
एक समय की बात है महर्षि वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर ,अपने आश्रम पर थे । उनके आश्रम पर दो गौरैया पक्षी रहते थे । उन्हें देखकर वे बड़े आश्चर्यचकित हो गए । उन्होंने देखा कि अभी अभी अंडे से पक्षी के बच्चे बाहर निकले हैं ,इनके अभी पर भी नहीं निकले और दोनों गोरिया पक्षी दूर से दाने लाकर अति प्रेम से इनके मुख में डाल रहे हैं । बार-बार उन बच्चों के शरीर पर अपने चोंच को घिस कर प्रेम कर रहे हैं । यह देख कर महर्षि ने सोचा , जब पक्षी ही अपने बच्चों से इतना प्रेम कर सकते हैं तो मनुष्यों का कहना ही क्या है । यह मनुष्य तो उनसे सेवा पाने की इच्छा लेकर ही अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं । तब उनके मन में यह विचार आया , कहा गया है की संतान हीन मनुष्य की गति नहीं होती और उसे मानसिक सुख भी लाभ नहीं होता । इस तरह बहुत देर तक सोच समझकर वे संतान प्राप्ति के लिए तप करने के लिए मंदराचल पर्वत के निकट चले गए ।
उस पर्वत पर जाकर वे सोचने लगे कि , मैं अपनी इच्छा को पूर्ण करने के लिए किस देवता की आराधना करूं । कौन ऐसा देवता है जो वर देने में अति निपुण और सब की इच्छा पूर्ण करने में सक्षम है । उसी वक्त देवर्षि नारद वहां आए और उन्होंने व्यास जी को चिंतित देखकर उनकी चिंता का कारण पूछा । तब व्यास जी ने कहा मैं पुत्र प्राप्ति की इच्छा से तपस्या करने के लिए यहां आया हूं, परंतु यह निश्चित नहीं कर पा रहा हूं कि किस देवता की आराधना करू, जिससे मेरी यह कामना पूर्ति हो जाए । तब देवर्षि नारद ने उन्हें उनके पिता ब्रह्मा और विष्णु जी के बीच हुए संवाद को सुनाया ।
नारद जी ने कहा , महर्षि जैसा प्रश्न तुम मुझे कर रहे हो ठीक वैसा ही प्रश्न पूर्वकाल में मेरे पिता ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से किया था । जब ब्रह्मा जी ने देखा की चार भुजाओं वाले, अपने वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि धारण करने वाले , हाथ में शंख ,चक्र, गधा और कमल लिए रहने वाले , भगवान विष्णु तप , कर रहे हैं तो उन्होंने पूछा, प्रभु आप तो सर्वव्यापी हैं और सर्वशक्तिमान भी है मैं तो यही जानता हूं कि आपके ऊपर किसी की सत्ता नहीं है । आप अपनी इच्छा से ही इस सृष्टि की रचना मुझसे कराते हैं और भगवान रुद्र से उसका संहार भी कराते हैं । जब आप ही सर्वांतर्यामी, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है , तब आप किस देवता की तपस्या कर रहे हैं । मेरे विचार से तो आपके ऊपर कोई और देवता ही नहीं है । कृपया मुझे यह बताइए कि आप इतना तल्लीन होकर किस की आराधना कर रहे हैं । सूर्य का उदय होना , हवा का चलना , मेघों का बरसना, अग्निका जलना यह सब तो आपकी इच्छा पर ही निर्भर है और स्मृतियां भी यही कहती हैं कि आप ही सर्वशक्तिमान परम ब्रह्म है । मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि आप समाधि लगाकर किसी का ध्यान कर रहे हैं , इसीलिए हे प्रभु कृपया बताने की कृपा कीजिए कि आप किसके धान में लगे हैं ।
ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर विष्णुजी कहते हैं, है ब्रह्मा तुम ध्यान देकर सुनो मैं ,अपने विचार कहता हूं । संसार में देवता , दानव और मनुष्य यही जानते हैं की, तुम सृष्टि करते हो, मैं पालन करता हूं और रूद्र संहार करते हैं । किंतु फिर भी वेद को जानने वाले पुरुष अपनी युक्ति से यह सिद्ध करते हैं कि हमें जो यह सृष्टि, पालन और संहार करने की योग्यता मिली है इसकी अधिष्ठात्री देवी आध्याशक्ति है । इसीलिए मैं सदा उन्हीं का ध्यान करते रहता हूं । मैं कभी भी उनके शासन से मुक्त नहीं हो पाता । उनका ही आदेश पाकर तुम सृष्टि करते हो, मैं पालन करता हूं और रूद्र संहार करते हैं । उसी शक्ति के अधीन होकर मैं प्रलय काल में शेषनाग की शैया पर सोता हूं और सृष्टि का समय आने पर फिर जाग जाता हूं ।
ब्रह्मा जी बहुत पहले की बात है, मेरे कान के मन से दो दैत्य उत्पन्न हुए थे मधु और कैट । तब मैंने 5000 वर्षों तक उनके साथ युद्ध किया फिर भी उन्हें हरा नहीं सका था , क्या तुम नहीं जानते , बाद में मैंने उन आदिशक्ति की सहायता लेकर ही दोनों दैत्यों वध किया था । फिर भी बार-बार क्यों पूछते हो कि मैं किसकी आराधना करता हूं । उस समय भी तुम वहीं थे जब धनुष की डोरी टूट जाने से मेरा सर कट गया था और आदिशक्ति के आदेश पर तुमने ही मेरे सर पर घोड़े का सर लगाया था । हे ब्रह्मा, इन देवी के अतिरिक्त सर्वशक्तिमान और कोई देवता को मैं नहीं जानता इसीलिए मैं सदा इनकी ही आराधना करते रहता हूं ।
नारद जी ने महर्षि वेदव्यास को अपने पिता ब्रह्मा और विष्णु जी में हुए इस संवाद को बताते हुए कहा । महर्षि विष्णु जी के कथन से यह सिद्ध है कि यह देवी आदिशक्ति ही संसार में सब कुछ देने के योग्य और प्राणियों के सभी मनोरथ हों को पूर्ण करने में सक्षम है । इसीलिए अपने पुत्र प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए तुम इन्हीं देवी की आराधना करो ।
Categories: दुर्गा देवी की कथाएँ, श्री कृष्ण की कथाएँ
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