एक समय की बात है, भगवान विष्णु ने अपने प्राणों से भी प्रिय पत्नी लक्ष्मी जी को, घोड़ी होने का शाप दे दिया था । इसी कारणवश, लक्ष्मी जी घोड़ी बनकर कर यमुना और तमसा नदी के , संगम स्थान पर रह रही थी । उस स्थान पर रहकर देवी लक्ष्मी ने भगवान शंकर की आराधना की थी । लक्ष्मी जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया । शिवजी ने की , देवी आप शीघ्र ही अपने पति भगवान विष्णु का सानिध्य प्राप्त करोगी । आप एक पुत्र का माता बनने के पश्चात, विष्णु जी के कहे अनुसार इस शाप से मुक्त होकर पुनः वैकुंठ लोक को चली जाओगी ।
लक्ष्मी जी को वरदान देकर ,भगवान शंकर, पार्वती सहित अपने धाम कैलाश पर आ गए । शिव जी ने अपने चित्ररूप को बुलाया और कहा, चित्ररूप तुम अभी इसी वक्त वैकुंठ जाओ । वहां जाकर भगवान नारायण को मेरा एक संदेश कहना । उनसे कहो कि, वे उस स्थान पर जाए, जहां पर भगवती लक्ष्मी घोड़ी का रूप धारण करके रह रही है । शिवजी ने उन्हें यह वरदान दिया है कि, भगवान विष्णु उनसे आकर मिलेंगे । इसीलिए उस वरदान को फलित करने के लिए, भगवान विष्णु यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर जाकर, अपनी पत्नी लक्ष्मी को पुनः वैकुंठ लेकर आए ।
भगवान शंकर की आज्ञा पाकर, चित्ररूप उसी क्षण वैकुंठ को चले गए ।वहां भगवान विष्णु के भवन के पास पहुंचकर, विष्णु जी के द्वारपाल जय और विजय से कहा । आप लोग अंदर जाकर भगवान विष्णु को यह सूचना दीजिए कि, भगवान शिव के दूत चित्ररूप आपसे भेंट करने के लिए आए हैं । चित्ररूप की बात मानकर जय विष्णु जी के भवन में गए । जय ने विष्णु जी से कहा , प्रभु शिवजी के दूत चित्ररूप आए हैं। आप से भेंट करने की इच्छा रखते हैं । क्या मैं उन्हें अंदर बुला सकता हूं । विष्णु जी ने कहा ,जय ,आदर सत्कार के साथ उन्हें अंदर लेकर आओ ।
उसकेबाद, चित्ररूप भगवान विष्णु के भवन में जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं । चित्ररूप वह सारी बातें कह सुनाते हैं जो, भगवान शिव जी ने विष्णु से कहने के लिए कहा था । चित्ररूप की बातें सुनकर विष्णुजी कहते हैं, वत्स मैं अवश्य ही लक्ष्मी जी से भेंट करने जाऊंगा । शिवजी के वरदान अनुसार उन्हें वापस भी लेकर आऊंगा । तुम अभी कैलाश चले जाओ । इतना कहकर भगवान विष्णु यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर आते हैं । वहां देवी लक्ष्मी घोड़ी के रूप में विष्णु जी की प्रतीक्षा कर रही थे । उस समय भगवान विष्णु ने भी एक सुंदर घोड़े का रूप बना लिया था ।
यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर उपस्थित देवी लक्ष्मी ने देखा, एक घोड़ा उनके तरफ आ रहा है । तब वह तुरंत पहचान गई कि वह भगवान विष्णु है । जो घोड़े का रूप धारण करके उनसे मिलने आ रहे हैं । इसके बाद घोड़ा और घोड़ी रूप में स्थित भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का संयोग हुआ । ह जिससे लक्ष्मी जी का गर्भ धारण कर लेती है । समय आने के बाद लक्ष्मी जी एक सुंदर बालक को जन्म दिया । इस बालक का नाम विष्णुजी ने हैहय रखा । बालक को जन्म देते ही भगवान विष्णु, उनकी पत्नी लक्ष्मी जी से कहते हैं, देवी अब तुम अपने वास्तविक दिव्य को धारण करो । हम लोग वैकुंठ को चले जाते हैं । इस बालक को हम यही छोड़ कर चलते हैं । मैंने पहले ही इसके पालन पोषण की व्यवस्था कर दी है ।
