देवर्षी नारद भगवान के परम भक्तों में से एक है । वे सदा भ्रमण करते रहते है । एक समय की बात है नारदजी को सनकादि मुनि मिल गए । सनकादि ऋषियों ने नारदजी से पूछा , नारद तुम इतने चिंतातुर क्यों दिखाई दे रहे हो, इतनी जल्दी में कहां जा रहे हो । सनकादि ऋषियों की बाते सुनकर , नारद जी ने कहा , ऋषियों आप सब ब्रह्माजी के मानस पुत्र है । आप आयु में तो सृष्टि के सभी जीवों से बडे है किंतु दिखने में तो पांच वर्ष के बालकों जैसे लगते है । भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहना आपका स्वभाव ही है । मैं आप सबको प्रणाम करता हूँ ।
नारद जी कहते है ,ऋषियों ,पृथ्वी को उत्तम लोक मानकर देवर्षी नारद पृथ्वी के तीर्थों के दर्शन के लिए आये । गोकर्ण , श्रीशैल,तिरुपति , द्वारका,केदार, बद्रीनाथ आदि स्थानों के दर्शन किये किन्तु किसी भी स्थान पे मुझे शांति नही मिली । कलियुग में लोग बहोत ही दुराचारी होगये है । झूट बोलना उनका स्वभाव ही होगया है, घर मे स्त्रियों की ही चलती है , साले सलाहकार बन बैठे है । लालच ने सभी को जकड़ रखा है , लोग छोटी छोटी बातों पर एक दुसरो से लड़ जाते है । सारे वैदिक धर्म नष्ठ होगये है । जो ब्राह्मण कलहते है ओ केवल पाखंड ही करते है ।
ऐसे बाकी सारे तीर्थो के दर्शन करके मैं गंगा आदि नदियों के दर्शन करके यमुना नदी के तट पर स्तिथ वृंदावन पहुंचा । वहां पर मुझे कुछ शांति मिली ,मैंने वहां पर एक युवती स्त्री को देखा, वह दो बूढ़े पुरुषों के सामने बैठ कर रो रही थी । उसके आसपास बहुत सारी स्त्रियां थी तो जो उसे पंखा हिला कर हवा कर रही थी । आकाश में ही कुछ दूर खड़े होकर मैंने उस स्त्रीको देखा, मुझे देखकर उस युवती स्त्रीने मुझे प्रणाम किया और कहा, अजी महात्मा जी थोड़ा ठहरीये, मेरी सहायता कीजिए मैं बहुत ही उलझन में पड़ी हूं । उन युवती की ऐसी बातें सुनकर मैंने उनसे पूछा देवी तुम कौन हो और यहां पर जो दो बूढ़े व्यक्ति हैं,ये कौन है तुम्हारे क्या लगते हैं और ये जो स्त्रियां तुम्हें पंखा कररही है ये सब कौन है ।
मेरी बातें सुनकर उस देवी ने कहा, देवर्षी मैं भक्ति हूं, यहां जो ये दो बूढ़े पुरुष हैं ये दोनों मेरे पुत्र हैं । मैं द्रविड़ देश में उत्पन्न हुई, कर्नाटक में पली-बढ़ी, महाराष्ट्र में सम्मानित हुई और जब मैं गुजरात आई तो मुझे बुढ़ापे ने घेर लिया है । यूं सारे प्रदेशों को घूम कर जब मैं इस वृंदावन में आई तो मेरा बुढ़ापा चला गया और मैं नव युवती हो गई किंतु मेरे ये दो पुत्र अभी बूढ़े ही है । यहां पर ये जो स्त्रियां मुझे पंखा कर रही है ये सब नदियां है, जो मेरा कष्ट देखकर मुझे सांत्वना देने के लिए आई है। आप तो महात्मा पुरुष है आपसे इस संसार में कोई भी बात नहीं छुपी आप मेरे इन दो पुत्रों को फिर से युवक बनाने का उपाय बताइए और हम लोगों का बूढ़े होने का कारण भी बताइए ।
देवर्षि नारद ने भक्ति देवी को प्रणाम किया और कहा, देवी एक क्षण रुकिए, मैं अभी ध्यान द्वारा यह जानने का प्रयास करूंगा कि आपकी इस समस्या का कारण क्या है । कुछ ही क्षण में देवर्षी ने ध्यान द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की समस्या को जान लिया और उन्होंने भक्ति देवी से कहा, देवी कलीयुग के आने के बाद संसार में सारे वैदिक धर्म नष्ट हो चुके हैं । इसीलिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य भी बूढ़े हो चुके हैं । इस वृंदावन में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्राण पिया राधा देवी के संग अनेक लीलाएं की थी, इसी कारणवश यहां का कण-कण भगवान श्रीकृष्णा और राधा रानी की भक्ति से परिपूर्ण है । इसीलिए आप इस स्थान पर आकर युवती हो गई, किंतु आप के दो पुत्र ज्ञान और वैराग्य बूढ़े ही हैं ।
इतना कहकर देवर्षि नारद ने ज्ञान और वैराग्य को सारे वेद और स्मृतियां कह सुनाए, किंतु फिर भी वह बूढ़े ही रहे । उनमें केवल थोड़ी सी शक्ति आई जिससे वे उठ कर बैठ सके, तब देवर्षि नारद आश्चर्यचकित हो गए और वे भक्ति देवी से कहने लगे, मैं इस समय यहां से जा रहा हूं और शीघ्र ही आपके दोनों पुत्रों को नवयुवक बनाने का उपाय खोज कर आऊंगा । देवर्षि नारद अनेक तीर्थों में गए और उन्होंने वहां पर स्थित सारे ऋषियों से इस विषय के बारे में पूछा, किंतु किसी ने भी कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ लोग बात को टाल देते,नहीं तो कुछ लोग आधा अधूरा उत्तर देकर चले जाते । जब कहीं भी उत्तर नहीं मिला तो देवर्षि नारद ने तप करने का विचार किया, उस समय उनके सामने सनकादि कुमार उपस्थित हो गए ।
जब देवर्षी नारदजी ने सनकादि कुमारों को अपनी समस्या के बारे में कहा, तो उन सनकादि कुमारों ने कहा देवर्षी इसका समाधान पहले से ही है । केवल श्रीमद्भागवत के श्रवण से ज्ञान और वैराग्य फिर से युवक हो सकते हैं । इसीलिए तुम भागवत पाठ की तैयारियां करो ,हम लोग वहां पर आकर सभी को भागवत की कथा सुनाएंगे । इसी कथा को सुनकर कलीयुग के आरंभ में अभिमन्यु कुमार परीक्षित को मुक्ति मिली थी । सनकादि कुमारों की आज्ञा लेकर देवर्षि नारद गंगा नदी के तट पर स्थित आनंद घाटपर भागवत पाठ का आयोजन किया ।
उस काथा को सुनने के लिए बहुत सारे ऋषि मुनि आए, सिद्ध आए और अनेक देवता भी रूप बदलकर उस सभा में उपस्थित थे । जैसे ही कथा आरंभ हुई भक्ति कथा स्थानपर आकर सबके हृदय को आनंदित कर दिया । कथा के समाप्त होने के बाद ज्ञान और वैराग्य फिर से नवयुवक हो गए ।
इस तरह श्रीमद्भागवत के श्रवण से भक्ति ज्ञान और वैराग्य तीनों ही अपने बुढ़ापे से मुक्ति पा सके थे ।
Categories: भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ
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