महर्षि वेदव्यास की उत्पत्ति की कथा

महामुनि पराशर तीर्थयात्रा कर रहे थे । घूमते घूमते वे यमुना नदी के तट पर आए । खेवट को पराशर मुनि जी ने नदी पार करने के लिये कहा । उस समय खेवट भोजन कर रहा था , इसीलिए उनोहनें अपनी पुत्री मत्स्यगंधा से मुनिवर को नदी पार करने के लिए कहा ।

पिता का आदेश मानकर, मत्स्यगंधा ने पराशर मुनि को लेकर नदी पार कराया ।

केवट की ये पुत्री अभी बड़ी हुई थी इसके इसके सारे अंग पुलकित हो रहे थे ।जब मत्स्यगंधा , मुनि पराशर को नदी पार करा रही थी , तब उस मत्स्यगंधा पर आसक्त होगये और उसका हाथ पकड़ लिया । मुनि को हाथ पकड़े देख मत्स्यगंधा डर गई और मुनि का आशय समझ कर मन मे सोचा कि ये मुनिवर तो कामदेव के अधीन होगये है , इस बीच नदी में मेरी रक्षा करने वाला भी कोई नही , मुझे किसी तरह से मुनि को रोककर अब बीच नदी के उस पार तक जाना होगा । 

ऐसा सोचकर मत्स्यगंधा ने मुनिवर से कहा , मुनिवर आप जैसे महात्मा और धार्मिक की बुद्धि में ऐसा विचार कोसे उत्पन्न होगया , मुनिवर क्या आप नही जानते मत्स्य कन्या होने के कारण  मेरे शरीर से सदा मत्स्य की गंध आती है इसीलिए आपको मेरा संग नही करना चाहिए । तब मुनिवर ने अपने तपोबल से मत्स्यगंधा के शरीर का गंध कस्तूरी के जैसे कर दिया जिसके सुगंध चार  कोस तक फैल गयी । इसीबीच मत्स्यगंधा ने पराशर मुनि जी को नदी पर लेकर गयी । नदी के उस पार ले जाकर मत्स्यगंधा ने मुनि से कहा , मुनिवर ऐसा कर्म दिन में नही किया जाता , इसकेलिए तो रात ही सहज वक़्त कही गयी है । नदी के उस तट पर मेरे पिता है , और सभी लोग हमें देख सकते है , इस तरह खुले में तो ये कर्म पशु भी नही करते । तभी मुनिवर ने उसी वक़्त अपने तपोबल से कोहरा उत्पन्न कर दिया जिससे कोई भी उन्हे नही देख सकता था । 

पराशर मुनि ने तब मत्स्यगंधा से कहा , देवी मेरे मन मे इस समय तुमरे प्रति जो आकर्षण है इसे नियति ही समझना चाहिए क्यो की मैन कई रूपवती स्त्रियों को देखा है किंतु स्वयं को कभी बहकने नही दिया । परंतु आज तुमपर जो मत्स्य गंधा हो आकर्षित होगया हूँ इसका कारण यही है कि तुमरे गर्भ से विष्णु जी के अंश जन्म लेंगे , जो आगे चलकर एक वेद को चार भागों में विभाजित करेंगे जिससे इनका नाम वेदव्यस पड़ेगा । ये तुमरे पुत्र महाभारत का निर्माण करेंगे और समस्त पुराणों का निर्माण भी करेंगे । इसीलिए तुम्हें संकोच नही करना चाहिये ।

मुनिवर की बाते सुनकर मत्स्यगंधा ने कहा , मुनिवर आप तो मुझे छोड़ के चले जायेंगे , इसके बाद मेरा क्या होगा ।  तब मुनिवर ने कहा देवी मेरे आशीर्वाद से आप पुत्र जन्म के बाद भी कुवांरी ही रहेंगी और सदा नव युवती की तरह ही दिखोगी । तुम मेरा ये कार्य करने में मेरी सहायता करो तुम्हें जो चाहिए वो वर मैं तुम्हें दूंगा ।

मत्स्यगंधा कहती है , मुनिवर ऐसा वर दीजिये मेरा ये रहस्य कभी मेरे माता पिता को पता न चले और मैं सदा नवयुवती बानी राहु । मेरे आपके जैसा ही अद्भुत और शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न हो । मेरी ये सुगंध सदा बानी रहे । मुनिवर मत्स्यगंधा की ये सारी बाते मान गए । तत्पश्यात पराशर मुनि और मत्स्यगंधा का सयोंग हुआ जिससे मत्स्यगंधा को गर्भ रह गया । 

गर्भ की अवधि पूर्ण होने के बाद मत्स्यगंधा ने यमुना के एक द्वीप पर एक बालक को जन्म दिया । द्वीप पर जन्म होने के कारण इस बालक का द्वैपायन पढ़ा और कृष्ण वर्ण के होने के कारण उनका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा । जन्म लेते ही ये बालक विष्णु के अंश होने के कारण  युवावस्था के होगये और अपनी माता को प्रणाम कर उनसे अनुमति लेकर तपस्या करने के लिए चले गए ।

इस तरह महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ । 



Categories: महाभारत, श्री कृष्ण की कथाएँ

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