देवीभागवत श्रवण का महात्म्य – श्री कृष्णा के अपयश शांति की कथा

श्रीमद् देवी भागवत का श्रवण भक्ति और मुक्ति देने वाला है । इसके श्रवण मात्र से मनुष्य के सारे दुख दूर हो जाते हैं और उसका जीवन हर्ष , संतोष से भर जाता है । भगवान श्री कृष्ण के पिता वसुदेव जी एक बार अपने पुत्र के वियोग से दुखी हो गए थे,  तब उन्होंने इस देवी भागवत ग्रंथ का श्रवण किया था और अपने  पुत्र के वियोग से उत्पन्न दुख से मुक्ति पाई थी ।

द्वारिका में सत्राजीत नाम का एक भोजवंशी राजा रहता था । वह सूर्य भगवान का परम भक्त था , सूर्य भगवान ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे सम्यन्तक नामक एक मणि दी थी जो हर दिन 8 मण सोना देती थी । एक दिन सत्राजीत के भाई प्रसेनजीत में इस मणि को गले मे धारण करके शिकार खेलने के लिए जंगल गए और वहां एक सिंह के हाथों इनकी मृत्यु हो गई । फिर वह सिंह जम्बुवन्त  के गुफा के समीप गया और जम्बुवन्त ने  उस सिंह  को मार कर वह मणी अपने पुत्र को दे दी ।

इधर द्वारिका में यह किंवदंती फैल गई कि , होना हो श्री कृष्ण ने ही मणि के लोभ  में आकर प्रसेनजीत को मार दिया है और मणि अपने पास रख ली है । जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली तो वे अपने ऊपर लगे इस कलंक को दूर करने के लिए , जंगल में प्रसनजीत की खोज में गए  ।  उन्होंने वहां जंगल में प्रसनजीत को मरा हुआ पाया और पास ही में स्थित सिंह के पद चिन्हों के  पीछे उस गुफा तक गए  जहाँ जाम्बवन्त ने सिंह को मार गिराया था । सिंह को मारा हुआ  देख अपने साथ आए हुए सैनिकों और द्वारिका वासियों से कहा कि , आप लोग यही बाहर मेरा इंतजार कीजिए, मैं अंदर जा कर देखता हूं कि वह मणि कहां है ।

12 दिन तक सैनिक और द्वारिका वासी उस गुफा के बाहर खड़े रहे किंतु श्री कृष्णा से गुफा से बाहर नहीं आए । उसके बाद वे लोग द्वारिका वापस चले आए ,  जब यह बात वसुदेव जी को पता चली की उनका पुत्र गुफा से बाहर नही आया तो उन्हें बहुत दुख हुआ । उसी समय देवर्षि नारद ब्रह्मलोक से वहां आए और उन्होंने वसुदेव जी को आदिशक्ति की पूजा और उनकी अद्भुत लीलाओं का श्रवण करने के लिए कहा । तब वसुदेव जी ने कहा , देवर्षे पूर्व काल में जब मैं कारागृह में बंद था और कंस ने मेरे 6 पुत्रो को मार दिया था तब  मैंने भी कुलगुरुद्वार इन देवी के पूजन से ही श्रीकृष्ण को अपने पुत्र रूप में पाया था । अब आप भी  इन्हीं देवी का ही उल्लेख कर रहे हैं , कृपया आप ही मुझे इनकी महिमा बताने की कृपा कीजिए ।

तब वसुदेव जी ने देवर्षि नारद से देवी की पूजा कराई  और  देवी भागवत की कथा का आरंभ कराया । उधर गुफा में भगवान श्री कृष्ण और जम्बुवन्त का युद्ध पूरे 28 दिनों तक चलता रहा और उन्होंने जम्बुवन्त को हराकर उससे वह सम्यन्तक मणि प्राप्त कर ली ।  जब वसुदेव जी का देवी भागवत का श्रवण समाप्त हुआ और वे ब्राह्मणों को भोजन करा रहे थे उसी नवे दिन भगवान श्रीकृष्ण भी जम्बुवन्त की पुत्री जम्बुवंती को लेकर द्वारका आ गए ।

इस प्रकार वसुदेव जी को श्रीमद् देवी भागवत के श्रवण  से अपने पुत्र के वियोग से उत्पन्न दुख से मुक्ति मिली थी और उनके पुत्र का अपयश भी शांत  हुआ था । इसीलिए मनुष्य को भक्ति मुक्ति और संसार में सुख और संतोष की प्राप्ति के लिए श्रीमद् देवी भागवत का श्रवण करना चाहिए । 



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