
रुत्वाक नाम के एक विलक्षण बुद्धि वाले मुनि थे । समय आने पर उनके घर पुत्रोत्सव हुआ । रेवती का चौथा चरण गण्डान्त होता है ; उसीमे उस बालक की उत्पत्ति हुई थी । मुनिने उस लड़के के जातकर्म आदि सभी क्रियाएं सम्पन्न कराये और उपनयन आदि संस्कार भी सम्पन्न किये ।
मुनि के घर जबसे उस लड़के का जन्म हुआ था , तभीसे वे रोग और शोक से चिंतित रहने लगे और क्रोध और लोभ ने उन्हें सदा घेरे रहते थे । उस बालक की माता का भी यही हाल था । उसे हमेशा अनेक रोग सताने लगी थे । वह उदास होकर सदा चिंता में डूबी रहती थी ।
वह लड़का भी बहोत उद्दण्ड हो गया । तब मुनि चिंतित होकर सोचने लगे – कोन ऐसा कारण है , जिससे यह मेरा पुत्र महान दुष्ट होगया है । उस समय उस लड़के ने किसी मुनिकी स्त्री को हटपूर्वक छीन लिया था । वह ऐसा प्रचंड मूर्क था कि माता पिता की शिक्षा पर बिल्कुल ध्यान नही देता था ।
तब अत्यंत खिन्न होकर मुनि कहने लगे – मनुषयो को पुत्र न हो यह अच्छा ; किन्तु दुराचारी पुत्र होजाना किसी भी स्थिति में ठीक नही है ; क्यों कि दुष्ट पुत्र पितरोंको स्वर्ग से नरक में धकेल देता है , वह जीवनपर्यन्त पिताको केवल दुःख ही देता रहता है । कुपुत्र और पापपरायण सन्तानसे पिता कभी सुखी नही हो सकता । जगत में वे पुरुष ही बड़भागी है, जिनके घर सुपुत्र होनेका अवसर सुलभ है । सदाचारी पुत्र दूसरेका उपकार करता है और माता पिताको सुखी बनाये रखता है । दुराचारी पुत्रसे कुल नष्ठ हो जाता है , दुष्ट स्त्री मिलने से जन्म की सार्थकता जाती रहती है ,उत्तम भोजन न मिलने से दिन व्यर्थ चला जाता है ,कुमित्र से सुख की आशा भी निष्फल हो जाती है ।
इस प्रकार दुष्ट पुत्र के नीच व्यवहार से दुःखी होकर वे श्रीगर्गजी के पास जाकर उनसे पूछने लगे – जोतिषशास्त्र के आचार्य महामुनि गर्ग जी , मेरा पुत्र दुराचारी होने में क्या कारण है । मैन वेदानुसार अपने सारे धर्मो का पालन किया है । फिर भी माता या पिता किसके दोष से ऐसा पुत्र उत्पन्न हुआ है । तब महामुनि गर्गजीने सब प्रकार से सोचकर कहा कि , तुमरे इस पुत्र के दुराचारी होने में ना तो माता का दोष है ना ही पिता का । जिस समय इस बालक का जन्म हुआ तब रेवती का गण्डान्त समय चल रहा था इसीलिए ये दुराचारी होगया है । तब तो ऋत्वाक मुनि को बहोत क्रोध आया और उनोहनें रेवती नक्षत्र को शाप दिया कि ओ आकाश से गिर जय ।
श्री गर्गजी ने कहा मुनिश्रेष्ठ भगवती दुर्गा की आराधना करने से आप इस दुख से मुक्त हो सकते है । आप देवी भागवत का श्रवण किजिये तब आपको इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी । इसकेबाद रुत्वाक मुनि ने भगवती दुर्गा की आराधना करके अपने दुखों से मुक्ति पाली ।
इस तरह देवीभागवत के श्रवण से मनुष्य के सारे दुखो का अंत होजाता है और वह भक्ति और मुक्ति का अधिकारी बन जाता है ।
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