सत्यवती और शांतनु के विवाह की कथा

महाराज शांतनु हस्तिनापुर की सम्राट थे । देवी गंगा और उनका विवाह हुआ था । विवाह के समय रखे गए शर्त को तोड़ने के कारण गंगा शांतनु को छोड़कर चली गई थी इसीलिए शान्तनु अकेले ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । एक समय की बात है महाराज शिकार करते हुए घने जंगल में चले गए बहुत दूर जाने के बाद वे यमुना नदी के किनारे आ गए ।

यमुना नदी के तट पर आने के बाद महाराज शांतनु ने नदी के तट पर एक सुंदरी स्त्री को देखा । उस स्त्री को देख कर महाराज ने उसे पूछा – देवी तुम कोन हो , यहां इस नदी के तट पर क्या कर रही हो , कोंन तुमारा पिता है, किसकी बहन या किसकी स्त्री हो । राजा शान्तनु की ये बात सुनकर नदी तट पर स्तिथ उस स्त्री ने कहा । महाराज मैं निशादराज की पुत्री हुं , पिता के आदेश पर मैं यहां केवट का काम कर रही हूं , हमारे परिवार का यही धर्म है । मैं किसी की भी स्त्री नहीं हूं और मत्स्य राज की बहन हूं । मेरा नाम मत्स्यगंधा है ।

उस स्त्रीकी बातें सुनकर राजा ने कहा देवी मैं हस्तिनापुर का राजा शांतनु हूं । राजा मत्स्यगंधा पर मोहित हो गए थे और उसे अपनी पत्नी बनाने का मन बना लिया था । इसीलिए उन्होंने पूछा देवी मैं तुमसे विवाह करने की इच्छा रखता हूं मैं तुम्हें यह आश्वासन देता हूं कि अपने साथ ले जाकर मैं तुम्हें मेरे राज्य की महारानी बनाऊंगा । इस समय मैं बिना स्त्री के ही रह रहा हूं क्योंकि मेरी पत्नी गंगा मुझे छोड़ कर चली गई है । राजा की बातें सुनकर मत्स्यगंधा ने कहा महाराज मुझे इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं है किंतु यह निर्णय लेने में मैं स्वतंत्र नहीं हूं आप कृपया मेरे पिता से मेरा हाथ मांग लीजिए अगर वह सहमति दे देंगे तो मैं आपसे अवश्य विवाह कर लुंगी ।

मत्स्यगंधा के यूँ कहने पर महाराज शांतनु वहां गए जहां पर मत्स्यगंधा के पिता निषादराज रहते थे महाराज को वहां आए देख मत्स्यगंधा के पिता ने अति प्रसन्न होकर उनका आदर सत्कार किया । आदर सत्कार होने के बाद राजा शान्तनु ने कहा मैं आपसे कुछ मांगने के लिए यहां पर आया हूं आप मुझे ना तो नहीं कहेंगे । राजा शान्तनु की बात सुनकर मत्स्यगंधा के पिता ने कहा महाराज अगर वस्तु देने योग्य हो तो उसे अवश्य दे देना चाहिए यदि आप मुझसे ऐसी कोई वस्तु मांगेंगे तो मैं अवश्य ही आपको ना नहीं कहूंगा । तब राजा शान्तनु ने अपने मन की बात मत्स्यगंधा के पिता से कहा ,राजा की बात सुनकर मत्स्यगंधा के पिता कहने लगे,यह मेरे लिए अति प्रसन्नता की बात है कि मैं अपनी पुत्री आपको सौंप दु , मैं इसके लिए तैयार हूं ।

मत्स्यगंधा के पिता ने महाराज से कहा मैं आपको अपनी पुत्री अवश्य दूंगा किंतु मेरी एक शर्त है कि मत्स्यगंधा का पुत्र ही आगे आपका उत्तराधिकारी बने बस इतनी सी एक शर्त के साथ मैं अपनी पुत्री आपको सोपुंग । मत्स्यगंधा के पिता की बात सुनकर राजा निराश हो गए, क्योंकि वे पहले ही उनके पुत्र देवरथ को राजा घोषित कर चुके थे और वहां से वे अपने राजधानी को लौट आए । राजधानी आने के बाद राजा बड़े ही निराश रहने लगे किसी भी वस्तु या कार्य में उनकी कोई आसक्ति नहीं रह गई थी ।

अपने पिता को इसतरह अत्यंत ही विचलित देखकर देवरथ ने उनसे पूछा , पिता जी आपको कौन सी बात सता रही है कृपया मुझे बताने की कृपा करें मैं अभी उस समस्या का समाधान कर देता हूं । हिचकिचाहट वश शांतनु अपने पुत्र से मत्स्यगंधा से विवाह करने की इच्छा को व्यक्त नहीं कर पाए । देवरथ भी पिता से कोई उत्तर न पाकर मंत्रियों के पास जाकर कहने लगे ,मंत्रियों तुम अभी मेरे पिता के पास जाओ और उनकी समस्या का और दुख का कारण पूछ कर मुझे बतलाओ मैं शीघ्र ही उनके उस दुख को दूर करने का प्रयत्न करूंगा ।

सारे मंत्री गण महाराज के पास जाकर उनसे पूछने पर उन्हें मत्स्यगंधा के बारे में सब पता चल जाता है और वे सारी बातें युवराज देवरथ को बताते हैं । प्इसके बाद देवरथ मत्स्यगंधा के पिता के पास जाकर उनसे कहते है , हे केवटराज यदि आप चाहते हैं की माता मत्स्यगंधा का पुत्र ही आगे चलकर हस्तिनापुर का राजा बने तो मैं यह वचन देता हूं कि मैं कभी भी हस्तिनापुर का राजा नहीं बनूंगा । तब निषादराज कहते हैं युवराज आप तो राजा नहीं बनेंगे किंतु यदि आपका पुत्र बलपूर्वक मत्स्यगंधा के पुत्र से राज्य छीन लेगा तो क्या होगा । यह बात सुनकर देवरथ कहते हैं है तात मैं आज अपनी माता गंगा को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा लेता हूं कि मैं विवाह नहीं करूंगा और आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा ।

देवरथ की यह प्रतिज्ञा सुनकर मत्स्यगंधा के पिता शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह करा देते हैं और महाराज शांतनु अपने पुत्र देवरथ कि ये प्रतिज्ञा सुनकर उन्हें भीष्म का नाम देते हैं ।

इस तरह शांतनु और सत्यवती का विवाह हुआ था ।



Categories: महाभारत

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