एक समय की बात है भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को घोड़ी होने का शाप दे दिया । भगवान विष्णु की प्रत्येक लीला में रहस्य होता है । अपने हर कार्य का कारण वे अच्छी तरह से जानते हैं । अपने भक्त का कार्य करने के लिए उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी को ऐसा शाप दिया था । घोड़ी होने का शाप पाने के बाद ,लक्ष्मी जी घोड़ी बनकर पृथ्वी लोक में आकर रहने लगी । उस समय देवी लक्ष्मी यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर थी । उस स्थानपर पूर्व काल में सूर्य की पत्नी ने तपस्या की थी ।
उस स्थान पर रहकर , बहुत सोच विचार करने के बाद , देवी लक्ष्मी ने देवाधिदेव भगवान शंकर की तपस्या करने का निर्णय लिया । उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही कठिन तपस्या की । ऐसे कुछ समय बीत जाने के बाद, देवी लक्ष्मी के तपस्या से भगवान शिव अति प्रसन्न हो गए । शिवजी स्वयं अपनी पत्नी गौरी के साथ नंदी पर सवार होकर देवी लक्ष्मी के सम्मुख प्रकट हुए । भगवान शिव के पांच मुख थे और 10 हाथ थे । उनका शरीर कर्पूर की तरह गोरे रंग का था । गले में नागराज शोभा पा रहे थे, उस समय भगवान शिवने नर मुंडो की माला धारण कर रखी थी । उन्होंने अपने शरीर पर भस्म लगाए रखा था ,हाथों में अनेक प्रकार के आयुध धारण कर रखे थे । उनके साथ उपस्थित देवी गौरी भी अत्यंत मनोहर दिखाई दे रही थी ।
महादेव को सामने उपस्थित देखकर देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न हुई और भगवान शिव को प्रणाम किया । शिवजी ने कहा, देवी लक्ष्मी आप कौन सा उद्देश लेकर मेरी तपस्या कर रही है । स्त्री को चाहिए कि, वह सदा अपने पति का ही ध्यान करें । किंतु आप अपने पति भगवान विष्णु को छोड़कर मेरा ध्यान क्यों कर रही है । इस संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे भगवान विष्णु देने में असमर्थ हो । उन भगवान नारायण की इच्छा मात्र से ही अनेक ब्रह्मांडओं की रचना और संहार हो जाता है । ऐसे सर्वशक्तिमान पति का ध्यान छोड़कर आप मेरा ध्यान क्यों कर रही है ।
भगवान शंकर की यह बात सुनकर ,देवी लक्ष्मी कहती है । प्रभु मेरे पति नारायण ने, मुझे घोड़ी होने का शाप दे दिया है । इसी कारणवश मैं घोड़ी का रूप धारण करके पृथ्वी पर आकर रह रही हूं । अभी आपने जो कहा की, स्त्री को अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे का ध्यान नहीं करना चाहिए । यह बात बिल्कुल सत्य है । किंतु यह बात भी सत्य है कि, मेरे पति भगवान नारायण और आप में कोई अंतर नहीं है । इसीलिए इस समय अपने पति के वियोग के दुख से मुक्ति पाने के लिए मैं आपकी तपस्या कर रही हूं ।
लक्ष्मी जी की यह बात सुनकर महादेव जी कहते हैं । देवी लक्ष्मी यह बात सच है की मैं और भगवान विष्णु एक ही है । किंतु इस संसार में बहुत ही कम ऐसे लोग हैं जो इस बात को जानते हैं ,की शिव और विष्णु एक ही है । आप मुझे यह बताने की कृपा कीजिए कि आपको यह कैसे पता चला कि भगवान विष्णु और मैं एक ही है । क्योंकि संसार मे इस रहस्य को जानना इतना सरल नही है ।
शिवजी की बातें सुनकर देवी लक्ष्मी कहती है , प्रभु एक बार मैंने अपने पति नारायण को ध्यान में लीन देखा था । तब मैंने उनसे कहा , नारायण आप तो सर्वशक्तिमान है । आपकी इच्छा मात्र से अनंत ब्रह्मांडओं का निर्माण होता है और उनका संहार भी हो जाता है । किंतु आप जैसे सर्वशक्तिमान भगवान इस समय किस का ध्यान कर रहे हैं । ऐसा कौन है जो आपसे भी पूजित होने के योग्य हो । कृपा करके मुझे यह रहस्य बताने का कष्ट कीजिए ।
उस समय मेरे पति भगवान विष्णु ने कहा , देवी लक्ष्मी इस संसार में बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि ,मैं और भगवान शिव एक ही है । हम दोनों में कोई भेद नहीं है । कभी तो दैत्यों का संहार करने के लिए ,मैं उन भगवान शिव की आराधना करता हूं । कभी कुछ दैत्यों का संहार करने के लिए म,भगवान शिव मेरी आराधना करते हैं । मैं उनका आराध्य हूं और वे मेरे आराध्य है । हम दोनों में किंचित मात्र भी भेद नहीं है । मेरे प्राण उन भगवान शंकर में बसते हैं और उनके प्राण मुझ में बसते हैं ।
देवी हम दोनों के कुछ भक्त यह नहीं जानते कि हम दोनों एक ही है । ऐसे भक्त एक दूसरे की निंदा करते हैं । मेरे कुछ भक्त अज्ञानवश भगवान शिव की निंदा करते हैं और शिव जी के कुछ भक्त अज्ञानवश मेरी निंदा करते हैं । ऐसे भक्तों को, हमारी निंदा करने के कारण घोर नरक में रहना पड़ता है । देवी तुम हम दोनों को एक ही समझो, हम दोनों में कोई भेद नहीं है । जो शिव हैं ,वही विष्णु है और जो विष्णु है ,वही शिव है । केवल संसार का ठीक रूप से संचालन करने के लिए ही यह भेद, माया के कारण दिखाई देता है । किंतु वास्तव में शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है ।
देवी लक्ष्मी का यह कथन सुनकर भगवान शिव अति प्रसन्न हो जाते हैं । शिवजी कहते हैं, देवी तुम धन्य हो जो इस रहस्य को जानती हो । क्योंकि इस रहस्य को जानने में बहुत सारे लोग असमर्थ है। अब आप चिंता करना छोड़ दीजिए क्योंकि मैं आपको मनोवांछित, वरदान देता हूं । थोड़े ही समय में आपके प्राणप्रिय पति भगवान नारायण आप के समीप होंगे । मैं उनको इस तरह प्रेरित करूंगा की बहुत शीघ्र ही आपके निकट आ जाए और आपका मनोरथ पूर्ण हो ।
मैं जानता हूं भगवान विष्णु ने जो आपसे कहा है । इस घोड़ी रूपी शरीर से एक पुत्र के उत्पन्न होने के बाद आप इस शाप से मुक्त हो जाएंगी । इतना कहकर भगवान शिव वहीं पर अंतर्धान हो गए । कुछ समय बाद, भगवान शिव की प्रेरणा से ,भगवान विष्णु जी एक सुंदर घोड़े का रूप धारण करके, यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर आए । वहां पर देवी लक्ष्मी घोड़ी के रूप में रह रही थी । उसके बाद उन दोनों का संयोग हुआ और उनसे एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ । भगवान विष्णु और लक्ष्मी का पुत्र एक वीर के नाम से जान आ गया ।
इस तरह घोड़ी रूपी लक्ष्मी जी ने, अपने पति भगवान विष्णु का सानिध्य पाने के लिए, महादेव जी की तपस्या की थी और भगवान शंकर ने लक्ष्मी जी को वरदान दिया था ।
Categories: देवी भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ
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