एक समय की बात है कार्तिकी पूर्णिमा के अवसर पर गोलोक में राधा महोत्सव मनाया जा रहा था । इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण ने श्री राधा जी पूजा की , उसके बाद ब्रह्मा और शिव आदि सहित समस्त देवता भी श्री राधा जी की पूजा करके वहीं रासमण्डल में बैठ गए । तब सरस्वती जी ने अपनी विणा हाथ में लिए मधुर स्वर से गीत गाना आरंभ कर दिया । उनका यह संगीत सुनकर सारे देवता बहुत ही प्रसन्न हुए ।
ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी को एक रत्नों से बना हार उपहार में दीया, महादेव ने इन्हें एक अमूल्य मणि भेंट की । भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त रत्नों में श्रेष्ठ कौस्तुभ मणि भेंट की , राधा ने अनुपम रत्नों से निर्मित एक अमूल्य हार भेंट में दी । भगवान नारायण ने एक पुष्पों की माला भेंट की , देवी लक्ष्मी ने अमूल्य रत्नों के दो कुंडल भेंट किए । ईशाना, दुर्गा , विष्णुमाया , नारायणी और ईश्वरी आदि नामों से जाने जानी वाली मूलप्रकृति ने सरस्वती जी के अन्तःकरण में अति दुर्लभ परमा भक्ति प्रकट की । धर्म ने धार्मिक बुद्धि दी और समस्त जगत में इनकी कीर्ति विस्तृत की । इस प्रकार सारे देवताओं ने देवी सरस्वती को उपहार स्वरूप अनेक रत्न देकर उनका अभिवादन किया ।
इतने में ब्रह्मा जी के प्रेरित करने पर महादेव जी ने श्री कृष्ण संबंधी पद्य बार-बार गाना आरंभ कर दिया । यह संगीत सुनकर सारे देवता मूर्छित से हो गए, ऐसा लगता था कि सारे पुतले हैं । बड़े कष्ट से कुछ समय बाद सब को चेतना हुई , तब उन्होंने देखा की रासमण्डल में समस्त और जल ही जल भरा पड़ा है उन्हें श्री कृष्ण और श्री राधा जी का कहीं पता नही चला । तब तो सारे देवता ऋषि गण और गोप गोपियां जोर जोर से रोने लगे ।
उस समय ब्रह्मा जी भी वही थे उन्होंने ध्यान के द्वारा भगवान श्री कृष्ण का विचार जान लिया , उन्हें यह पता चल गयी कि भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा ही जल के रूप में परिवर्तित हो गए हैं । तब सारे देवता भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे कि , प्रभु आप हमें अपनी मूर्ति रूप में फिर से दर्शन कराइए । तब बहुत ही मधुर स्वर में आकाशवाणी हुई , देवताओं मैं और मेरी शक्तिस्वरूपा श्री राधा जी ने ही इस जलमय रूप को को धारण किया है । हमारे मूर्तिरूप से तुम्हें क्या प्रयोजन और यदि तुम हमारे मूर्ति रूप के दर्शन करना ही चाहते हो तो , ब्रह्मा जी, शिवजी से कहिए कि वे मंत्रों से युक्त वेदों का अंगभूत तंत्रशास्त्र का निर्माण करें । जिसमें सारे मंत्र और उनकी शक्ति उपस्थित हो और मेरे कवच का भी निर्माण करें यदि महादेव ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं तो मैं श्री राधा सहित मेरी मूर्ति रुप का दर्शन दूंगा ।
इसके बाद ब्रह्मा जी के अनुग्रह करने पर महादेव जी तंत्र शास्त्र के निर्माण के लिए मान गए और महादेव जी ने , श्री कृष्णा और राधा स्वरूप उस जल को हाथ में लेकर , प्रतिज्ञा की कि वे श्री कृष्ण के आदेश का पालन करेंगे और बाद में उन्होंने भगवती जगदंबा के मंत्रों से संपन्न उत्तम सात्विक तंत्रशास्त्र का निर्माण किया । महादेव की यूँ प्रतिज्ञा लेने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा जी तुरंत ही रास मंडल में अपने मूर्ति रूप में प्रकट हो गए । जिससे सारे देवता अति प्रसन्न हो गए और आनंद में भरकर फिर से उत्सव मनाया ।
इस प्रकार गोलोक में स्वयं परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण ही श्री राधा जी के साथ जल में रूप में प्रकट हुए थे इनके जलमय रूप को ही गंगा कहा जाता है ।
Categories: श्री कृष्ण की कथाएँ
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