
जब सारी सृष्टि को अपने मे समेट कर भगवान विष्णु शेष की शैय्या पर सोये हुए थे तब उनके कान के मल से मधु और कैटभ नाम के दो दैत्य उत्पन्न हुए । इन दैत्यों ने देवी पराम्बा की आराधना करके उनसे इच्छा मृत्यु का वरदान पा लिया था । वरदान के घमंड में ये दोनों दैत्य ब्रह्मा जी को मारने के लिए तयार होगए तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी की प्रार्थना की परंतु वे योग निद्रा के अधीन थे । ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा की आराधना करने के पश्चात देवी विष्णु जी के शरीर से निकलकर अपने स्वरूप में आ जाती है । इसके बाद विष्णु जी मधु और कैटभ के साथ युद्ध कर, देवी योगनिद्रा के सहायता से उन दोनों दैत्यों का अंत करते है ।
दैत्य मधु और कैटभ का अंत करने के पश्चात भगवान विष्णु और ब्रह्मा देवी के सामने खड़े थे इतने में ही भगवान रुद्र भी वहाँ प्रकट होगये । तब इन तीनो देवताओं ने देवी की स्तुति की । स्तुति के पश्चात देवी ने तीनों देवताओं को आदेश दिया कि वे सृष्टि करे । तब ब्रह्मा जी ने देवी से कहा, माता हम कैसे सृष्टि करे सब और जल ही जल है । पृथ्वी का कही कोई पता नही , ना ही इन्द्रिय जिनसे जीवो का शरीर निर्माण किया जाता है ओ भी नही है । त्रिदेवों कि ये बाते सुनकर देवी के मुख पर मुस्कान भर आयी । इतने में ही आकाश से वहां एक विमान आगया , देवी ने कहा ब्रह्मा,विष्णु और रुद्र तुम तीनों निर्भीक होकर विमान में प्रवेश करो , मैं आज तुम्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाउंगी ।
त्रिदेवों को विमान पर बैठे देख देवी ने अपने सामर्थ्य से उस विमान को आकाश में उड़ा दिया । देखते ही देखते विमान उस स्थान में गया जहाँ एक बहोत बड़ा वन था उसमे एक बहोत ही भव्य नगर था जिसमे बहोत ही लंबे लंबे महल थे , उसका परिचय पाने की इच्छा त्रिदेवों के मन मे हुई । वहाँ त्रिदेवों ने उस नगर के राजा को जंगल मे शिकार करते देखा और देवी जगदम्बा को भी विमान पर देखा । उसी क्षण वह विमान हवा से गति पाकर किसी और क्षेत्र में गया , वहाँ त्रिदेवों ने देखा ये तो स्वर्ग है , इंद्र अपनी सभा मे है । बहोत सी अप्सराएं वहां नृत्य कर रही है , तब इन त्रिदेवों को पता चला कि ये स्वर्ग है । इसके पश्चात विमान ब्रह्म लोक के समीप गया वहाँ त्रिदेवों ने देखा कि ब्रह्मा अपनी सभा मे बैठे है और समस्त ऋषिगण उनकी पूजा कर रहे थे । यह देख कर ब्रह्मा आश्चर्य चकित हो गए ।
इसके बाद हमारा विमान शीघ्र ही हवा से गति पाकर कैलाश गया । हमने वहाँ देखा भगवान रुद्र अपने नन्दी पर बैठ कर ध्यन स्थली की और जा रहे थे । इन रुद्र के पांच शिर थे । भगवान गणेश और कार्तिकेय शिव जी के दोनों और थे जिससे शिव जी बहोत शोभा हो रही थी । देवी पार्वती शिव जी की पूजा की तैयारी कर रही थी । इतने में ही हमारा विमान वैकुंठ गया वहाँ उस ब्रह्मांड के विष्णु शेष की शैया पर लेटे हुए थे , देवी लक्ष्मी उनके चरण पाकर रही थी , देवर्षि नारद सहित बहोत से ऋषि उनकी स्तुति कर रहे थे । ये सारे दृश्य देखकर ब्रह्मा , विष्णु और शिव विस्मित होकर एक दूसरे की और देखने लगे ।
इसके बाद विमान उस स्थान पर गया जहाँ भगवती भुवनेश्वरी विराजमान थी , बहोत सी अन्य देवियां लाल, नीला , पिले रंग की साड़ियां पहन कर उनकी स्तुति कर रही थी । बहोत सी अन्य देवियां बहोत से अन्य काम कर रही थी । देवी भुवनेश्वरी को देख के ब्रह्मा , विष्णु और शिव जी को देवी के दर्शन करने की इच्छा हुई । त्रिदेव विमान से उतर कर देवी के भवन के प्रवेश द्वार के पास गए , वे यह सोच रहे थे कि यही रहकर हम देवी का दर्शन करते है । विष्णु जी ने कहा मैं इन देवी को पहचान गया ये वही है जिनके दर्शन मिझे तब हुए थे जब मैं एक बालक के रूप में वटपत्र पर लेटा हुआ था । देवी के मुख से निकला आधा श्लोक आकाश वाणी से सुनकर मैं उसी का जप कर रहा था , उसी वक़्त ये देवी मेरे सामने प्रकट होकर मुझे दर्शन दिए थे ।
तभी देवी भुवनेश्वरी देवी ने त्रिदेवों के तरफ देखा और मुस्कुराकर उनको अंदर आनेका इशारा किया । इससे त्रिदेव बहोत प्रसन्न होकर भवन में जाकर हाथ जोड़ के देवी के सामने खड़े होगये । देवी इनको देख मुस्कुरा रही थी , तभी देखते देखते त्रिदेवों के शरीर स्त्री रूप में परिवर्तित हो गए , यह देख कर ब्रह्मा , विष्णु और शिव विस्मित होगये । तभी ब्रह्मा,विष्णु और शिव ने देखा कि देवी के पैर के नखों में ही अनंत ब्रह्मांड समाये है , जहां अनेक ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपने अपने कार्य मे लगे थे ।
उसके बाद विष्णु , शिव और ब्रह्मा ने देवी की स्तुती की जिससे देवी अति प्रसन्न हुई । देवी ने तीनों देवो को ज्ञान दिया और उनोहनें ब्रह्मा को सरस्वती, विष्णु को लक्ष्मी और शिव जी को काली को दिया और कहा त्रिदेवों ये तीनों शक्तियां मेरी ही विभूतियां है । तुम तीनो इन शक्तियों की सहायता से सृष्टि का कार्य आरंभ करो । जब भी तुम लोगो के सामने कोई समस्या उपस्थित हो जाये तुम मेरी स्तुति कर मेरा स्मरण करना तब मैं प्रकट होकर तुमारी सारी समस्याओं का अंत कर दूंगी ।
देवी के इतना कहने के बाद त्रिदेव एक दूसरे कक्ष में ले जाये गए जहां उन्हें फिर से पुरुष बनाया गया । उसके बाद देवी के उस अद्भुत लोक का दृश्य चला गया और त्रिदेवों ने स्वयं को वही पर पाया जहां पहले विष्णु जी और मधु – कैटभ दैत्यों के बीच युद्ध हुआ था । देवी ने त्रिदेवों के सृष्टि करने के लिए पृथ्वी का निर्माण भी कर दिया था । इसके बाद त्रिदेवों ने देवी के आदेश अनुसार सृष्टि कि ।
इस तरह त्रिदेव स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गए थे ।
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