राजा सुधुम्रके स्त्री बनने और श्रीमद देवी भागवत श्रवण फलस्वरूप सदाके लिए पुरुष बनने की कथा

श्रीमद् देवी भागवत भक्ति और मुक्ति प्रदान करनेवाला महान पुराण है । इसके श्रवण मात्र से मनुष्य के सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं और वह आदि शक्ति की भक्ति प्राप्त कर संसार बंधन से मुक्त होने का अधिकारी बन जाता है ।

विवस्वान मनु के पुत्र श्राद्धदेव जी थे और श्राद्धदेव जी का नाम पत्नी श्रद्धा था । इनका कोई पुत्र नहीं था इसीलिए श्राद्धदेव ने अपने गुरु वशिष्टजी को कहकर पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था । यज्ञ के समय श्राद्धदेव जी  की पत्नी श्रद्धा ने होता से विनती की ,की वे  इस संकल्प के साथ यज्ञ करें कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो । इस विपरीत संकल्प के कारण श्राद्ध देव को पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम इला रखा गया । श्राद्धदेव को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने गुरु वशिष्ट से इसके बारे में पूछा । तब गुरु वशिष्ट ने अपने ध्यान द्वारा यह जाना कि   पुत्रेष्टि यज्ञ में पुत्री की उत्पत्ति होने का कारण होता का संकल्प ही है । तब मुनिने  नारायण  की तपस्या की , नारायण के आशीर्वाद से इला नामकी श्राद्धदेव की वह पुत्री  पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गई और उसका नाम सुधुम्र रखा गया ।

एक समय की बात है भगवान शंकर अपनी पत्नी पार्वती के साथ वनविहार कर रहे थे । उस समय वहां कुछ ब्राह्मण और तपस्वी आए,  इन सब को देखकर पार्वती जी लजा गई और वहां से चली गई । तपस्वियों ने  भी यह देखकर की महादेव और पार्वती जी हास ,  विलास कर रहे हैं वहां से वैकुंठ को चले गए । तत्पश्चात महादेव जी ने यह शाप दिया कि इस वन में जो भी पुरुष आएगा वह स्त्री रूप में परिवर्तित हो जाएगा ।

 सुधुम्र के अपना राजपाट सामान लेने के बाद,  एक  दिन से सहसा ही महादेव से श्रापित उस वन में चले गए और स्त्री रूप में परिवर्तित हो गए । तत्पश्चात वे उस वन में घूमते हुए , बुध के आश्रम पर गए।  इला पर ज्यों ही बुध की दृष्टि पड़ी उनके मन में इन्हें पाने की इच्छा जागृत हो गई और ईलाने भी उसमें सहमति प्रदान कर दी । बाद में इन दोनों के कई पुत्र और पौत्र हुए ।  एक दिन इला को अपने पूर्व जीवन का स्मरण हो गया और वह अति दुखी होकर रोते हुए अपने गुरु वशिष्ठ के आश्रम पर जाकर उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया ।

वशिष्टजी ने ईला कि यह सारी कहानी सुनकर उसे फिर से पुरुष बनाने के संकल्प से , त्रिपुरारी भगवान शंकर की आराधना की , वशिष्ठ जी की आराधना से संतुष्ट होकर भगवान शंकर ने उन्हें मनोवांछित वर मांगने के लिए कहा । तब वशिष्ठजी ने कहा , हे देवाधिदेव , मुझे स्वयं के लिए कुछ नहीं चाहिए, मैं बस यह चाहता हूं कि मेरा जो यह शिष्य सुधुम्र है वह आपसे श्रापित वन में जाकर स्त्री बन गया है । आप इसे पुनः पुरुष बनाने का वरदान दीजिए । तब भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि , यह इला एक माह तक पुरुष रहेगी और एक माह तक स्त्री रहेगी ।

तत्पश्चात वशिष्ट जी ने वही उपस्थित आद्याशक्ति, देवी पार्वती, जो स्वयं दुर्गा है, उनकी स्तुति और पूजा की जिससे देवी पार्वती संतुष्ट हो गई और उनसे वर मांगने के लिए कहा । उनकी बात सुनकर वशिष्ठजी ने कहा कि हे देवी आप ऐसा वर दीजिए , जिससे यह इला पूर्ण रूप से पुरुष बन जाए । तब देवी पार्वती ने संतुष्ट होकर कहा , वशिष्ठ जी आप सुधुम्र राजा से श्रीमद् देवीभागवत कथा का श्रवण कराइए । श्रीमद् देवीभागवत के सुनने से ही, यह पूर्ण रूप से पुरुष बन जाएंगे ।

आदिशक्ति गौरी का यह वरदान पाकर वशिष्ठ जी ने श्रीमद् देवीभागवत का पाठ आरंभ किया और उन्होंने महाराज सुधुम्र को श्रीमद् देवीभागवत की कथाएं सुनाई । यह कथा 9 दिन के बाद पूर्ण हुई । कथा के पूर्ण होने पर राजा ने अनेक ब्राह्मणों को भोजन कराया और उन्हें दान में बहुत से अमूल्य रत्न प्रदान किए और इसके बाद वे पूर्ण रूप से सदा के लिए पुरुष बन गए ।

देवी भागवत महात्मा कि यह एक अद्भुत कथा है इसे पढ़ने और सुनने पर मनुष्य के सारे दुख दूर हो जाते हैं और वह भक्ति और मुक्ति का अधिकारी बन जाता है ।



Categories: दुर्गा देवी की कथाएँ

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