
महाभिष नाम के एक राजा थे । ये राजा बड़े ही धर्मात्मा थे इन राजा ने अनेक पुण्य कर्म किया था और चमरावर्ती राजा थे । इन राजा ने अनेक सत्कर्म और सौ अश्वमेध यज्ञ किये जिसके फलस्वरूप ये राजा स्वर्ग के अधिकारी होगये और स्वर्ग जाकर वहां आनंद से रहने लगे ।
एक दिन ब्रह्मा जी की सभा चल रही थी जिसमे सारे देवता थे । अपने धर्म कर्म के बल के कारण महाराज महाभिष भी उस सभा मे उपस्थित थे । उसी समय गंगा वहां आयी , कुछ समय बाद जोर से हवा चल और गंगा के वस्त्र इधर उधर हो गए । सारे देवताओं ने , गंगा को इस हालत में नही देखना चाहीये ये सोचकर अपनी आंखे नीचे करली । राजा महाभिष जो बड़े धर्मात्मा थे उनोहनें आंखे नीची नही की वे गंगा जी को देख मोहित होगये और गंगा की और ही देखने लगे । सभी देवताओं से और ब्रह्मा स्तिथ ऐसी सभा मे देवी गंगा भी राजा महाभिष की ओर ही देख रही थी । ये दोनों काम मोहित होगये थे इसीलिए एक दूसरे की तरफ देखने नही रोक सके ।
जब ब्रह्मा जी ने देखा कि महाभिष और गंगा जी इस तरह एक दूसरे को देख रहे है और सारे देवता आंखे झुकाये खड़े है , उन्हे बड़ा क्रोध आगया । ब्रह्मा जी ने राजा महाभिष को अपनी उद्दंडता के लिए शाप दिया कि राजा पृथ्वी लोक में मनुष्य रूप में जन्म ले और जब वे वहां धर्म कर्म करके पुण्य कमाएंगे तभी फिर से स्वर्ग आने के अधिकारी हो जाएंगे । गंगा जी को भी ब्रह्मा ने कहा देवी तुम इस कृत्य में समान भागीदार हो इसीलिए तुम भी मनुष्य बनकर जन्म लो ।
इसी शाप के कारणवश महाभिष राजा मनुष्य रूप में जन्म लेकर शांतनु बने और गंगा जी भी मनुष्य का रूप लेकर आई । एक दिन जब राजा शांतनु शिकार खेलने के बहाने गंगा तट पर गए थे तब गंगा भी मनुष्य रूप बनकर वही आयी । शान्तनु को देखर गंगा पहचान गयी कि ये राजा महाभिष ही है जो मनुष्य रूप में जन्म लिया है । उन्हें देख कर गंगा जी को उनका पूर्व काल का प्रेम प्रसंग याद आगया । शान्तनु भी गंगा को देख कर मोहित होगये और उनके पिता के वचन अनुसार गंगा से विवाह के लिए पूछा ।
गंगा जी तुरंत ही मान गयी । गंगा जी ने शान्तनु के सामने शर्त रखा कि , राजा तुम यदि मुझसे कोई सवाल पूछोगे या कभी मुझको कभी मेरे कर्मो का कारण पूछोगे तो मैं तुम्हें छोड़ के चली जाऊंगी । राजा ने ये शर्ते मान ली और गंगा से विवाह कर लिया । राजा शान्तनु के और गंगा जी के सात पुत्र हुए जिनको गंगा ने जन्म लेते ही पानी मे डुबोकर मार दिया जो शापित वसुगण थे , राजा ने इस भय से की गंगा छोड़ कर चली जायेगो कभी गंगा को नही रोका । परंतु आठवे पुत्र के समय राजा को रोक लिया इसीलिये गंगा उस बालक को लेकर चली गयी । जो आगे चलकर भीष्म के नाम से जनेगये ये भी एक शापित वसु ही थे ।
इसतरह गंगा जी का शान्तनु राजा से विवाह हुआ था ।
Categories: महाभारत
Leave a Reply