भगवती जगदंबा की कृपा से लक्ष्मीपुत्र एकवीर और राजकुमारी एकावली के विवाह की कथा

पूर्वकाल में हरीवर्मा नाम के एक राजा रहते थे । हरिवर्मा ने  भगवान विष्णु के जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए 100 वर्षों तक घोर तपस्या की थी । तब भगवान विष्णु  और देवी लक्ष्मीने अश्व का रूप धारण करके एक पुत्र उत्पन्न किया । अपने उस पुत्र को  हरिवर्मा को दे दिया । हरिवर्मा ने उस पुत्र का नाम एकवीर रखा था । जब लक्ष्मी पुत्र एकवीर बड़े हो गए,  हरिवर्मा ने उन्हें राज्यभर सौंप दिया  और स्वयं जंगल में चले गए ।

एक दिन जब एकवीर शिकार खेलने गए । अपनी सेना के सहित घने जंगल में चले गए थे । जंगल में गंगा नदी के तट पर, एकवीर को एक सरोवर मिला । वह सरोवर अनेक प्रकार के कमल के फूलों से भरा था । एकवीर उस सरोवरके पास घूम रहे थे । उस सरोवर से थोड़ी दूर पर उन्हें एक कन्या रोती हुई दिखी । कन्या के पास जाकर, एकवीर ने उससे पूछा, देवी तुम कौन हो । यहां पर क्या कररही हो, इस निर्जन वन में  बैठकर रोने का कारण क्या है । क्या तुम्हें कोई कष्ट पहुंचा रहा है , तुम्हारे माता-पिता कहां है और तुम्हारी पति कहां पर है । तुम यहां पर कैसे आयी यह सब मुझे बताने का कष्ट करो ।

एकवीर की बात सुनकर वह स्त्री कहने लगी । जब दुख होता है, तभी मनुष्य रोते  हैं , बिना कष्ट के तो कोई नहीं रोता । मैं अपने रोनेका कारण बताती हूं सुनो । आपके राज्य से दूर, एक दूसरा राज्य है । वहां के राजा रैभ्य है , उनकी कोई संतान नहीं थी । तब उनकी पत्नी की प्रेरणा से राजा ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया । उस यज्ञ में उन राजा को एक पुत्री प्राप्त हुई । उस पुत्री का नाम राजा ने एकावली रखा । मैं उसी राजा के मंत्री की पुत्री हुं , मेरा नाम यशोमति है ।

अत्यंत सुंदर शरीरवाली एकावली  जब थोड़ी सी बड़ी हो गई । तब हम दोनों अन्य बहुत सी सखियों के साथ  भ्रमण करने  नगर के बाहर जाती थी ।  हमारे साथ  रक्षा के लिए  बहुत सारे  सैनिक भी नियुक्त रहते थे ।  एकबार कमल पुष्पों की खोज में वह नगर से दूर जंगल में गयी थी । राजकुमारी एकावली को कमल पुष्पों से प्यार था । जहां कहीं भी कमल पुष्प दिख जाते, वह उन्हीं में खो जाती । तब मैंने राजा से यह बात कही थी कि, महाराज आपकी पुत्री कमल पुष्पों के मोह में, जंगल में बहुत दूर चली जाती है । इससे जंगली प्राणियों का अथवा दैत्यों का कोई भय नही होता । मेरी बात सुनकर , राजा ने अपनी प्रिय पुत्री के लिए राजभवन में कमल से भरे हुए छोटे-छोटे तालाब निर्मित करा दिए ।

राजा के इतने करने के बाद भी , कभी-कभी एकावली कमल पुष्पों की खोज में नगर से बाहर जाया करती थी । एक दिन सुबह हमलोग कमल पुष्पों की खोज में नगर से बाहर चले गए । हमारे साथ बहुत सारे सैनिक थे और बहुत सी सखियां भी थी । कमल पुष्पों की खोज में हम लोग जंगल में बहुत दूर चले गए । वहां एक बहुत ही सुंदर सरोवर मिला । सैनिकों से दूर मैं और एकावली उस सरोवर में पुष्पों को देख रही थी । उसी समय वहां पर एक दैत्य आ गया । जिसका नाम कालकेतु था, दिखने में वह बहुत ही भयानक था । उसकी आकृति अति विकराल थी । उसे देखकर मैंने अपनी सखी एकावली से कहा, अब हमें सैनिकों के मध्य चले जाना चाहिए ,  क्योंकि यह दैत्य हमें कष्ट पहुंचा सकता है ।

