भगवती जगदंबा की कृपा से शचि को अपने पति इंद्र के दर्शन की कथा

बहुत पहले की बात है वृत्रासुर नाम के  दैत्य ने देवराज इंद्र से  स्वर्ग छीन लिया था ।  देवताओं के  स्वर्ग से  बाहर निकाल कर दिया था । भगवान विष्णु के कहने पर देवताओं ने वृत्रासुर से इंद्र की मित्रता करा दी थी ।  वह दोनों बड़े ही घनिष्ट मित्र बन गए थे । हर समय एक साथ ही रहकर अनेक स्थानों पर घूमते फिरते थे । वृत्रासुर देवराज इंद्र को पूरी तरह से अपना मित्र मानता था और पूर्ण रूप से उस पर विश्वास भी करता था । किंतु देवराज इंद्र केवल अपना इंद्रासन वापस पाने के लिए ही वृत्रासुर के साथ मित्र होने का अभिनय कर रहे थे । देवराज हमेशा वृत्रासुर की हत्या करने का अवसर ढूंढते रहते थे ।

 एक समय की बात है देवराज इंद्र ने अपने मित्र वृत्रासुर का वध कर दिया ।  इसके कारण उनको ब्रहम हत्या का पाप लग गया और इंद्र सदा दुखी रहने लगा । उसे कहीं भी चैन नहीं लगता था । जो वस्तुएं देवराज इंद्र को पहले सुख प्रदान करती थी ।  अब उसे उन वस्तुओं से कोई सुख प्राप्त नहीं होता था । इसीलिए देवराज इंद्र मानसरोवर में चले गए और वहां उ एक कमल के नली में रह कर अपना समय व्यतीत करने लगे । देवराज इंद्र की अनुपस्थिति में देवताओं ने नहुष को इंद्र के पद पर बिठा दिया ।

इंद्र बनने के बाद ,नहुष ने देवी शचि की सुंदरता और गुणों के बारे में सुना । नहुष शचि को प्राप्त करने की इच्छा से देवताओं को शचि को संदेश देने के लिए कहता है । देवी शचि नहुष की पत्नी बन जाए , यही उसका संदेश था । नहुष का ये संदेश सुनकर शचि भयभीत हो गई ।  देव गुरु बृहस्पति की शरण लेकर उनके यहां सुरक्षित रहने लगी । बृहस्पति जी की सलाह अनुसार शचि ने नहुष से देवताओं के साथ मिली । शचि ने नहुष से कहा  अपना निर्णय लेने से पहले, एक बार अपने पति इंद्र को ढूंढना चाहती हुं । मैं ये निश्चित करना चाहती हूं कि मेरे पति जीवित है या नही ।  ऐसा कहकर नहुष से समय मांग लिया । देवताओं ने इंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ करा कर, उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाई । परंतु देवराज इंद्र फिर भी मानसरोवर के उस कमल से बाहर नहीं आए ।अनुकूल समय की प्रतीक्षा करते हुए वहीं पर रहने लगे ।

अपने पति से दूर होने के कारण शचि बहुत ही दुखी थी । देवराज इंद्र से मिलने के लिए बहुत ही व्याकुल थी । परंतु उन्हें इस बात का पता नहीं था कि देवराज इंद्र कहां पर अपना समय व्यतीत कर रहे है । उन्होंने अपनी इस इच्छा को बृहस्पति जी के सामने व्यक्त की । तब देवराज ने उन्हें भगवती जगदंबा की आराधना करने की सलाह दी । बृहस्पति जी से देवी के मंत्र और पूजा विधि का ज्ञान पाकर, शचि भगवती जगदंबा की पूजा करने में लग गई । उनका सारा समय केवल देवी की पूजा और मंत्र जाप में व्यतीत होता था । भगवती दुर्गा शचि की  इस पूजा से अति प्रसन्न हो गई ।  कुछ ही दिनों में भगवती जगदंबा शचि के सामने प्रकट हो गई ।

उस समय देवी सिंह पर विराजमान थी उनके हाथों में चक्र , तृषिल , तलवार जैसे अनेक प्रकार के आयुध उपस्थित थे । देवी प्रसन्न होकर मुस्कुरा रही थी । उनका प्रकाश करोड़ों सूर्यों के समान था और करोड़ों चंद्रमाओं के तरह शीतल भी था । ब्रह्मा से लेकर किट तक, समस्त जीवों की माता कहलाने का सौभाग्य इन्हें प्राप्त हुआ है । अनंत कोटि ब्रह्मांडों पर इन देवी का शासन है । इन अनंत ब्रह्मांडो में देवी त्रिदेवों द्वारा अनेक लिलियें कराती है ।

 देवी ने शचि से कहा , इंद्र प्रिय मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हूं । अपना अभिलाषित वर मांगो,  मैं उसे अवश्य ही पूरा करूंगी । देवी की यह बात सुनकर शचि अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, माता मैं अपने पति इंद्र के विरह में अधिक दुखी हूं । इसीलिए मेरी इच्छा है कि मैं उनसे मिल लूं न जाने वह कहां अपना समय व्यतीत कर रहे हैं । आप मुझे ऐसा वर दीजिए कि, नहुष से मुझे कोई भी भय नहीं हो और मैं सुरक्षित रहा हूं । मुझे अपना खोया हुआ सम्मान फिरसे मिल जाए ।

 शचि की बात सुनकर देवी ने कहा, इंद्र प्रिया तुम्हारे पति इस समय मानसरोवर में एक कमल की नली में रहकर अपना समय बिता रहे हैं । उस सरोवर के पास मेरी एक मूर्ति है  जो विश्वकामा नाम से जानी जाती है । तुम जाकर उसकी पूजा करो । मेरी यह सेविका तुम्हें इंद्र के पास लेकर जाएगी और तुम्हारी उनसे भेंट हो जाएगी । थोड़े ही समय में मैं नहुष को मोहित कर उसके शक्ति कुंठित कर दूंगी । जिससे वह इंद्र पद का अधिकारी नहीं रहेगा और तुम्हारे पति पुनः इंद्र के पद पर स्थापित हो जाएंगे । इस तरह कहकर देवी अंतर्धान हो गई ।

देवी की सेविका, शचि को उस स्थान पर ले गई ,जहां पर देवराज इंद्र अपना समय व्यतीत कर रहे थे । उन्हें देखकर देवराज इंद्र चकित हो गए और पूछा देवी मैं यहां हूं इस रहस्य को आपको किसने बताया । शचि ने कहा , प्रभु इस समय मैं भगवती जगदंबा के आदेश अनुसार यहां पर आई हूं और उन्हीं की कृपा से मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए हैं । अपने पति के दर्शन प्राप्त कर कर शचि बहुत ही प्रसन्न हो गई ।

कुछ ही दिनों में देवी की कृपा से , नहुष को उसके दुष्कर्मो के कारण ,इंद्र पद से निकाल दिया गया । पहले की तरह शचि पति ही इंद्र के पद पर विराजमान हो गए । इस तरह, देवी की कृपा से देवी शचि को अपने पति के दर्शन हुए थे ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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