क्यों होना पड़ा था सर्पों को जनमेजय के यज्ञ में भस्म और क्यों कि थी आस्तिक मुनि ने उस यज्ञ में सर्पों की रक्षा

कश्यप मुनि की दो पत्नियां थी कद्रू और विनीता । कद्रू सर्पोंकी माता थी और विनीता गरुड़ की । एक समय की बात है भगवान सूर्य के रथ में जोते हुए अश्व को देखकर कद्रू ने मैं विनीत से कहा , बहन तुम्हारे हिसाब से सूर्य के रथ में जोता हुआ यह अश्व कौन से रंग का है । विनीत कहती है बहन, मेरे हिसाब से तो यह अश्व सफेद रंग का है । विनीता कहती है बहन तुमरे हिसाब से यह अश्व कोनसे रंग का है । कद्रू ने कहा विनीता मेरे हिसाब से यह अश्व काले रंग का है । कद्रू कहती है हम दोनों को बाजी लगानी चाहिए यदि तुम्हारे कहे अनुसार यह अश्व सफेद रंग का होगा तो मैं तुम्हारी दासी बन जाऊंगी और यदि काले रंग का होगा तो तुम मेरी दासी बन जाओ । विनीता ने बाजी की वह शर्त मान ली ।

 कद्रू के पास बहुत सारे छोटे-छोटे सांप थे जो काले रंग के थे । उन्होंने अपने उन पुत्रों को आदेश दिया की वे जाकर सूर्य के घोड़े में जोते हुए अश्व के शरीर पर लिपट जाए जिससे वह काले रंग का दिखने लगे । जिन पुत्रों ने  कद्रू की बात मानने से इनकार कर दिया , उन अपने सर्प पुत्रों को शाप दिया  कि तुम लोग  जनमेजय के यज्ञ के आग में गिरकर भस्म में हो जाओ । अब कद्रू और विनीत दोनों ही एक साथ सूर्य के उस अश्व को देखने गई तो उन्होंने वहां देखा अश्व काले रंग का है । विनीता बाजी हार गई इससे वह अति दुखी हो गई ।

अपनी माता विनीता को दुखी देखकर गरुडजी वहां आए और कहने लगे माता तुम्हें ऐसा कौन सा दुख है मुझे बताइए मैं अभी उस दुख को दूर करने का प्रयास करूंगा । जो पुत्र अपनी माता का दुख दूर करने का प्रयास नहीं करेगा उसका तो जीवन ही व्यर्थ है । पुत्र की बातें सुनकर विनीता ने कहा, पुत्र मैं अपनी सौतन कद्रू की दासी बन गई हूं । वह चाहती है कि मैं उसे कंधे पर उठाकर ले जाऊं । तो गरुड़ ने कहा माता आप चिंता ना कीजिए मैं कद्रू को अपने पीठ पर उठा कर ले जाऊंगा । ऐसा कह कर गरुड़ ने अपने पिट पर कद्रू को उठा लिया और समुद्र के उस पार जाने लगे, तब उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से पूछा आप मुझे मेरी माता को आपकी दासीभाव से मुक्त होने का उपाय बताइए ।

उन्होंने कहा तुम मेरे पुत्रों के लिए स्वर्ग से अमृत लेकर आओ । इससे तुम्हारी माता अवश्य ही मेरे दासी होने से मुक्त हो जाएगी । तब गरुड़जी स्वर्ग गए और उन्होंने इंद्र के साथ युद्ध करके अमृत का कलश लाकर कद्रूजी को दे दिया । उस समय सारे सर्प अमृत पीने से पहले स्नान करने के लिए गए उसी समय इंद्र ने आकर अमृत का कलश चुरा लिया और सर्पों ने वहां पर दिखी घास देखकर उसे चाटने लगी जिससे वे जी वाले बन गए ।

उसी समय की बात है जरत्कारु नाम के एक मुनि थे वे बड़े ही धर्मात्मा एवं वेद के ज्ञाता थे । उन्होंने विवाह नहीं किया था और अकेले ही पृथ्वी पर निश्चिंत होकर भ्रमण करते रहते थे । उन्होंने एक बार जंगल मे अपने पूर्वजों की आत्माओं को एक गुफा में कैद हुआ पाया । उनके पितरों ने कहा , बेटा तुम विवाह कर लो जिससे हम लोगों को इस भयानक गुफा से मुक्ति मिल जाएगी । तब जरत्कारु ने कहा अगर मुझे मेरे ही नाम वाली पत्नी मिल जाएगी तो मैं अवश्य ही उससे विवाह कर लूंगा । ऐसा कह कर वे वहां से चले गए और स्वछंद रूप से पृथ्वी पर विचरने लगे ।

कद्रू ने बात ना मानने के कारण अपने जिन पुत्रों को आग में गिरकर भस्म  में होने का शाप दिया था,  वे वासुकी आदि सारे नाग ब्रह्माजी के पास गए और उनसे शाप से बचने का उपाय पूछा । तब ब्रह्मा जी ने कहा वासुकी जरत्कारु नाम के एक श्रेष्ठ मुनि है , तुम अपनी जरत्कारु नाम की बहन को उन्हें दे दो । इन दोनों से जो पुत्र उत्पन्न होगा वही तुम लोगों की रक्षा करेगा । जरत्कारु के उस पुत्र का नाम आस्तिक होगा , वह अत्यंत ही धर्मात्मा एवं वेदों को  जानने वाला महान पुरुष होगा ।

ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर  वासुकी ने जरत्कारु नाम वाली अपनी बहन का विवाह जरत्कारु मुनि से करवा दिया । जिनसे आस्तिक नाम के  महान ऋषिवर उत्पन्न हुए । उन्होंने ही जनमेजय के यज्ञ में कद्रू के शाप से भस्म में होने से सारे सर्पों को बचाया था । अपनी माता के कुल की रक्षा करने के लिए ही तक्षक नाग की प्रार्थना पर उन्होंने यह कार्य किया था ।



Categories: देवी भागवत पुराण, महाभारत

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