एकावली मेरी बात मान गई और हम दोनों उसी क्षण सैनिकों के घेरे में चले गए । जब कालकेतु की दृष्टि एकावली पर पड़ी , वह उस पर मोहित हो गया । इसके बाद वह एकावली की तरफ बढ़ने लगा । सैनिकों ने उसे रोकने का प्रयत्न किया, किंतु उसने सारे सैनिकों को मारडाला । एकावली का अपहरण करके, उसके सारे सैनिकों सहित उसकी नगरी को चलपड़ा । उसका नगर पाताल लोक मे था । मेरी सखी को  देखकर  मैं भी  उसके पीछे पीछे चल पड़ी  । मैंने उस दैत्य  से कहा, मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं, परंतु तुम मेरी सखी को छोड़ दो ।  कालकेतु ने मेरी एक भी नहीं मानी  । उसने मुझसे कहा, तुम राजकुमारी से कहो मुझसे शादी कर ले ।  मैंने उससे कहा, कालकेतु  एकावली  मेरी परम सखी है मैं भला  उसे ऐसे क्यों कहूं  । मैं जानती हूं तुम उसके योग्य नहीं हो ।  इसीलिए  तुम स्वयं ही  अपनी बात उसके सामने रखो ।

मेरी बात सुनकर, वह दैत्य एकावली से कहने लगा , राजकुमारी मैं तुम पर मोहित हो गया हूं, मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं । मुझसे विवाह के बाद तुम मेरे इस राज्य की रानी बनकर सुख से अपना जीवन व्यतीत करो । इसीलिए तुम शीघ्र ही मुझसे विवाह करने के लिए मानजाओ । कालकेतु की बात सुनकर, एकावली ने कहा, कालकेतु मैंने पहले ही राजा एकवीर को अपना पति चुन लिया है ।  मेरे पिता भी उन्हींसे मेरा विवाह करना चाहते हैं । इसीलिए मुझसे विवाह करने का विचार मन से निकाल दो और मुझे अपने बंधन से मुक्त करदो । यशोमती कहती है, एकावली की यह बात सुनकर कालकेतु बहुत ही क्रोधित हो गया ।  उसने हम दोनों को कारागार में डाल दिया । अपनी सखी को वहीं छोड़कर , मैं यहां पर आकर उस एकवीर नाम के राजा जी प्रतीक्षा कर रही हूं और मेरी सखी की इस दशा के कारण रो रही हूं । 

यशोमती की बात सुनकर एकवीर कहते हैं, देवी इस संसार में एकवीर नाम का राजा एक ही है और वह मैं हूं । राजकुमारी ने मन से मुझे वरुण कर लिया है । यह सुनकर ही मैं उसपर मोहित हो गया हूं । मैं इसी क्षण जाकर उस राजकुमारी की रक्षा करता हूं । उस कालकेतु दैत्य को मारकर राजकुमारी से विवाह कर लूंगा । किंतु मुझे एक बात समझ नहीं आ रही, अपनी उस दुखी सखी को कारागृह में ही छोड़कर तुम यहां पर कैसे पहुंच गयी । तुम्हें कालकेतु के कारागृह से कैसे मुक्ति मिली, यह रहस्य मुझे सच सच बता दो ।

एकवीर की बात सुनकर यशोमती कहती है, राजन मैं बचपन से ही भगवती जगदंबा के मंत्र को जानती हूं । मैं सदा उस मंत्र का जाप करती रहती हूं ।  उस कारागृह में मैंने जगदंबा के मंत्र का जाप किया । एक महीने के बाद,  भगवती जगदंबा मेरे सपने में आई । देवी ने मुझसे कहा,तुम इसी क्षण गंगा के तटपर जाओ । वहां पर राजा एकवीर अपनी सेना सहित शिकार खेलने के लिए आने वाले हैं । एकवीर राजा मेरे परम भक्त है । वे सदा मेरे मंत्र का जाप करते रहते है । उनके हृदय से मैं एक क्षण भी दूर नही होती । सभी प्राणियों में वे राजा मिझे ही देखते है ।  शीघ्रही राजा को तुम यहां पर लेकर आओ । जिससे कालकेतु की वमृत्यु होजाएगी । उसके बाद तुम एकवीर और एकावली का विवाह करा देना । मैंने एकावली से अपने इस स्वप्न के बारे में कहा और उस कारागृह से निकल गई । देवी की कृपा से मुझे कोई भी, कहीं भी रोक नहीं सका । 

 

यशोमती की यह बात सुनकर, एकवीर, कालकेतु की नगरी को जाने के लिए तैयार हो जाते हैं । वहां पहुंचने के बाद कालकेतु और एकवीर में महा भयंकर युद्ध छिड़ जाता है । उस युद्ध में एकवीर कालकेतु का अंत कर देते हैं । उसके बाद राजकुमारी एकावली को भेंट करके उसे उसके पिता को घर छोड़ने जाते हैं । एकावली के पिता को जब सारी घटना पता चलती है तभी राजा एकवीर का धन्यवाद करते हैं । बहुत प्रसन्नता के साथ अपनी पुत्री एकावली का विवाह राजकुमार एकवीर के साथ कर देते हैं ।

इस तरह भगवती जगदंबा की कृपा से एकावली और एकवीर का विवाह हुआ था ।



Categories: देवी भागवत पुराण

Tags: , , , , , ,

Leave a Reply

Discover more from कथायें सनातन धर्म के सनातन देवताओंकि

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading