राजकुमारी सुकन्या महाराज शर्याति की पुत्री थी । राजा शर्याति ने अपनी पुत्री सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि से करवाया था । च्यवन ऋषि अंधे थे और बूढ़े भी थे । सुकन्या की अपने पति के प्रति श्रद्धा देखकर अश्विनी कुमारो ने च्यवन ऋषि को युवक बना दिया था और उनकी दृष्टि भी लौटा दी थी । जिससे च्यवन ऋषि बहुत प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने दोनों अश्विनी कुमारों को यह वचन दिया था कि, उन्हें सोमरस पीने का अधिकार दिला देंगे । वैद्य होने के कारण देवराज इंद्र ने अश्विनी कुमारों को देवता होने के पश्चात भी सोमरस पान का अधिकार नहीं दिया था ।
उसी समय की बात है राजा शर्याति अपनी पुत्री से मिलने के लिए च्यवन ऋषि के आश्रम पर आए । उन्होंने देखा कि आश्रम पर एक युवक ब्राह्मण बैठा है च्यवन ऋषि कहीं भी नहीं दिखाई दे रहे हैं । उस समय उनके मन में विचार उठने लगे, मेरी पुत्री ने ए ऐसा घृणित कार्य कर दिया है । इसने मुनि का त्याग तो नहीं कर दिया, राजा ऐसे सोच रहे थे की सुकन्या उनके सामने आ गई । सुकन्या को देखते ही महाराज शर्यती ने कहा पुत्री तुमने ये कैसा घृणित कार्य कर दिया । अपने बूढ़े पति को त्याग कर तुम यह किस व्यक्ति के साथ रह रही हो । तुमने संसार में कलंकित करने वाला यह कार्य कर दिया है इससे मुझे अपमानित होना पड़ेगा ।
पिता की बात सुनकर सुकन्या कहने लगी, पिताश्री आप पहले आश्रम के भीतर आइए । आपके मन में जो भी है संशय उठ रहा है मैं अभी उसका निवारण कर देती हूं । अभी यह जो यहां पर बैठे हुए हैं यह मेरे पति च्यवन ऋषि ही है । अश्विनी कुमारों की सहायता से यह नवयुवक बन गए हैं । मैंने कुल को कलंक करने वाला कोई कार्य नही किया है । यह सुनकर राजा शर्याति बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने च्यवन ऋषि से अपनी सारी बातें बताने के लिए कहा । ऋषि च्यवन भी अति प्रसन्न होकर उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाई । अपने युवक बन ने की कहानी सुनाने के बाद, च्यवन ऋषि ने राजा से कहा, महाराज मैंने अश्विनी कुमारों के सामने यह प्रतिज्ञा ली है कि मैं उन्हें सोमरस पीने का अधिकार दिलाऊंगा । देवता होने के पश्चात भी ,देवराज इंद्र ने अश्विनी कुमारों को सोमरस पिने का अधिकार नही दिया । इसीलिए आप एक यज्ञ का आयोजन कीजिए , इसी यज्ञ में मैं दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस पान कराऊंगा ।
च्यवन ऋषि जी बातें मानकर, राजा शर्याति ने एक यज्ञ का आयोजन कराया । उस यज्ञ में देवराज सहित सभी देवता आमंत्रित किया गया । जब देवराज इंद्र ने अश्विनी कुमारों को उस यज्ञ में देखा तो कहने लगे, यह दोनों यहां पर क्यों आ गए ,किसने इन्हे यहां बुलाया है। यह तो सोमरस पान के अधिकारी नही है, मैं इन्हें सोमरस पान नहीं करने दूंगा । जब यज्ञ संपन्न होने को आया तो च्यवन ऋषि ने दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस देने के लिए पात्र उठाकर उनके सामने प्रस्तुत किया । यह देखकर देवराज इंद्र को बहुत क्रोध आ गया उन्होंने च्यवन ऋषि से कहा, मुनिवर रुक जाइए आप इन दोनों को सोमरस मत दीजिए ,क्योंकि ये दोनों सोमरस पीने के अधिकारी नहीं है । तब च्यवन ऋषि ने पूछा, देवराज मुझे तो ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिसके वजह से इन दोनों को सोमरस नहीं दिया जाए ।
मुनि मन की बातें सुनकर देवराज कहते हैं ,यह दोनों अश्विनी कुमार वैद्य का व्यवसाय करते हैं । इसीलिए यह दोनों सोमरस पान के अधिकारी नहीं है । यदि आप हट पूर्वक इन दोनों को सोमरसपान कराते हैं तो मैं त्रिशंकु की तरह अपने वज्रसे इसी समय आपका सर धड़ से अलग करता हूं । च्यवन ऋषि ने देवराज इंद्र की बात नहीं मानी और उन्होंने दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस से भरे हुए पात्र दे दिए । सोमरस से भरे हुए पात्र मिलने के बाद अश्विनी कुमारों ने सोमरस ग्रहण कर लिया जिससे उन दोनों को बहुत प्रसन्नता हुई ।
अश्विनी कुमारों को सोमरस पान किए हुए देखकर देवराज इंद्र को बहुत क्रोध आ गया ,उन्होंने उसी समय अपने वज्र को याद किया । वह करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान था । वज्र को उपस्थित देख च्यवन ऋषि भी अपने तपस्या के बल से, एक कृत्या उत्पन्न कर दी, कृत्य का नाम मद था । वह इतनी भयानक थी, मानो अभी सारे त्रिलोकी को निकल जाएगी, उसे देखकर सारे देवता अति भयभीत होने लगे । देवता एक दूसरे से कहने लगे, अब हमें क्या करना चाहिए हामरे सामने यह बहुत ही कष्टदायी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । तब देवराज इंद्र ने सहायता के लिए देवगुरु बृहस्पति को याद किया । देवराज के याद करते ही देव गुरु बृहस्पति उस यज्ञ के स्थल पर वहां पर आ गए ।
बृहस्पति जी को अपने सामने देखकर देवराज इंद्र ने उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया । बृहस्पति जी ने ध्यान लगाकर समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न किया और उन्होंने देवराज से कहा, देवराज यह मद नाम का राक्षस ना तो तुम्हारे वज्रसे ही मरेगा या तुम सारे देवताओं के शक्ति से भी नहीं मरेगा । इससे रक्षा का एक ही मार्ग है, तुम उन्हीं च्यवन ऋषि की शरण में जाओ, वे भगवती जगदंबा के उपासक हैं । देवी भक्तों को हराना किसी के लिए भी संभव नहीं है । बृहस्पति जी की बात मानकर देवराज इंद्र च्यवन ऋषि की शरण में गए और उनसे क्षमा मांगने लगे । देवराज ने कहा, मुनिवर आप मुझे क्षमा कर दीजिए ,मैं दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस पीने का अधिकारी बना देता हूं । मैं आज घोषणा करता हूं कि आज से ही यह दोनों अश्विनी कुमार सोमरस पाएंगे ।
देवराज की यह बात सुनकर च्यवन ऋषि का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने अपने द्वारा निर्मित उस राक्षस को भी शांत कर दिया । अंतिम आहुति देकर राजा शर्याति के उस यज्ञ को भी संपन्न करा दिया । सोमरस पान के अधिकारी बनने के बाद, दोनों अश्विनी कुमार बहोत ही प्रसन्न हो गए और उन्होंने च्यवन ऋषि को धन्यवाद दिया और दोनों ही अपने पिता के यहां सूर्य लोक को चले गए ।
इस तरह च्यवन ऋषि ने दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस पीने का अधिकारी बना दिया ।
Categories: देवी भागवत पुराण
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