पूर्व काल मे सगर नाम के एक सूर्यवंशी राजा हुए थे जिन की दो पत्नियां थी वैदर्भी और शब्य्या । शब्य्या का पत्र परम प्रतापी और कुल को पावन करने वाला असमंजस था । वैदर्भी ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना की थी । उनके वरदान से उन्हें गर्भधारण हुआ । 100 वर्षों के पश्चात उन्होंने एक मांस पिंड को उत्पन्न किया । उसे देखकर वैदर्भी को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया । भगवान शिव एक ब्राह्मण मे के रूप में वहां आए और उन्होंने उस मांसपिंड के 60000 तुकडे कर दिया जिससे 60,000 सागर पुत्र हुए । ये सारे सगर पुत्र अति बलवान और शूरवीर थे ।
महाराज सागर के ये सारे तेजस्वी पुत्र महामुनि कपिल के शाप से जलकर भस्म होगये । ये बात जानकर महारज सागर को बहोत दुःख हुआ । वे बेचारे दुखवश घोर जंगल मे चले गए । उनके पुत्र असमंजस ने गंगा जी को लाने के लिए तपसया की किन्तु काल ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया । असमंजस के पुत्र अंशुमान ने भी गंगा को लाने के विचार से तपसया की किन्तु बिना सफलता पाई मृत्यु को प्राप्त होगये । अंशुमान के पुत्र भगीरथ थे ।
भागीरथ परम भागवत थे, भगवान श्री हरि के चरणों में उनकी अटूट श्रद्धा थी । वैष्णवो में श्रेष्ठ महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को शाप से मुक्त करने के लिए गंगा जी की तपस्या करना आरंभ कर दी । बहुत दिनों तक तपस्या के बाद अंत में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हीं उनके सामने प्रकट हुए । उस समय भगवान ने द्विभुज रूप धारण कर रखा था । उनके हाथ में मुरली थी ,सर पर मोर पंख था और उन्होंने अनेक आभूषण धारण किए थे और सुंदर वस्त्रों को पहन रखा था । महाराज भगीरथ के सामने अपने मूल गोप रूप में प्रकट हुए थे ।
ब्रह्मा विष्णु शिव आदि समस्त देवता भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति कर रहे थे । श्री कृष्ण के रूप को देखकर महाराज भगीरथ अति प्रसन्न हुए और बार-बार उन्हें प्रणाम कर रहे थे । उन्हें भगवान से अपना इच्छित वर प्राप्त हो गया था , कि उनके पूर्वज तर जाएं । तब भगवान श्रीकृष्ण ने गंगा को आदेश दिया कि, देवी सरस्वती के शाप को पूरा करने के लिए वे महाराज भगीरथ के साथ भारतवर्ष में जाए और सागर पुत्रों को सद्गति प्रदान करें । वहां रहकर इस भूमि को पावन करें , जो भी तुम्हारे जल में स्नान करेगा वह सारे पापों से मुक्त हो जाएगा और मेरे भक्तों की स्पर्श से पापी जनों के पाप से भी मुक्त हो जाओगी । कलियुग के 5000 वर्ष पूरा होने तक तुम भारतवर्ष में ही रहोगी उसके बाद मेरे लोग में मेरे समीप आ जाओगी ।
इसके बाद भागीरथ में देवी गंगा की पूजा की और उनकी स्तुति करके उन्हें भगवान के आदेश अनुसार अपने साथ आने के लिए प्रार्थना की । जब गंगा की भगीरथ के साथ यों यात्रा आरंभ हो गई , तब भगवान श्रीकृष्ण वही अंतर्धान हो गए । गंगा भगीरथ के साथ उस स्थान पर गयी जहा सागर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के शाप से जलकर भस्म हो गए थे उनके स्पर्श मात्र से सारे भगीरथ पुत्र मुक्त होकर भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक में चले गए ।
इस तरह देवी गंगा वहारतवर्ष में आई और भगीरथ के द्वारा पृथ्वी पर भारतवर्ष में लाये जाने के कारण देवी गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है ।
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