
कोसल देश में देवदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था । संतान नहीं होने के कारण वह ब्राह्मण अति दुखी था । संतान प्राप्ति के उद्देश्य से देवदत्त ने पुत्रेष्टि यज्ञ करने का निर्णय किया और नदी के तट पर एक उत्तम यज्ञ कुंड का निर्माण किया । उस यज्ञ में उसने वेद के जानकार ब्राह्मणों को होता आदि का स्थान दिया था। सामवेद के ज्ञाता गोभिल मुनि सुर और ताल के साथ सामवेद का गायन कर रहे थे । बार-बार सांस लेने के कारण मंत्र उच्चारण में स्वर भांग हो रहा था । इससे देवदत्त अति क्रोध में आ गया और गोभिल मुनिको भला बुरा कह कह सुना दिया ।
देवदत्त ने मुनिसे कहा मुनिवर तुम बड़े ही मूर्ख हो । मैं यहां पर पुत्र ना होने के दुःखसे मुक्ति पाने के लिए अति कठिनतासे इस यज्ञ को संपन्न करने की कोशिश कर रहा हूं और आप यहां बे सूरे स्वर उच्चार मेरे इस यज्ञ में भंग उत्पन्न कर रहे हैं । देवदत्त की यह बात सुनकर मुनि को भी बड़ा क्रोध आ गया और उन्होंने देवदत्त को शाप दिया और कहा कि देवदत्त तुम्हें शब्द हीन मूर्ख पुत्र प्राप्त होगा और उसमें शठता भी भरी होगी । सभी प्राणियों के शरीर में स्वास आते जाते रहते हैं । उन पर प्राणियों का कोई अधिकार नहीं आता स्वर भांग होने में मेरा कोई भी दोष नहीं है ।
मुनिका यह शाप सुनकर देवदत्त भयभीत हो गया और वह मुनि से कहने लगा , मुनिवर पहले ही मुझे पुत्र नहीं होने का बहुत दुख है और अब आपने शाप दे दिया कि मुझे मूर्ख पुत्र उत्पन्न होगा । कहा जाता है कि मूर्ख पुत्र होने से अच्छा है कि पुत्र ही नहीं हो , क्योंकि मूर्ख पुत्र सदैव ही अपमान का कारण बनता है । उससे संसार में माता-पिता की अपकीर्ति होती है । वह घर परिवार में बोझ बनकर ही रह जाता है । मैंने अपने कष्ट निवारण हेतु यह यज्ञ कराया था किंतु मुझे तो कष्ट निवारण के स्थान पर उससे अधिक भयानक काष्ठ मिल गया । इसीलिए आप कृपा कीजिए और इस शाप से मुक्त होने का उपाय बताइए ।
यू कह कर देवदत्त गोभिल मुनि के पैरों में पड़ गया । महात्माओं का क्रोध शीघ्र ही शांत हो जाता है, देवदत्त की यह वाणी सुनकर मुनि का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने देवदत्त से कहा – देवदत्त तुम्हारा पुत्र मूर्ख होगा और कुछ समय बाद फिर से बुद्धिमान हो जाएगा । मेरा यह वचन अवश्य ही सिद्ध होगा, मुनिवर की यह बातें सुनकर देवदत्त के मुख पर मुस्कान छा गई और उसने अंतिम आहुति देकर यज्ञ को पूरी तरह संपन्न कर दिया बाद में सारे मुनिगण अपने अपने स्थान को चले गए ।
कुछ महीनों बाद देवदत्त की स्त्री का गर्भ रह गया और उसने एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र उत्पत्ति के बाद देवदत्त को बहुत प्रसन्नता हुई, कुछ सालों बाद देवदत्त ने अपने पुत्र को मंत्रों का ज्ञान देने की प्रक्रिया आरंभ की किंतु उसका वह पुत्र एक भी मंत्र का उच्चारण नहीं कर सका । यह सब गोभिल मुनि के शाप का प्रभाव था , बहुत प्रयास करने पर भी कई वर्षों के पश्चात भी वह बालक एक भी मंत्र सीख नहीं सका और चारों और यह बात फैल गई थी । देवदत्त का उतथ्य नामक यह पुत्र बड़ा मूर्ख है और यह देवदत्त के नाम पर एक कलंक ही है । सारे लोगों की यह बातें सुनकर देवदत्त और उसकी पत्नी को बड़ा दुख होता था और उन दोनों ने उसके पुत्र को भी कोसना आरंभ कर दिया । इससे उतथ्य को बहोत दुख होता था और उसके मन मे वैराग्य होगया ।
