प्राचीन समय मे दुर्गम नाम का एक दैत्य था । वेद देवताओं का बल है और यदि वेद देवताओं के पास ना रहे तो ओ दुर्बल होजाएंगे ये सोचकर उसने वेदों को प्राप्त करनेके लिए, हिमालय पर जाके ब्रह्मजीकी तपस्या की । ब्रह्माजी को प्रसन्न करके उसने वेद और देवताओं को परास्त करने का बल भी प्राप्त कर लिया ।
तब सारे ब्राह्मण वेद भूल गए , नदियां ,तालाब कुएं सब सुख गये , पृथ्वी पर एक बूंद भी जल नही रहा , बहोत सारे जीव म्रत्यु को प्राप्त होगये । घर – घर मे लाशें बिछ गयी । दुर्गम से परास्त देवता गुफाओं और कंदराओं में जाकर छिप गए । ये सब देख कर सारे ब्राह्मण हिमालय पर जाकर देवी की स्तुति और आराधना करने लगे । इनकी स्तुति से प्रसन्न होकर देवी अपने अनंत नेत्रो वाले रूप में प्रकट हुई और अपने अनंत नेत्रों से जलधारा गिरने लगी, इससे सारे तालाब , नदियां भर गये और समुद्र का जल भी बढ़ गया । देवीने समस्त प्राणियों को खाने के लिए अनेक प्रकार के शाक भी दिए जिन से सारे जीव तृप्त हो गए । अपने अनंत नेत्रो से प्रकट होने के कारण इनका नाम शताक्षी और प्राणियों को शाक देने के कारण इनका नाम शाकम्भरी पढ़ा ।
दूत से ये सारी बाते जानकर दुर्गम ने अपनी सारी सेना को युद्ध के लिए सज्ज किया और युद्ध करने के लिये जहा देवी उपस्थित थी वहां पहुंचा और ब्राह्मणों के साथ देवताओं को अपनी एक अक्षोहिणी सेना से घेर लिया ।
सभी ब्राह्मण और देवताओं में यह देख कर हलचल मच गई , तब देवी ने उनकी रक्षा के लिए तेजोमय चक्र खड़ा करदिया और स्वयं अकेले ही बाहर निकल गयी और दुर्गम के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया । देवि और दैत्य दोनो की बाणों से सूर्यमंडल ढक गया , बाणों के टकराने की ध्वनि से सारी दिशाएं गूंज गयी ।
तत्पश्यात देवी के शरीर से बहोत सी उग्र शक्तियां प्रकट हुई । कालिका , तारिणी , बाला,बगला, त्रिपुरा,भैरवी , रमा,मातंगी, त्रिपरसुन्दरी, कामाक्षी, देवी तुलजा, जम्भिनी,छिन्नमस्ता,मोहिनी, गुह्यकाली और दशसाहस्त्रबाहुका आदि नामवाली बत्तीस शक्तियां बादमे चौसंठ और अनगिनत शक्तियां प्रकट हुई । इन सब देवियों के भुजाओं में आयुध थे और ये सारी देवियों ने मिलके दानवों की बहोत सारी सेनाका अंत कर दिया । अपनी सारी सेना का यूँ अंत होते देख दुर्गम अब स्वयं ही युद्ध मे आकर देवियों के सामने खड़ा होगया ।
दस दिनमे दानवों की ओ सारी सेना मर – खप गयी जहां ये युद्ध हो रहा था वहां रक्त बहनेवाली नदी ही होगयी । इसके बाद ग्यारहवे दिन दुर्गम ने बड़े उत्साह से युद्ध करके सारि शक्तियों को जीत लिया और अपना रथ देवी के रथ के सामने लाके खड़ा कर दिया । तब देवी और दुर्गम में दोपहर तक भयानक युद्ध हुआ , दोपहर के युद्ध के बाद देवी ने पंद्रह बाण छोड़े , इनमे चार बाणों ने चार घोड़ो का ,एक बाण ने सारथी का अंत किया । दो बाण दुर्गम के नेत्रो में , दो बाण उसके भुजाओ में, एक बाण ध्वज में और पांच बाण दुर्गम की छाती में जाकर उसकी छाती को चीर डाला । इससे दुर्गम का अंत होगया । दुर्गम के अंत के बाद देवता और ब्राह्मण देवी की स्तुति करने लगे ।
देवी ने दुर्गम नामके दैत्य का अंत किया इसीलिए वे संसार मे दुर्गा देवी के नाम से विख्यात हुई ।
Categories: बिना श्रेणी
दुर्गा नाम के पुर्व देवी का क्या नाम था
देवी को आदिशक्ति कहा जाता है , आद्याशक्ति कहा जाता था , जगदम्बा कहा जाता था ,