च्यवन ऋषि भगवती जगदंबा के परम भक्त थे । वे सदा अपना समय जगदंबा का ध्यान करने में व्यतीत करते थे । एक सरोवर के निकट जो मानसरोवर की तुलना करने वाला था महर्षि तपस्या कर रहे थे । उनके शरीर को दीमकों ने अपना घर बना लिया था और वह ऐसे लगते थे मानो कोई मिट्टी का ढेर हो । उसी सरोवर के निकट राजा शर्यती की राजधानी थी । एक समय की बात है राजा शर्याति उस सरोवर के निकट विहार करने के लिए आए । उनके साथ उनके बहुत सारे मंत्री और सेना थी । राजा शर्यती की एक सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम सुकन्या था, वह भी अपने पिता के साथ उस सरोवर के समीप आई थी ।
चंचलतावश राजकुमारी सुकन्या सरोवर के निकट पुष्पों को ढूंढते हुए इधर-उधर घूम रही थी । वहीं पर उसने मिट्टी का ढेर देखा, जिसमें से दो छिद्रों से रोशनी आ रही थी । सुकन्या कौतूहलवश वहीं पड़ी लकड़ी लेकर उन छिद्रों को छेद दिया । वास्तव में ओ दो छिद्र महर्षि च्यवन की आंखें थी, जिन से रोशनी निकल रही थी । आंखें फूट जाने के कारण महर्षि को बहुत दुख होने लगा । इसी कारण राजा शर्याति के सैनिकों, मंत्रियों और स्वयं राजा का भी मल-मूत्र बंद हो गया । राजा शर्याति ने अपनी पुत्री की इस भूल के लिए च्यवन ऋषि से क्षमा मांगी । च्यवन ऋषि की कहने पर ,बहुत सोच विचार करके , राजा शर्याति अपनी पुत्री के इच्छा का सम्मान करके सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि के साथ कर दिया ।
च्यवन ऋषि को बुढ़ापे ने घेर लिया था । उनकी दो आंखें भी सुकन्या के कारण चली गई थी । विवाह के बाद सुकन्या च्यवन ऋषि की बहुत श्रद्धा के साथ सेवा करति थी । वह हरदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाती और च्यवन ऋषि को भी उठा देती । शौच आदि दैनंदिन कार्य में चमन ऋषि की मदद करती । दातुन करने के लिए उनको सहायता करती, नहाने के लिए गरम जल च्यवन ऋषि के सामने उपस्थित कर देती । स्नान करने के बाद ऋषि को नए वस्त्र पहनाति और ऋषि को अपने ध्यान स्थल में ले जाकर उन्हें बैठा देती । ध्यान के पश्चात, महर्षि को वह फल खाने के लिए प्रस्तुत करती, फलाहार के बाद महर्षि फिर से वेदपाठ में लग जाते । दोपहर में मुनिवर को भोजन प्रस्तुत करती और उसके बाद मुनिवर को आराम करने के लिए कहती । रात्रि होने पर वह मुनिवार को सुला देती । सुकन्या की यही दिनचर्या थी और वह निष्ठा पूर्वक अपने पति की सेवा करती थी । वह बहुत ही निर्मल मन वाली स्त्री थी और एक पतिव्रता नारी भी थी ।
एक समय की बात है अश्विनीकुमार, जो देवताओं के वैद्य थे महर्षि च्यवन के आश्रम के निकट पधारे । उन्होंने देखा च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या अभी-अभी स्नान करके नदी से आश्रम की ओर जा रही है । सुकन्या अत्यंत ही सुंदर दिख रही थी , उसके सारे अंग बड़े ही कोमल थे । अश्विनी कुमार सुकन्या के पास आए और उनसे पूछने लगे, देवी तुम कौन हो, तुम्हारे पिता कौन है, तुम किसकी पत्नी हो और किसकी बहन हो । इस आश्रम के निकट तुम क्या कर रही हो यह बताने की कृपा करो । अश्विनी कुमारों की बातें सुनकर सुकन्या कहती हैं, मैं राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या हूं मेरे पिता ने मुझे मेरी इच्छा से च्यवन ऋषि को पत्नी के रूप में सौंप दिया है । मेरे पति अंधे है , बुढ़ापे ने उन्हें घेरलिया है ।
सुकन्या की बातें सुनकर दोनों अश्विनीकुमार कहने लगे, बड़े आश्चर्य की बात है तुम जैसे सुंदर और सुकोमल कन्या अंधे और बूढ़े चमन ऋषि की पत्नी है । तुम्हारे दुर्भाग्य के कारण ही तुम्हें ऐसा पति मिला है । नहीं तो शायद ब्रह्मा जी की बुद्धि कुंठित हो गई होगी जो उन्होंने तुम्हें ऐसा पति प्रदान किया है । अन्यथा तुम जैसी सुंदर स्त्री को तो देवलोक में होना चाहिए, तुम देवलोक में रहने के योग्य हो । तुम्हारे पिता ने च्यवन ऋषि को तुम्हें सौंप कर ऐसा कार्य कर दिया है । कोई पिता अपने पुत्री के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है । अश्विनी कमरों की बातें सुनकर सुकन्या ने कहा, तुम दोनों भगवान सूर्यनारायण के पुत्र हो । इसीलिए ऐसी बातें करना तुम्हें शोभा नहीं देता है । भगवान सूर्यनारायण संसार में सबके साक्षी है, सब पर उनकी दृष्टि बनी रहती है । देवताओं को ऐसे विचार रखना शोभा नहीं देता आप लोग इसी क्षण यहां से चले जाइए, नहीं तो मैं आप दोनों को श्राप देदूँगी । मैं पतिव्रता स्त्री हूं प्रत्येक स्थिति में मैं अपनी पति की सेवा ही करती रहूंगी, यही मेरा धर्म है ।
