पंचप्रकृतिया कौन है – जानिए इन आदि देवियों के नाम और गुण

पंचपरिकृतियाँ

गणेश जननी दुर्गा , महालक्ष्मी , सरस्वती , सावित्री और श्री राधा,  यह पुराणों और वेदों के अनुसार पंच प्रकृति कहीं जाती है । पूर्णब्रह्मा परमेश्वर  भगवान श्री कृष्ण स्वेच्छामय  है । उनके मन में  सृष्टि करने की इच्छा होते ही ,  मूल प्रकृति प्रकट हो गई । तदनंतर  परमेश्वर के आदेश अनुसार सृष्टि रचने के लिए  पांच रूप हो गए ।

यह देवी अपने भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए अनेक रूप धारण करती है। 

गणेश की जननी जो दुर्गा है यह प्रथम पृकृति है । यह शिवस्वरूपा है ,यह देवी सब की अधिष्ठात्री है । यह विष्णुमाया, नारायणी ,पूर्णब्रह्मास्वरूपिणी आदि नामों से जानी जाती है । यश मंगल ,श्री, धर्म ,मोक्ष , सुख और हर्ष प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है । दुख ,शौक, और उद्वेगों को दूर करती है । यह तेज की अधिष्ठात्री देवी है और सर्व शक्ति स्वरूपा है । यही देवी भगवान शंकर को निरंतर शक्तिशाली बनाए रखती है । बुद्धि ,निद्रा, क्षुधा, छाया ,दया, शांति ,कांति ,चेतना ,स्मृति और माता यह इनके अनेक नाम है । भगवान श्रीकृष्ण पूर्णपरब्रह्म है और यह देवी उनके समीप सर्व शक्ति स्वरूप से विराज अति है ।

द्वितीय पृकृति , भगवती महालक्ष्मी परम सत्वस्वरूपा है । यह भगवान नारायण की परम शक्ति है और उनकी प्रिया है । यह देवी समस्त संपत्ति की अधिष्ठात्री है । यह शांतस्वरूपा संयमरूपा और समस्त मंगलो का प्रतीक है । काम ,क्रोध ,मद ,मोह ,अहंकार और लोभ जैसे दुर्गुणों से वे सहज ही रहित है । यह देवी भक्तों पर सदा ही अनुग्रह करती हैं और श्रीहरि को अत्यंत प्रेम करती है । यह श्री हरि को अपने प्राणों से भी प्रिय मानती है और सदा उनसे प्रिय वचन ही कहते हैं । राजाओं  के यहां राज्य लक्ष्मी , हर  घर में गृह लक्ष्मी, व्यापारियों के यहां वाणिज्यरूप में निवास करती है । पापी जन जो कलह आदि अशिष्ट व्यवहार करते हैं उनमें भी इन्हीं की शक्ति है । यह देवी भक्तवत्सला और मात्रवत्सला है अपने भक्तजनो पर अनुग्रह करने के लिए सदा ही तत्पर रहती है । प्राणियों का जीवन स्थिर रखने के लिए ही इन्होंने यह रूप धारण कर रखा है ।

तृतीय पृकृति , परब्रह्म परमात्मा से संबंधित वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान कि जो अधिष्ठात्री देवी है वे महा सरस्वती कहलाती है । संपूर्ण विधाएं उन्हीं का स्वरूप है । मनुष्य को बुद्धि, मेधा,  प्रतिभा, स्मृति और कविता आदि शक्तियां इन्हीं से प्राप्त होती है ।अनेक प्रकार के सिद्धांतों और अर्थों की कल्पना शक्ति यही प्रदान करती है । इनकी कृपा से समस्त संदेह नष्ट हो जाते हैं । इन्हें विचारकारिणी और ग्रंथकारिणी कहा जाता है । ये देवी संगीत की अधिष्ठात्री है और समस्त जीवो को विषय , विज्ञान और वाणी प्रदान करती है । यह देवी शांत स्वरूपा और श्रीहरि की प्रिया है । यह हाथों में पुस्तक और वीणा लिए रहती है , रत्नों की माला हाथ में लेकर यह सदा भगवान श्री कृष्ण के नाम का जाप करती रहती है । तपस्वी जनों को फल प्रदान करने में यह सदा ही तत्पर रहती हैं । सिद्धि और विद्या इनका स्वरूप है और यह समस्त सिद्धियां प्रदान करती है ।

वेद माता गायत्री जो सावित्री नाम से भी जानी जाती है , मूल पृकृति का चौथा रूप है । यह देवी मंत्रो और तंत्रो की भी जननी है । विधाता ब्रह्मा की ये प्रिय शक्ति है । तीर्थ अपनी शुद्धि के लिए इन देवीके स्पर्श की कामना करते रहते है । इनका रूप परम आनंदमय है । ये पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी है । अपने भक्तों को मुक्ति देना इनका स्वभाव ही है । ये ब्रह्मतेज से सम्पन्न परमशक्ति है । इन्हें शक्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है । इनकी चरण कमल के धुली सम्पूर्ण जगत को पवन कर देती है ।

मूल प्रकृति का पांचवा रूप है पूर्ण परब्रह्म श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी , राशेश्वरी श्री राधा जी है । ये देवी प्रेम और प्राणों की अधिष्ठात्री है तथा पंचपरणस्वरूपिणी है । परमात्मा श्रीकृष्ण को प्राणों से भी बढ़कर प्रिय है । ये रासक्रीड़ा की अधिष्ठात्री देवी है , रासमण्डल में इनका अवोर्भाव हिअ है । इनके विराजने से रासमण्डल की विचित्र शोभा होती है । गोलोकधाम में रहनेवाली ये देवी राशेश्वरी एवं सुरसिका नाम से प्रसिध्ध है । रासमण्डल में पधारे रहना इन्हें बहोत प्रिय है । ये हमेशा 12 वर्ष की गोपी के वेश में रहती है । ये देवी निर्विकरा, निर्गुणा , निराकारा  और अमृतस्वरूपा नमो से विख्यात है । इच्छा और अहंकार से रहित भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए ही इन्होंने यह रूप धारण कर रखा है । इनके दर्शन अति दुर्लभ है अपने भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए ही यह वृषभानु के घर पधारी थी ।



Categories: श्री कृष्ण की कथाएँ

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