भृगुवंशी ब्राह्मण क्षत्रियों के यजमान थे । हैहयवंश में कार्तवीर्य नाम के एक महान राजा हुए । भगवान दत्तात्रेय द्वारा कार्तवीर्य ने देवी जगदंबा के मंत्र की दीक्षा ली थी । भगवती जगदंबा राजा कार्तवीर्य की इष्टदेव थी । राजा कर्तवीर्य सदा दान-धर्म आदि में लगे रहते थे । राजा ने बहुत सारे यज्ञ कराएं । उन यज्ञोंमें अपने आचार्य भृगुवंशी ब्राह्मणों को अनेक प्रकार प्रकार के उपहार दिए और बहुत धन भी दान रूप में दिया ।
कार्तवीर्य के द्वारा दिया गया धन पाकर, भृगुवंशी ब्राह्मण बहुत ही धनवान बन गए । वे लोग उस समय क्षत्रियों से भी अधिक धनवान कहलाने लगे । उन्हें किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी । सारी सुख सुविधाएं उन्हें उपलब्ध थी । महाराज कर्तवीर्य ने बहुत समय तक भूमंडल पर राज किया और स्वर्ग सिधार गए । महाराज के स्वर्ग सिधार जाने के बाद, हैहयवंशी क्षत्रिय निर्धन हो गए और बहुत कष्ट भोगने लगे ।
एक समय की बात है, हैहयवंशी क्षत्रियों को धन की आवश्यकता पड़ गई । इसीलिए उन्होंने अपने राज्य के ब्राह्मणों को धनवान समझकर । उनके पास धन की सहायता मांगने के लिए गए । जब ब्राह्मणों को , क्षत्रियों ने धन मांगा । तब ब्राह्मणों ने कह दिया कि हमारे पास कोई धन नहीं है । क्षत्रियों के बहुत मांगने के बाद भी ब्राह्मणों ने धन नही दिया । उनके पास बहुत सारा धन होते हुए भी उन ब्राह्मणों ने , लोभ में पढ़कर अपने यजमानों को झूठ बोला । ब्राह्मणों ने इस बात पे कोई ध्यान नहीं दिया की यजमान कष्ट भोग रहे है । यजमानों की सहायता का खयाल उनके मन मे आया ही नही ।
क्षत्रिय हमें भय पहुंचाएंगे यह सोचकर । धनवान ब्राह्मणों ने अपने पास स्थित समस्त धन को घरों में गड्ढे खोदकर वहां गाड़ दिया । कुछ ब्राह्मणों ने उस धन को किसी दूसरे वंश के ब्राह्मणों के घर में रख दिया । इसके बाद धन के अभाव में कष्ट पा रहे कुछ बलवान हैहयवंशी विशेष क्षत्रिय स्वयं ही ब्राह्मणों के आश्रम पर आए । उनमें से कुछ यात्रियों ने ब्राह्मणों के घर खोदे, तो उन्हें वहां धन मिल गया । अन्य ब्राह्मणों के घर खोदने के बाद क्षत्रियों को बहुत सारा धन मिल गया । यह जानकर कि क्षत्रियों को छुपाये हुए धन के बारे में का मालूम हो गया । क्षत्रियों से पीड़ित ब्राह्मणों ने, क्षत्रियों से क्षमा मांग ली और उनकी अधीनता स्वीकार कर ली ।
ब्राह्मणों के, क्षत्रियों की अधीनता स्वीकार करने के बाद भी ,उन क्षत्रियों ने ब्राह्मणों पर अपना क्रोध नहीं छोड़ा । जहां कहीं भी भृगुवंशी ब्राह्मण मिल जाते , क्षत्रिय उन्हें उनमारते रहते । इससे भयभीत होकर, सारे भृगुवंशी ब्राह्मण पर्वतों की कन्दराओं में जाकर रहने लगे । लेकिन वहां भी वह क्षत्रिय ब्र पहुंच गए और भृगुवंशी ब्राह्मणों को कष्ट पहुंचाने लगे । इससे बहुत सारी गर्भवती महिलाएं का गर्भपात हो गया । अपने कुल का नाश होने के भय से, बहुत सी भृगुवंशी ब्राह्मण स्त्रियां हिमालय पर चली गई । वहां पर कुटिया बनाकर रहने लगी ।