सुकन्या की बातें सुनकर अश्विनी कुमार आश्चर्यचकित हो गए शाप की बात ने उन दोनों को भयभीत कर दिया था । तब अश्विनी कुमारों ने सुकन्या से कहा, देवी हम तुम्हारे धर्म पालन से अति प्रसन्न है, इसीलिए तुम्हें वर देना चाहते हैं । अगर तुम चाहो तो हमारी शक्तियों से तुम्हारे पति को हम हमारे समान युवक बना सकते हैं । फिर तुम हम तीनों में से किसी एक को अपना पति चुन लेना । अश्विनी कुमारों की बातें सुनकर सुकन्या शीघ्र ही अपने पति च्यवन ऋषि के पास गई और उनसे कहा स्वामी इस समय अश्विनी कुमार हमारे आश्रम पर पधारे हुए हैं । मुझ नवयुवती को देखकर वे दोनों काम मोहित हो गए थे । मैंने जब उन्हें अपने धर्म पालन के बारे में कहा और शाप देने की बात कही तो वे मुझ पर प्रसन्न होकर आपको उनके समान नवयुवक बनाना चाहते हैं ।
अश्विनी कुमारोंने यह शर्त रखी है कि जब वह आपको उन दोनों के समान ही नवयुवक, सुंदर और नेत्र वाले बना देंगे तो मुझे तीनों में से किसी एक को पति रूप में चयन करना पड़ेगा । यह बात सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गई हूं और इसी के विषय में आपसे पूछने के लिए आयी हूं ,इस समय मुझे क्या करना चाहिए यह बता दीजिए । च्यवन ऋषि ने कहा प्रिये तुम इसी समय उन अश्विनी कुमारों की बात मान लो और उन्हें यहां पर लेकर आओ । च्यवन ऋषि की आज्ञा पाकर, सुकन्या शीघ्र ही अश्विनी कुमारों की बात मान गई और उन दोनों को च्यवन ऋषि के पास लेकर आई । दोनों अश्विनी कुमारों ने च्यवन ऋषि से कहा कि वह उनके साथ नदी के जल में डुबकी लगाए । तीनों ने एक साथ ही जल में डुबकी लगाई और जब उठकर खड़े हुए तो तीनों एक समान ही दिखने लगे, तीनों ने एक ही साथ, एक ही स्वर में सुकन्या से कहा । देवी हम तीनो में से किसी एक को तुम अपना पति बना सकती हो, जो भी तुम्हें अधिक प्रिय लगे उसे अपना पति बना लेना ।
अपने सामने एक समान तीन पुरुषों को देखकर सुकन्या बहुत ही आश्चर्यचकित हो गई । वह इस सोच में पड़ गई कि इन तीनों में से मेरा वास्तविक पति कौन है । मैं यह कैसे निश्चय करूं कि मेरा पति कौन है, मेरे सामने तो यह बहुत ही कष्ट दाई परिस्थिति उत्पन्न हो गई । अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे को मैं कैसा अपना पति बना सकती हूं । अब मुझे क्या करना चाहिए ,किसके पास सहायता मांगू, ऐसे विचार सुकन्या के मन में आ रहे थे । तब उसने भगवती भुवनेश्वरी की का ध्यान करना आरंभ कर दिया , सुकन्या ने भगवती जगदंबा की स्तुति की जिससे आदि शक्ति जगदंबा सुकन्या पर प्रसन्न हो गई और उन्होंने सुकन्या के हृदय में दिव्य ज्ञान उत्पन्न कर दिया ।
भगवती जगदंबा के द्वारा दिए गए ज्ञान के प्रभाव से सुकन्या ने उन तीनों एक समान पुरुषों में से अपने पति च्यवन ऋषि को पहचान लिया । जिस से चवन ऋषि अति प्रसन्न हो गए ।अब अश्विनी कुमार च्यवन ऋषि की आज्ञा लेकर जाना चाहते थे । तब ऋषि ने कहा देव कुमारों तुम लोगों ने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है । वृद्धावस्था के कारण मुझे बहुत परेशानी होती थी और अंधा होने के कारण मैं कुछ नहीं देख पाता था । आप लोगों ने मुझे युवावस्था प्रदान कर मेरे सारे दुखों का अंत कर दिया है । इसीलिए आप दोनों का कोई कार्य हो तो करना चाहता हूं मुझसे जो भी बन पड़ेगा यदि आपकी इच्छा हो तो मैं उसे अवश्य प्रदान करूंगा ।
मुनि की बात सुनकर दोनों अश्विनी कुमारों ने एक दूसरे से परामर्श करके कहा, देवता होने के पश्चात भी, वैद्य होने के कारण हम दोनों को देवराज इंद्र ने सोमरस पीने के अधिकार से वंचित कर दिया है । इसीलिए हम चाहते हैं कि आप हमें सोमरस पीने का अधिकारी बना दे ।अश्विनी कुमारों की बातें सुनकर च्यवन ऋषि ने सुकन्या के पिता और अपने ससुर महाराज शर्याति के द्वारा एक यज्ञ का आयोजन कराया । बहुत परिश्रम के बाद देवराज इंद्र से दोनों अश्विनी कुमारों को सोमरस पीने का अधिकार भी दिलाया ।
इस तरह अश्विनी कुमारोंने च्यवन ऋषि को एक युवक बनाया था और भगवती जगदंबा की कृपा से सुकन्या ने अपने युवा पति को पहचान लिया था ।
Categories: दुर्गा देवी की कथाएँ, देवी भागवत पुराण
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