अपने माता-पिता तथा सभी के ऐसे दुखदाई वचन सुनकर उतथ्य नाम का वह ब्राह्मण अपना घर छोड़कर एक घने जंगल में गया और वहीं पर एक कुटिया बनाई और वहां रहना आरंभ कर दिया । वहां पर वह जंगल में जो कुछ भी फल मिलते वही खा कर अपना जीवन निर्वाह करता था । यही सोचता था कि मेरा यह जीवन तो व्यर्थ ही चला गया किसी तरह अब यही रह कर मुझे समय व्यतीत करना चाहिए और मृत्यु का प्रतीक्षा करनी चाहिए । वह ब्राह्मण कभी झूठ नहीं बोलता था । उसने एक नियम बना लिया था कि वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगा इसी कारण आसपास के सभी आदिवासियों में उतथ्य सत्यव्रत के नाम से जाना जाने लगा ।
सत्यव्रत बड़ा ही दयालु था , कभी किसी को हानि नहीं पहुंचाता था । ना ही किसी का कभी बुरा चाहता था, वह मुनि के शापवश मूर्ख होने के कारण उस जंगल में रहकर किसी तरह अपने प्रारब्ध को भोग रहा था । एक दिन जंगल में एक शिकारी शिकार खेलते हुए आया और उसने एक सूअर को अपने बाणों से घायल कर दिया । वह सुवर खून से लथपथ होकर मुनि के आश्रम के सामने से ही जाकर झाड़ियों में छुप गया । कुछ देर बाद जब वह शिकारी मुनि के पास आया और उनसे पूछा – क्या तुम ने यहां पर किसी सूअर को जाते देखा है, शिकारी को यह बात मालूम थी कि सत्यव्रत कभी झूठ नहीं बोलता और ना ही किसी के साथ धोखा करता है । उसने कहा ब्राह्मण मैं सूवर को मारने का यह काम , अपने पत्नी और पुत्रों के भोजन के लिए कर रहा हूं । शिकार कर अपने परिवार का पेट भरना ही मेरा काम है ।
शिकारी की यह बात सुनकर सत्यव्रत अपने मन में सोचने लगा कि मैं अगर इस शिकारी को कह दूंगा कि सूअर उस झाड़ी में छिपा है तो अवश्य ही शिकारी उस सुवर को मार देगा और इस तरह सूअर के प्राण चले जाएंगे । मैं अगर इससे झूठ कहूंगा तो मेरा सत्य कहने का प्रण टूट जाएगा । कहा जाता है की किसी के प्राण बचाने के लिए कहा गया झूठ, झूठ नहीं होता किंतु अब मैं क्या करूं कैसे सूअर के प्राण बचउँ और मेरा सत्यव्रत भी भंग ना हो और किसी तरह इस शिकारी से मेरा पीछा छूट जाए और ये यहां से चले जाए । इतना सब सोच विचार करने पर भी वह किसी भी निर्णय पर नही पहोच सका ।
सत्यव्रत ब्राह्मण ने खून में लथपथ उस सूअर को देखकर ए शब्द का उच्चारण किया था यह महा सरस्वती का वगबिज मंत्र का कुछ भाग है , जो एं है । यह उच्चारण सुनकर देवी सरस्वती अति प्रसन्न हो गई और उन्होंने प्रसन्नता वश सत्यवती ब्राह्मण को बुद्धि प्रदान कर दी । इससे वह अति बुद्धिमान हो गया और शिकारी से कहा – देखने वाली आंखें बोलती नहीं और बोलने वाली इस जिव्हा ने कुछ देखा ही नहीं । तुम क्यों अपना कार्य साधने के धुन में लगे हुए बार-बार मुझसे प्रश्न कर रहे हो ।
ब्राह्मण सत्यव्रत की यह बात सुनकर वह शिकारी , सूअर को पाने की इच्छा को त्याग कर वहां से चला गया । इस तरह सत्यव्रत ने देवी की कृपा से अपने मूर्खता से मुक्ति पाई और स्वयं एक दूसरे वाल्मीकि ही बन गए ।
देवी के वगबिज मंत्र के उच्चारण से सत्यवत ब्राह्मण की बुद्धिमान होने की है कथा मनुष्य को सारे पापों से मुक्त कर देती है । आदिशक्ति की भक्ति प्रदान करती है और उन में अपार श्रद्धा का भी जागृत करती है ।
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