
रुत्वाक मुनी बड़े ही विलक्षण बुद्धि वाले थे । रेवती का चौथा चरण गण्डान्त होता है । इस काल में जन्म लेने के कारण उनका पुत्र अति दुराचारी बन गया और इस कारणवश रुत्वाक मुनि को बहुत ही दुख और कष्ट सहने पड़े थे । जब उन्हें इस बात का पता चला कि रेवती के चौथे चरण में उत्पन्न होने के कारण उनका पुत्र दुराचारी हुआ है तो उन्होंने क्रोध में रेवती को नक्षत्र मंडल से गिर जाने का श्राप दे दिया था । बादमे भगवती दुर्गा की आराधना करके अपने सारे दुख और कष्टों से रुत्वाक मुनि मुक्ति पा सके थे ।
रुत्वाक मुनि के शाप के कारण रेवती नक्षत्र का तेज कुमुदगिरी पर गिरा । उस तेज से एक कन्या उत्पन्न हुई । प्रमुच ऋषि ने बालिका को लेकर उसका नाम रेवती नाम रखा और उस बालिका का पालन पोषण किया । विवाह योग्य होने पर ऋषि को यह चिंता सताने लगी – इस बालिका के योग्य वर कौन होगा । तब उन्होंने अग्निदेव से प्रार्थना की कि वह इस के योग्य वर का नाम बताएं । अग्निदेव ने कहा कि राजा दुर्दम इस के योग्य वर है । उसी समय दैव वश दुर्दम राजा मुनि के आश्रम पर आ गए और उन्हें देख कर मुनि को अति हर्ष हो गया । मुनि ने राजा से अपनी कन्या को स्वीकार करने का आग्रह किया उसके लिए राजा भी मान गए ।
मुनि की पुत्री रेवती ने यह हट किया कि उनका विवाह रेवती नक्षत्र में ही संभव हो । किंतु मुनि कहा , पुत्री रेवती नक्षत्र तो आकाश से गिर गया है , उसमें तुम्हारा विवाह कैसे संभव है । पुत्री ने कहा कि यदि रुत्वाक ऋषि अपने तपोबल से शाप देकर रेवती नक्षत्र को भूमि पर गिरा सकते हैं , तो क्या आप अपने तपोबल से उसे पुनः स्थापित नहीं कर सकते । पुत्री की यह बात सुनकर मुनि ने रेवती नक्षत्र को आकाश में स्थापित कर दिया । बादमे राजा दुर्दम से कहा , महाराज यदि कुछ पाने की इच्छा हो तो हमें बताइए मैं उसे पूर्ण करनेका प्रयत्न अवश्य करूँगा ।
मुनि की बात सुनकर राजा कहने लगे , मुनिवर मैं स्वयंभू मनु के वंश में उत्पन्न हुआ हूं । इसीलिए मेरी इच्छा है कि मैं मन्वंतर का स्वामी हो , ऐसा पुत्र प्राप्त हो । तब प्रमुच ऋषि ने कहा , राजन आप अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए भगवती दुर्गा की आराधना कीजिए और देवी भागवत पुराण का श्रवण कीजिए , इससे आपकी इच्छा पूर्ति हो जाएगी । तत्पश्चात राजा ने मुनि की पुत्री रेवती से विवाह किया और अपने राज्य को लौट आए ।
कुछ समय बाद लोमश ऋषि उनके राज्य को पधारे , तब राजा ने लोमश ऋषि से प्रार्थना की कि वे उन्हें मन्वंतर के स्वामी बनने वाला पुत्र पाने के लिए , श्रीमद् देवी भागवत का श्रवण कराएं । तब महर्षि लोमश ने अति प्रसन्न होकर कहा महाराज तुम धन्य हो जो भगवती में भक्ति रखने वाली यह बुद्धि तुम ने पाली है । बादमे महाराज को उनकी पत्नी रेवती के सहित श्रीमद् देवी भागवत का कथन सुनाया । राजा ने इस अवसर पर अनेक ब्राह्मणों को भोजन कराया और उन्हें दान में अनेक अमूल्य वस्त्र और आभूषण भी दिए ।
कुछ समय बाद देवी रेवती ने गर्भधारण किया और उन्होंने एक पुत्र उत्पन्न किया जिसका नाम रखा गया रैवत , जो आगे चलकर ब्रह्मा के आदेश से मन्वंतर के स्वामी हो गए थे । रैवत के माता-पिता की श्रीमद् देवी भागवत श्रवण मात्र से ही वे मन्वंतर की स्वामी हुए थे ।
देवी भागवत महात्मा की यह कथा अति पावन तथा मनुष्यों को भक्ति मुक्ति प्रदान करने वाली और समस्त लोगों से दूर करने वाली है ।
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