सुभद्रा , द्रौपदी और गांधारी ने भी अपने पुत्रों से मिलने की इच्छा व्यास जी के सामने व्यक्त की । सबकी ऐसी बातें सुनकर व्यास जी ने देवी भुवनेश्वरी की स्तुति की और कुरुक्षेत्र में मारे गए राजाओं और वीरों को आश्रम वासियों के सामने प्रकट करने की प्रार्थना की ।
व्यास जी की प्रार्थना सुनकर देवी भुवनेश्वरी अति प्रसन्न हुई और उन सारे राजाओं तथा वीरों को प्रकट कर दिया जो कुरुक्षेत्र के युद्ध मे मारे गए थे । सभी लोगों ने अपने रिश्तेदारों को जी भर के देख लिया बादमे व्यास जी ने देवी की कृपा से उन सभी राजाओं और वीरों के लौटने की भी व्यवस्था कर दी । सभी पांडव और अन्य लोग व्यास जी की प्रशंसा करते है हस्तिनापुर लौट गए । इसके तिसरे दिन युधिष्टिर और पांडवों को पता चला कि वन में आग लगने के कारण , कुंती , गांधारी और धृतराष्ट्र की मृत्यु होगयी । जिसे सुनकर सभी को बहोत दुख हुआ ।
देवी भुवनेश्वरी की इस कथा को सुनकर मनुष्य के सारे पाप धुल जाते है और ऐसा मनुष्य देवी की कृपा का पात्र बन जाता है ।
Categories: देवी भागवत पुराण, महाभारत
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