सत्यवती की उत्पत्ति की कथा – जो वेदव्यस की माता थी

उपरिचर नामके एक धर्मात्मा राजा थे । चेदिदेश में उनकी राजधानी थी । उनोहनें इंद्र की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर इंद्र ने उने एक स्फटिक मणिवाला सुंदर विमान दिया । वे उस विमान पर सदा विचरते रहते इसीसे उनकी बहोत ख्याति होगयी थी । उनकी पत्नी का नाम गिरिका था और उनके पांच पुत्र थे जिनको उनोहनें पांच अलग अलग देशो में स्थापित किया था ।

एक समय की बात है उनकी पत्नी ऋतुमती हुई और उसने स्नान करके अपने पति से मन की इच्छा कही । परंतु पितरों के आदेश से राजाको मृगयाके लिए वनमे जाना था । उस समय उनका चित्त उस भगिनी में अटका था । वे उस सुंदरी भार्या को याद कर रहे थे । इतने में ही उनका शुक्र स्खलित होगया । तब उनोहनें उस वीर्य को वत्पत्र के दोनेमे रखा । राजा को पता था कि उनकी पत्नी ऋतुमती थी इसीलिए ये सोचकर कि मेरे इस अमोघ वीर्य को अपनी पत्नी के पास भेजना चाहिए वही पेड़ पर स्थित एक बाज को कहा । हे पक्षी मेरे इस वीर्य को लेकर तुम मेरे महल जाओ और मेरी पत्नी को दो ।

राजा की बात मान कर बाज ने वो दोना जिसमे राजा का वीर्य था लेकर महल की और उड़ गया । रास्ते मे एक दूसरे बाज ने ये समझकर की ये बज अपने पास मांस का टुकड़ा पकड़े हुए है , उससे लड़ने लगा इस वजह से वह दोना जिसमे वीर्य था यमुना में गिर गया ।

तब उस वीर्य को एक मछली ने निगल लिया ।

ये मछली वास्तव में एक अप्सरा थी जिसका नाम अद्रिक था । अद्रिक नाम की ये अप्सरा एक समय यमुना के जल में नहा रही थी, उसी समय एक ब्राह्मण देवता स्नान करके संध्या वंदन कर रहे थे और जलमे डूबकर खेलती हुई उस अप्सरा ने ब्राह्मण के पैर पकड़ लिए । तब ब्राह्मण ने उस अद्रिक नाम की अप्सरा को शाप दिया कि तुम मछली बन के यमुना के जल में पढ़ी रहो ।

वीर्य के दोने को निगलने के बाद वह मछली दस महीने तक यमुना में ही विचरती रही । उसके बाद एक मछवारे ने उस मछली को पकडलिया । जब मछली को काटा तो उसके पेट से दो मनुष्याकार बच्चे मिले उन्हें देखकर मछवारे को बहोत आश्चर्य हुआ और उसने उन दोनों बालक बालिका को राजा को सोप दिया । राजा ने लड़के को अपने पास ही रख लिया जो आगे चल कर मत्स्य राज के नाम से विख्यात हुआ और उस लड़की को धीवर को दिया जो मत्स्य कन्या , मत्स्यगंधा के नामसे विख्यात हुई । 

वह मछली ब्राह्मण के काथन अनुसार मनुष्य कुमारो को जन्म देने बाद शाप से मुक्त होगयी ।

इसतरह सत्यवती का जन्म हुआ था जो आगे चलकर वेदव्यस की जननी हुई थी जो भगवान विष्णु के अंशावतार थे ।



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