ब्राह्मण महिलाओं ने, वहां पर नदी के तट पर गौरी की मूर्ति बनाकर ,भगवती जगदंबा की आराधना आरंभ कर दी । कुछ दिन बीतने के बाद ,एक रात को भगवती जगदंबा ने उन महिलाओं के सपने में आकर कहा । तुम में से किसी एक स्त्री के गर्भ से, एक बालक उत्पन्न होगा । वह आपने माता की जांघ फाड़ कर संसार में प्रकट हो जाएगा । वह मेरा ही एक अंश होगा ,उस बालक के द्वारा तुम्हारे कुल की रक्षा होगी । इसीलिए तुम भयभीत मत हो। कुछ दिनों में जब उन क्षत्रियों को पता चला की , भृगुवंशी स्त्रियां हिमालय पर्वत पर चली गई है । तो वे क्षत्रिय वहां पर भी आ गए ।
यह जानकर की, हैहयवंशी क्षत्रिय हिमालया आ गए । उन महिलाओं में से एक गर्भवती महिला ने, अपने गर्भ की रक्षा करने के लिए वहां से भागने लगी । उसे देख कर क्षत्रिय भी उसके पीछे भाग ने लगे । उस समय वह महिला यह सोच रही थी कि, अब मैं क्या करूं, मेरी सहायता करने वाला तो कोई नहीं है । कहां जाऊं, इन क्षत्रियों से कैसे बचूं । वह क्षत्रियों के सामने हाथ जोड़कर ,अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगी । गर्भ में स्थित उस बालक ने यह जाना कि उसके माता के प्राण संकट में है । उसकी सहायता करनेवाला कोई नहीं है । क्षत्रियों से अपने प्राणों की भिक्षा मांग रही है ।
अपनी माता की स्थिति देखकर, वह बालक उसी क्षण माता की जांघ फाड़कर बाहर निकल आया । वह बहुत ही तेजस्वी था, उसके तेज को देखकर उसी क्षण वहां उपस्थित सारे क्षत्रिय अंधे हो गए । उस समय क्षत्रिय कुछ ना दिखने के कारण बहुत ही भयभीत हो गए । उन्हें अपनी भूल का पता चल गया, उन्होंने उस महिला से कहा , देवी आप हमें क्षमा कर दीजिए । हम लोगों ने लोभ में पढ़ कर ब्राह्मणों को मारने का यह दुष्कर्म कर दिया । आपकी शक्ति से हमारे नेत्र चले गए । आप हम पर कृपा कीजिए और हमें अपनि आंखें फिर से लौटा दीजिए ।
क्षत्रियों की बातें सुनकर उस महिला ने कहा, क्षत्रियों मैंने अपने पुत्र को 100 वर्षों तक अपने गर्भ में धारण कर रखा था । भय के कारण ही मैंने इसका प्रसव नहीं कराया था । इसे मैंने समस्त विद्याएं पढ़ाई है और यह भगवती जगदंबा का परम भक्त है । मैंने इसे उन आदिशक्ति के मंत्र भी दिए हैं । आपकी जो यह दशा हुई है ,यह मेरे पुत्र की शक्ति से ही हुई है । इसीलिए अगर आप क्षमा मांगना चाहते हो तो मेरे इस पत्र से मांगो । वही यह निर्णय लेगा कि आपको क्षमा करना चाहिए या नहीं ।
उस महिला की बातें सुनकर क्षत्रियों ने उस उस बालक से क्षमा मांगी । क्षत्रियों की बातें सुनकर, देवी के अंश से प्रकट, करुणामई बालक ने उन यात्रियों को क्षमा कर दिया । उसके बाद सारे क्षत्रिय अपने स्थान को वापस चले गए । उन्होंने भृगुवंशी ब्राह्मणों को मारना भी बंद कर दिया । सारे ब्राह्मण पुनः अपने राज्य में लौट कर सुख से जीवन व्यतीत करने लगे ।
इस तरह देवी के अंश से प्रकट बालक ने भृगुवंशी ब्राह्मणों का हैहयवंशी क्षत्रियीं से रक्षा की थी ।
Categories: देवी भागवत पुराण
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