आदिशक्ति भगवती जगदम्बा ने इस समस्त संसार की रचना की है । इन भगवती को ही सर्वेश्वरी , सर्वशक्तिस्वरूप, सर्वस्थिता और सर्वज्ञा कहा गया है । जब इन देवी को सृष्टि करने की इच्छा होती है तब यह देवी स्वयं ही तीन रूपों में विभाजित होजाती है जो कि ब्रह्मा , विष्णु और शिव कहलाते है । भगवती जगदम्बा ने अपनी तीन पुरुष रूपों को तीन शक्तियां सरस्वती, लक्ष्मी और गौरी को दिया । इन तीन शक्तियों की सहायता से ही ये त्रिदेव अपने सृष्टी, पालन और संहार के कार्य मे सफल होते है ।
बिना शक्ति की सहायता से ब्रह्मा, विष्णु और शिव कुछ भी नही कर सकते । एक समयकी बात है सृष्टि में हलाहल नाम के दैत्य उत्पन्न हुए । इन हलाहल नाम के दैत्यों ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की । ब्रह्माजी के वर के प्रभाव से ये सारे दैत्य बहोत ही बलवान होगये । इन हलाहल नाम के दैत्यों ने त्रिलोकी को जीतने का अभियान आरम्भ किया । थोड़े ही समय मे इन दैत्यों ने त्रिलोकी के समस्त लोकपालोकों को जीत लिया । इंद्र को स्वर्ग से खदेड़ दिया, सूर्य को हरादिया , चंद्र , अग्नि ,वायु , वरुण आदि समस्त देवताओं को हराकर उनके लोकोंपर अपना अधिकार जमालिया ।
जब सभी देवताओं को हरादिया तब इन हलाहल नाम के दैत्यों ने भगवन विष्णु के विष्णुलोक और शिवजी के शिवलोक पे अधिकार जमाने के इरादे से इन दोनों लोकों को घेर लिया । ब्रह्माजी के वरदान से ये हलाहल नाम के दैत्य बहोत अभिमानी होगये थे । दैत्यों को अपने लोकों को घेरे हुए देखकर भगवान विष्णु और शिव दोनों ही दैत्यों के साथ युद्ध के लिए उपस्थित होगये । कुछ ही समय मे दैत्यों में और शिव, विष्णुजी की सेना में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया ।
इस भयानक युद्धमे देवता और दानवों की सेना में हाहाकार मच गया । यह युद्ध बहोत समय तक चलता रहा । बहोत समय के घोर युद्धके बाद और परिश्रम के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव इन दैत्यों का अंत करनेमे सफल हुए । आदिशक्ति जगदम्बा के प्रभाव से ही भगवान विष्णु और शिवजी हलाहल दैत्यों को मार सके थे , परंतु दोनों ही देवता शक्ति की अवहेलना करने लगे । तब भगवती लक्ष्मी और गौरी को हसीं आगयी । इन दो महान ईश्वरोंने अपनी शक्ति लक्ष्मी और गौरी का तिरस्कार कर दिया । वे अपने को बिना शक्ति के ही शक्तिशाली मान बैठे थे ।
जब भगवान विष्णु और शिवजी ने अपनी शक्तियों का तिरस्कार कर दिया ,तब उसी क्षण लीलासे ही भगवती लक्ष्मी और गौरी दोनों महाशक्तियां विष्णु और शंकर से अलग होकर अंतर्धान होगयी । शक्तियोंके हटते ही दोनों प्रधान देवता शक्ति और तेजसे हीन होनेके कारण विक्षीप्त-से हो गये । उनकी सोचने और विचारनेकी शक्ति भी नहीं रही । तब ब्रह्माजी चिन्तासे अधीर हो गये और घबराकर उन्होंने आँखें बंद कर लीं और ध्यान किया।
ध्यान करके यह बात उनके समझमें आ गयी कि यह पराशक्तिके त्यागका परिणाम है । इस अभिप्रायको जानते ही ब्रह्माजी सावधान हो गये । तबसे भगवान् शंकर और विष्णुका जो कार्य था उस कार्य को ब्रह्माजीने स्वयं अपने हाथ में ले लीया । अपनी शक्ति के बलसे सम्पन्न होकर कुछ समयतक वे इस कार्यको सँभालते रहे। तदनन्तर शंकर और विष्णु के कल्याणार्थ धर्मात्मा ब्रह्माजीने अपने पुत्र मनु और सनक आदिको बुलाया ।
ब्रह्मजीके बुलाते ही सभी कुमार आकर मस्तक झुकाये सामने खड़े हो गये । तपोनिधि ब्रह्माजीने उनसे कहा- इस समय मैं बहुतसे कार्योंमें व्यस्त हूँ । परमेश्वरीको संतुष्ट करने के लिये तपस्या करनेकी क्षमता मुझमें नहीं है । जगत्का सम्पूर्ण भार मुझपर लदा है। इस समय भगवती शक्ति परमेश्वरीके हट जानेके कारण शिव और विष्णुमें शक्तिहीनता आ गयी है । अतः पुत्रो ! जैसे भी शिव और विष्णु अपनी शक्तियोंसे सम्पन्न हो सके तुम्हें वैसा ही उद्योग करना चाहिये । इससे जगत्में तुम्हारा यश फैलेगा । जिसके कुलमें महागौरी और महालक्ष्मी-ये दो शक्तियाँ जन्म धारण करेंगी, वह पुरुष स्वयं कृतकृत्य होने के साथ ही समस्त संसारको भी पावन बना सकता है ।
