
महाराज परीक्षित पांडु वंश के बड़े प्रतापी राजा थे । अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के ये पुत्र थे । कुरुक्षेत्र के युद्ध होने के छत्तीस वर्ष बाद पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने परीक्षित को राज सिंहासन पर बिठा कर स्वयं हिमालय चले गए । राजा परीक्षित उस समय छत्तीस वर्ष के थे । राजा होने के बाद साठ वर्ष तक परीक्षित ने बड़ी श्रद्धा और धर्म पूर्वक राज किया । एक दिन राजा शिकार खेलने के बहाने जंगल गए , थक जाने के कारण उन्हें प्यास लगी तो वे एक मुनि के आश्रम पर गए ।
राजा परीक्षित जब मुनिवर के आश्रम पर गए तो मुनि ध्यान में मग्न थे इससे वे राजा का यथोचित आदर सत्कार नहीं कर पाए । तब कली कल प्रारंभ होगया था , उसकी प्रभाव से राजा ने मुनिवार के इस व्यवहार को अपना अपमान समझा और वही पड़े एक मेरे हुए साप को मुनि के गले में डाल कर वहा से चले गए । जब ये बात मुनि के पुत्र को पता चली तो क्रोध में आकर उसने राजा को शाप दे दिया कि , ये घमंडी राजा आज से सातवीं रात तक्षक नग के काटने से मर जाएगा ।
जब राजा को ये बात चली तो , राजा ने अपने मंत्रियों को बुलाया और पूछा कि क्या करना चाहिए । मंत्रियों ने सुझाया कि वे इतनी सुरक्षा में रहे कि तक्षक नग वहा आ ही ना सके और चारो ऐसे कई ब्राह्मणों को बुलवाया जो अनेक मंत्रो को जानते थे , ये सारे ब्राह्मण राजा की सुरक्षा के लिए अपनी पूरी शक्ति लगाकर मेहनत कर रहे थे । कश्यप नाम का एक ब्राह्मण था जो अती विद्वान और ऐसे मंत्रो को जनता था जो तक्षक नग के विष के प्रभाव से किसी को भी बचा सकता था । विद्वान होने के साथ ही ये ब्राह्मण धन का लोभी भी था , इसीलिए राजा को तक्षक से बचकर उनसे धन प्राप्त करने के विचार से कश्यप नाम का ओ ब्राह्मण हस्तिनापुर को चल दिया ।
मुनिकुमार ने परीक्षित को शाप दे दिया , ये बात तक्षक के कानों तक भी पहुंची तो ओ मुनि शाप के भय से राजा के प्राण लेने हस्तिनापुर की और चला । रास्ते में तक्षक को कश्यप ब्राह्मण मिला । तक्षक ने ब्राह्मण को पूछा कि वो इतनी जल्दबाजी में कहा जा रहा है । उसकी बात सुनकर कश्यप ब्राह्मण ने कहा कि ओ राजा परीक्षित के महल जा रहा है । राजा परीक्षित को तक्षक के विष से बचकर उनसे धन पाने को जा रहा है । उसे ऐसे मंत्र विदित है जिससे ओ राजा को अगर आयु शेष हो तो पुनः जीवित कर सकता है । कश्यप की बाते सुनकर तक्षक ने कहा कि अगर उसके पास ऐसी विद्या है तो ओ उसका प्रमाण दे । तक्षक ने वही एक पेड़ को डस लिया जिससे ओ पेड़ भस्म होगया , बादमें कश्यप ने उस राख को लेकर उसपे अपने मंत्रो से अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे पेड़ पहले जैसे ही हरा भरा होगया ।
कश्यप की उस विद्या को देख तक्षक ने ब्राह्मण से कहा कि ओ उसे सारे ओ वस्तु दे देगा जिसकी इच्छा हो । तक्षक ने सोचा कि अगर मै लालच में आकर धन लूंगा तो मेरी बदनामी होगी । राजा को बचाया तो धन , यश दोनों मिलेंगे और मुझपर प्रजा को अनाथ करने का पाप भी नही लगेगा , क्यूंकि धर्मात्मा राजा के न होने पर प्रजा अनाथ और भ्रष्ट हो जाती है । उस ब्राह्मण ने जब अपने तपोबल से ये देखा राजा की आयु समाप्त हो गई है तो कश्यप ब्राह्मण धन लेकर अपने घर चला गया ।
तक्षक नाग ने तब अपने कुछ नाग मित्रों को बुलाया और उने ब्राह्मण वेश में परीक्षित के उस महल में भेजा जहां वो अति सुरक्षा के बीच थे । तक्षक स्वयं एक फल में कीड़े का रूप लेकर बैठ गया । सुरक्षा सैनिकों ने उन ब्राह्मणों को राजा के पास नहीं जाने दिया लेकिन ब्राह्मण वेषधरी नगो ने बहोत मेहनत कर उन फलो को राजा तक पहुंचा दिया । सातवे दिन का सूर्यास्त होने वाला था इसीलिए राजा कुछ निश्चिंत होगया थे और फल खाने लगे तभी तक्षक फल से निकलकर कीड़े से साप के रूप में परिवर्तित होकर राजा को डस लिया ।
तक्षक के डस ते ही राजा की मृत्यु होगायी और वे परलोक सिधार गए । इस तरह अभिमन्यु पुत्र परीक्षित की मृत्यु होने के बाद उनके पुत्र जनमेजय राजा बने । परीक्षित ने इन सात दिनों में शुकदेव जी द्वारा भागवत पुराण का श्रवण करके मुक्ति भी पली ।
Categories: महाभारत
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