भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन

भगवान को जब सृष्टि करने की इच्छा उत्पन्न हुई तो उन्होंने अपने पुरुष रूप को प्रकट किया और कारण जल में शयन किया । उनके उसे  पुरुष रूप के नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ जिस में ब्रह्मा जी का आविर्भाव हुआ । भगवान  के इस नाभि कमल वाले रूप से ही इनके कई अवतार प्रकट होते हैं और इसी रूप के छोटे-छोटे आंशों से देवता भी प्रकट होते हैं । भगवान के मुख्य दस अवतार कहे गए हैं और अन्य सभी अंश अवतारों को लेकर कुल मिलाकर चौबीस अवतार कह गए हैं ।

कौमारसर्ग में भगवान ने सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार नाम के चार ब्राह्मणों के रूप में अवतार ग्रहण किया और उन्होंने अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए घोर तपस्या की थी ।

दूसरी बार भगवान ने समस्त संसार के कल्याण के लिए रसातल में डूबी हुई पृथ्वी को बाहर लाने के लिए, वराह का अवतार धारण किया । इस अवतार में अपने पराक्रम से पृथ्वी को रसातल से बाहर लाकर सृष्टि कार्य में ब्रह्मा जी की सहायता की ।

ऋषियों की सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया । इस अवतार में उन्होंने सात्वत तंत्रका उपदेश किया । उसमें कर्म के द्वारा किस प्रकार कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है इसका वर्णन है ।

धर्मपत्नी मूर्ति के गर्भ से उन्होंने चौथी बार नर-नारायण के रूप में अवतार ग्रहण किया । इस अवतार में उन्होंने ऋषि बनकर मन और इंद्रियोंको संयमित करके बड़ी कठिन तपस्या की थी ।

पांचवे अवतार में भगवान सिद्धों के स्वामी कपिल के रूप में प्रकट हुए । इस अवतार में उन्होंने तत्वों के निर्णय करने वाले सांख्य शास्त्र का जो समय के फेर से लुप्त हो गया था आसुरी नामक ब्राह्मण को उपदेश दिया ।

 अनुसूया के वर मांगने पर वे सनातन भगवान छठे अवतार में अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय बने थे । इस अवतार में भगवान ने अलर्क एवं दत्तात्रेय आदि को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था ।

सांतवी बार रुचि नामक प्रजापति के आकृति नामक पत्नी के गर्भ यज्ञ के रूप में भगवान ने अवतार ग्रहण किया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वयम्भू मनु की रक्षा की थी ।

आंठवे अवतार में राजा नाभि की पत्नी मेरु के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में प्रकट हुए । इस अवतार में भगवान ने परमहंसों के उस मार्ग को जो सबके लिए वंदनीय है दिखाया ।

ऋषियों के प्रार्थना करनेपर नवी बार भगवान ने राजा पृथु के रूप में अवतार ग्रहण किया । इस अवतार में भगवान ने समस्त औषदियों का दोहन किया जिससे यह अवतार सबके लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ ।

चाक्षुस मन्वंतर के अंत मे जब सारी त्रिलोकी समुद्र में डूब रही थी , तब भगवान ने मत्स्य के रूप में अवतार ग्रहण करके अगले मन्वंतर के स्वामी वैवस्वत की रक्षा की थी ।

भगवान ने ग्यारहवा अवतार कच्छप के रूप में लेकर , समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को अपने पिट पर धारण करके देवताओं और दानवों की सहायता की थी ।

समुद्र मंथन के समय जब देवता और दानव मिलके, अमृत प्राप्तकरने के लिए समुद्रका मंथन कर रहे थे तब भगवान ने धन्वंतरि के रूप में अमृत लेकर प्रकट हुए थे यह भगवान का बारहवां अवतार था ।

तेरवी बार भगवान ने मोहिनी का रूप धारण किया था । जब समुद्रमंथन के बाद देवता और दानव अमृत के लिए लड़ रहे थे तब मोहिनी रूपी भगवान ने दैत्यों को मोहित कर देवताओं को अमृत पिलाया था ।

चौदवीं बार भगवान ने नरसिंह का अवतार धारण किया था । इस अवतार में भगवान ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए हिरण्यकशीपु की छाती अपने नखों से ही चिर डाली थी ।

पन्द्रवीं बार भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया था । इस अवतार में भगवान ने दैत्यराज बलि के यज्ञ में जाकर उनसे केवल तीन पग भूमि मांगी थी और अपने पगों से सारी त्रिलोकी नाप ली ।

जब भगवान ने देखा की सारे  राजालोग ब्राह्मण द्रोही बन गए है , तब भगवान ने पन्द्रवीं परशुराम का अवतार धारण करके इक्कीसबार पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया था ।

सत्रवी बार भगवान ने सत्यवती के गर्भ से पराशर द्वारा जन्म धारण किया था । इस अवतार में भगवान ने वेदों का विभाजन किया था क्यों कि लोग थोड़ी सी स्मृतिवाले होगये थे ।

अठारहवीं बार भगवान ने राजा के रूप में रामावतार धारण किया था । इस अवतार में भगवान ने सेतु बंधन , रावण वध जैसी लोकहितकारी लीलाएं की थी ।

उन्नीसवें और बिसवे अवतार में भगवान बलराम और श्रीकृष्ण के रूप में जन्म धारण किया था । इस अवतार में भगवान ने प्रेम की अनेक लीलाएं की थी और अनेक दानवो का युद्ध किया था । कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के युद्ध मे पांडवो का पक्षलेकर  धर्म  की स्थापना की थी । इसी युद्ध मे भगवान ने अपने साख अर्जुन के माध्यम से गीता का ज्ञान भी दिया था ।

कलियुग के आजाने के बाद भगवान ने देवताओं के दोषी दैत्यों को मोहित करने के लिए इक्कीसवीं बार मगधदेश में बुद्धावतार ग्रहण किया था । 

जब कलियुग के अंत मे जब पृथ्वी पर केवल लूटेरों का ही राज होजायेगा तब भगवान कल्कि के रूप में अवतरित होंगे और फिर से धर्म की स्थापना करेंगे ।

पूर्व समय की बात है , जब हयग्रीव नाम का दैत्य वेदों लेकर चला गया था और देवता काष्ठ भोगने लगे थे तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लेकर देवताओं की रक्षा की थी ।

आदि पुरुष जो भगवान के समस्त अवतारों का मूल है वह निराकार भगवान का साकार अवतार है ।



Categories: भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ

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