देवी लक्ष्मी और विष्णुजी वैकुंठ जाने के लिए तैयार हो गए । तब लक्ष्मी जी पुत्र मोह में पड़कर विष्णु जी से कहती हैं । प्रभु , क्या हम इस बालक को अपने साथ लेकर नहीं जा सकते । यह अकेला बालक इस घने जंगल में यहां पर कैसे रह सकता है । तब विष्णु जी कहते हैं , देवी मेरी बात ध्यान से सुनो । हरिवर्मा नाम के एक राजा है , उन्होंने पुत्र प्राप्ति करने के लिए मेरी तपस्या की है । पूरे 100 वर्षों से मेरी तपस्या कर रहे हैं । मैं अभी उनके पास जाकर उन्हे वरदान देता हूं की, वह मेरे द्वारा उत्पन्न पुत्र को अपना ले । विष्णु जी की बात सुनकर देवी लक्ष्मी शांत हो जाती हैं । उसी क्षण लक्ष्मी और विष्णु दोनों ही उस स्थान पर जाते हैं , जहां हरिवर्मा तपस्या कर रहे होते हैं ।
भगवान विष्णु को, अपने सामने देख हरीवर्मा अति प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं । भगवान विष्णु हरिवर्मा से कहते हैं । हरिवर्मा तुमने मेरे जैसे ही पुत्र की प्राप्तिके लिए 100 वर्षों तक, बहुत ही कठिन तपस्या की है । इसीलिए तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के लिए मैंने एक पुत्र उत्पन्न किया है । इस समय मेरा वह बालक, तमसा और यमुना नदी के संगम स्थान पर है । तुम इसी क्षण वहां जाकर, उसे लेकर अपनी राजधानी को लौट जाओ । भगवान विष्णु का यह वरदान पाकर हरिवर्मा बहुत प्रसन्न हो जाते हैं । उसी क्षण उस स्थान के लिए प्रस्थान कर देते हैं, जहां पर वह बालक था ।
इधर जहां यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर वह बालक उपस्थित था । चंपक नाम के एक राजा अपनी पत्नी मदालसा के साथ आते हैं । बालक को देखते ही, मदालसा के मन में उसे अपना पुत्र बनाने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है । तब चंपक और मदालसा दोनों ही यह पूछने के लिए कि यह बालक किसका है । बालक को लेकर अपने विमान पर बैठकर, इंद्र के पास जाते हैं । चंपक और मदालसा को बालक के साथ वहां आया हुआ देखकर इंद्र कहते हैं । इस बालक को तुम अपने घर नहीं ले जा सकते, क्योंकि यह भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का पुत्र है । भगवान विष्णु ने राजा हरिवर्मा के लिए ही इसे उत्पन्न किया है । इसीलिए तुम इस बालक को लेकर उसी स्थान पर रख दो जहां से लाए हो । क्योंकि राजा हरिवर्मा शीघ्र ही स्थान पर पहुंचने वाले हैं । इंद्र की आज्ञा सुनकर राजा चंपक उस बालक को उसी स्थान पर रखते हैं जहां से उसे लाए थे ।
इतने में ही राजा हरिवर्मा वहां पर पहुंच जाते हैं । वहां पर विष्णुजी के उस पत्र को देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं और उसे लेकर अपने राजधानी को चले जाते हैं । जब मंत्रियों को और रानी को यह पता चला कि, हरिवर्मा पुत्रके साथ राजधानी की ओर आ रहे हैं । तब उन्होंने राजधानी के बाहर जाकर उनका स्वागत किया । उस बालक को देकर हरिवर्मा की पत्नी बहुत ही सुखी हुई । राजा हरिवर्मा ने अपने बालक को समस्त विद्याएं सिखाई और और उस बालक का नाम एकवीर रखा । जब वह बड़ा हो गया, तब उसे राजा बनाकर वे स्वयं ही भगवान की आराधना करने के लिए जंगल में चले गए ।
इस तरह भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के पुत्र एकवीर का जन्म हुआ था और वे राजा हरिवर्मा के घर पले बढ़े थे ।
Categories: देवी भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ
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