पितामह ब्रह्मा जी की बात सुनकर उनके दक्ष प्रभृति जितने परम पवित्र पुत्र थे, वे सब-के-सब भगवती जगदम्बाकी आराधना करने के लिये वनमें चले गये ।
चतुर्मुख ब्रह्माकी आज्ञा पाकर वनमें गये हुए मुनिगण हिमालयके तटपर पहुँचे और चित्तको शान्त करके मायाबीज-भगवती भुवनेश्वरीके मन्त्रका जप करने लगे। उनके ध्यानका विषय भगवती परमा शक्ति थी, दीर्घकालतक ध्यान करने के पश्चात् भगवती प्रसन्न होकर उनके सामने साक्षात् प्रकट हो गयी ।
पाश, अंकुश, वर और अभयमुद्राको उन्होंने अपने चारों हाथों में धारण कर रखा था। उनके तीन नेत्र शोभा बढ़ा रहे थे । करुणाके रससे वे परिपूर्ण थीं । उनका विग्रह सत् चित् और आनन्दमय था । सम्पूर्ण जगत्को उत्पन्न करनेवाली परमेश्वरी को देखकर पवित्र अन्तःकरणवाले मुनि उनकी स्तुति करने लगे , देवी ! तुम विश्वरूपा, तेजरूपा और सुत्ररूपा हो तुम्हें नमस्कार है । तुम्हारा वह दिव्यरूप है। जिममें समस्त लिंगदेह ओतप्रोत होकर व्यवस्थित है, प्राश, अव्याकृत, प्रत्यक और परब्रह्मके स्वरूपको धारण करनेवाली देवी ! तुम्हें बार-बार प्रणाम है। स्वरूप और सर्वलक्षमीरूपमें शोभा पानेवाली तुम भगवतीको प्रणाम है।
इस प्रकार भक्तिपूर्वक गद्गद वाणीसे भगवती जगदम्बा की स्तुति करके दक्ष प्रभृति पुण्यात्मा मुनिगण देवीके चरण कमलों में मस्तक झुकाये रहे । तब कोयलके समान मधुर वचनवाली देवीने प्रसन्न होकर उनसे कहा, महाभाग मुनियो ! वर माँगो: मैं सदा वर देने के लिये तैयार हूँ ,ऐसा समझ लो । भगवतीकी अमर वाणी सुनकर मुनियों ने वर माँगा-देवी ! आप यह कृपा करें, जिससे शंकर तथा विष्णु इन महाभाग देवताओंको अपनी शक्तियाँ पुनः प्राप्त हो जायें ।’ फिर दक्षने प्रार्थना की देवी ! अम्बे ! मेरे कुलमें तुम्हारा अवतार होना चाहिये, जिससे मैं कृतकृत्य हो जाऊँ ।
देवीने कहा-मेरी शक्तियोंका अपमान करनेसे ही शिव और विष्णुको ऐसी अप्रिय परिस्थिति प्राप्त हुई है। इस प्रकार शक्तिरूपा मेरा अपराध कभी नहीं करना चाहिये । अच्छा, अब मेरी किंचित् कृपासे उनमें स्वस्थता-शक्ति आ जायगी। गौरी और लक्ष्मी नामक मेरी शक्तियोंका तुम्हारे एवं क्षीरसागरके यहाँ जन्म होगा । मेरे प्रेरणा करनेपर वे शक्तियों उनके पास चली जायेंगी । मुझे सदा प्रसन्न करनेवाला मायाबीज ही मेरा प्रधान मन्त्र है । मेरे विराट रूपका अथवा तुम्हारे सामने उपस्थित इस रूपका या सच्चिदानन्दमय रूपका ध्यान करना चाहिये । मेरी पूजा करने के लिये उपयुक्त स्थान सारा जगत ही है । तुम्हें चाहिये, मेरी पूजा और ध्यानमें सदा संलग्न रहो । इतना कहकर मणिद्वीपमें विराजनेवाली भगवती जगदम्बा अन्तर्धान हो गयी ।
भगवती जगदम्बा से वरदान पानेके बाद ब्रह्माजी के सभी पुत्र उनके पास गए और सारी बाते अपने पिता को बता दिया । इसके बाद भगवती जगदम्बा की कृपा से विष्णु और शिवजी में पुनः शक्ति आगयी और वे अपना अपना कार्य करने लगे । कुछ समयबाद भगवती जगदम्बा के वरदान अनुसार , जगदम्बा की ओ शक्ति जो लक्ष्मी कहलाती है , समुद्रमंथन के समय समुद्रकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई और गौरी नामकी शक्ति दक्ष के यहां सती के रूप में प्रकट हुई ।
इस तरह भगवती लक्ष्मी और गौरी विष्णु और शिवजी के तिरस्कार करने के कारण दोंनो देवताओं को छोड़कर चली गयी थी ।
Categories: देवी भागवत पुराण
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