एक बार भगवान श्रीकृष्ण गोलोक में , रासमण्डल में विराजमान थे । भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधा जी के शरीर जलमय होने से उत्पन्न श्री गंगा जी ने एक सुंदर स्त्री का रूप धर के वहीं आयी जहा भगवान श्रीकृष्ण विराजमान थे । वे देवी गंगा भगवान श्रीकृष्ण के रूप से मोहित होकर उन्हें ही बार बार देख रही थी । श्रीकृष्ण भी कभी कभी श्री गंगा जी के और देख रहे थे । इतने में श्री राधा जी वहाँ पधारी । इन्हे देखकर गंगा जी का मन तृप्त नही हो सका इसीलिए ओ उन्हें बार बार निहार रही थी ।
भगवान श्रीकृष्ण और श्री गंगाजी को यूं एक दूसरे को निहारते देख राधा जी को क्रोध आगया और वे श्रीकृष्ण से कहने लगी । मैंने तुम्हें पहले विरजा नाम की गोपी के साथ देखा था जिसने अपना शरीर त्याग कर नदी का रूप धारण कर लिया था । जब मैंने तुम्हें क्षमा, प्रभा , शांति, शोभा नाम की गोपियों के साथ देख लिया था तब इन सबने अपना शरीर त्यग कर दिया और बाद में तुमने इनसे उत्पन्न गुणों को सभी देवताओं मे बांट दिया था । भगवान श्रीकृष्ण से यूँ कहकर राधा जी ने गंगा जी को कुछ कहना चाहा ।
गंगा योग में प्रवीण थी , उनोहनें योग से राधा जी का मनोभाव जान लिया और बीच सभा मे अंतर्धान होकर जल रूप में प्रकट होगयी । श्री राधा ने ये जान लिया कि गंगा जी जल के रूप में परिवर्तित होगयी है तब क्रोध में आकर वे उन जलरूपा गंगा जी को हाथ मे लेकर पीने लगी । गंगा जी जो जल और द्रव की अधिष्ठात्री देवी है सारे सृष्टि के जल को समेट कर भगवान श्रीकृष्ण की शरण लेकर उनके के चरणों मे लीन होगयी । तब राधा जी ने उन्हें गोलोक, वैकुंठ और ब्रह्मादि लोको में खोजा लेकिन वे कही नही मिली । उस समय सारी सृष्टि में जल का अभाव होगया था इसीलिए ब्रह्मा,विष्णु, शिव आदि सारे देवता गोलोक गए और भगवान श्रीकृष्ण से उनकी समस्या कह सुनाई ।
देवताओं की बात सुन कर श्रीहरी ने कहा कि गंगा जल रूप में आप लोगो के साथ सारे ब्रह्मांडो में अवश्य आएगी लेकिन श्री राधा जी उनपर बहोत क्रोधित है क्यों कि गंगा जी मुझसे आकर्षित होकर मुझे ही देख रही थी । राधा जी के भय के कारण अब गंगा मेरे चरणों मे लीन होगयी है । आप लोग श्री राधा जी को मानलो तो गंगा मेरे चरणों से निकलकर आप लोगो के साथ आएगी । तब देवताओं ने श्री राधा जी की स्तुति की और राधा जी से कहा , कि गंगा जी को ओ उनके साथ गोलोक से जल का अभाव दूर करने के लिए भेजे । देवताओं की यूँ स्तुति करने पर राधा जी शांत होगयी और गंगा जी को क्षमा करके उनको गोलोक से भेजने के लिए मान गई ।
बाद में गंगा जी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों से निकल कर सबके सामने स्त्री रूप में आई जिन्हें ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में भर लिया । भगवान के चरणों से निकलने के कारण गंगा जी को विष्णुपदी भी कहा जाता है । इस तरह गंगा जी को गोलोक छोड के आना पड़ा था ।
Categories: श्री कृष्ण की कथाएँ
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