जानिए क्यों अगस्त्यमुनि ने इंद्र पद पर नियुक्त नहुष को सर्प होने का शाप दिया था

बहुत पहले की बात है, इंद्र ने त्वष्ठा के पुत्र वृत्रासुर की हत्या कर दी थी । उस समय वृत्रासुर स्वर्ग का राजा था और भगवान विष्णु के सलाह अनुसार इंद्र वृत्रासुर से मित्रता करके रह रहे थे । एक दिन अवसर मिलने पर इंद्र ने वृत्रासुर की हत्या कर दी, जिसके फलस्वरूप इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लग गया । अब इंद्र को कहीं भी चैन नहीं आ रहा था । तब वे चुपचाप अकेले ही स्वर्ग से निकल गए । मानसरोवर के एक कमल की नली में छिपकर रहने लगे । देवताओं ने इंद्र को बहुत स्थानों पर ढूंढा किंतु वे उन्हें कहीं पर नहीं मिले ।

देवराज इंद्र के ना मिलने पर ,समस्त देवता और मुनिगण मिलकर नहुष को इंद्र के स्थान पर बिठा दिया । नहुष देवराज इंद्र की पत्नी, शचि की सुंदरता और गुणों के बारे में सुनकर उन पर मोहित हो गया । नहुष देवताओं से कहने लगा, स्वर्ग की समस्त वस्तुओं पर मेरा अधिकार है । इनको  भोगने में मैं पूर्ण रूप से स्वतंत्र हूं । देवी शचि इंद्र की पत्नी है इसलिए उस पर मेरा भी अधिकार है ।  इसी कारण शचि को मेरी पत्नी बन ना चाहिए ।

 जब शचि को पता चला, कि नहुष उनके प्रति ऐसे विचार रखता है , तो वे, देवताओं के गुरु बृहस्पति की शरण में गई । बृहस्पति ने शचि से कहा, तुम मेरे घर पर रह सकती हो । तुम्हारा कोई अहित नहीं होगा , मैं नहुष से तुम्हारी रक्षा करूंगा । उसके बाद शचि उनके ही घर रहने लगी । शचि , बृहस्पति के घर रह रही है यह सुनकर, नहुष बहुत क्रोधित हो गया । काम के अधीन होने के कारण, उसकी बुद्धि नष्ट हो गई थी । अच्छे और बुरे का अंतर उसे समझ नहीं आ रहा था । इसलिए उसने देवताओं को आदेश दिया कि, वे बृहस्पति के घर जाएं और  विनय पूर्वक या बलपिर्वक ,किसी भी तरह से शचि को मेरे पास लेकर आओ ।

तब सारे देवता बृहस्पति जी के घर गए ।  नहुष की कही हुई सारी बातें उन्हें कह दिया । यह सुनकर देवी शचि का शरीर कांपने लगा । वह अत्यंत भयभीत हो गई । तब बृहस्पति जी ने शचि को कहा, देवी इस समय धैर्य से काम लेना चाहिए । तुम्हें  उसको धोखे में डालकर उससे बचने का उपाय करना चाहिए । मेरे पास एक उपाय है, तुम देवताओं के साथ उसके पास जाओ और उससे कहो , मुझे पहले यह निश्चित कर लेने दो की मेरे पति देवराज इंद्र , जीवित है या नहीं । इस बात का निश्चय हो जाने पर, मैं अवश्य ही स्वतंत्रता पूर्वक तुम्हारी पत्नी होने के विषय में निर्णय ले सकती हूं । क्योंकि अपने पति के जीवित होते हुए मैं किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचने का विचार भी अपने मन में नहीं ला सकती ।

बृहस्पति जी की बात मानकर, देवी शचि देवताओं के साथ नहुष के सामने गई । जैसे बृहस्पति ने कहा था वैसे ही नहुष से कहकर, उनसे कुछ समय मांग लिया । शचि को वहां देखकर नहुष बहुत प्रसन्न हो गया । शचि की बात मानकर उन्हें देवराज इंद्र को खोजने के लिए समय दे दिया । तब देवी शशि अति प्रसन्न हो गई और बृहस्पति जी के पास आकर उन्हें सारा वृत्तांत सुना दिया । अब सारे देवता भगवान विष्णु के पास गए और उन से सहायता मांगी कि वे इंद्र को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कराने का मार्ग बताएं ।

भगवान विष्णु के सलाह के अनुसार ,देवताओं ने इंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ कराया । विष्णु जी ने इंद्र के ब्रह्म हत्या के पाप को विभाजित करके उसे नदियों, पहाड़ों, जंगलों और स्त्रियों में बांट दिया ।  जिससे देवराज इंद्र, ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गए । लेकिन फिर भी स्वर्ग के अधिकारी नहीं बने, क्योंकि नहुष अभी भी स्वर्ग के राजा के पद पर नियुक्त थे । इंद्र अपनी पत्नी शचि से भी मिलने नहीं गए थे । इसी कारणवश शचि बहुत ही व्याकुल थी और इंद्र से मिलना चाहती थी । तब उन्होंने बृहस्पति जी के सलाह के अनुसार भगवती जगदंबा की आराधना की । देवी के वरदान से उस स्थान पर पहुंच गई  जहां पर इंद्र थे। इंद्र से मिलने के बाद शचि को बहुत प्रसन्नता हुई ।

शचि ने इंद्र को यह बताया कि नहुष उन्हें बहुत पीड़ा दे रहा है । तब इंद्र ने उनसे कहा, देवी मेरे पास नहुष से छुटकारा पाने का एक उपाय है । तुम अकेले में उसके पास जाओ और उससे कहो कि तुम उसकी पत्नी बनने के लिए तैयार हो ।  किंतु तुम्हें पाने के लिए , उसे ऋषि मुनियों के द्वारा उठाई गई पालकी में बैठकर आना होगा ।  इसी कारणवश , उससे बहुत बड़ा पाप हो जाएगा और वह स्वर्ग से गिर जाएगा । देवी शचि , इंद्र की यह बात मानकर, नहुष से एकांत में मिली ।  उन्हें पाने के लिए, मुनियों द्वारा उठाए हुए पालकी में बैठकर आने की शर्त रखी ।

शचि की बात सुनकर , नहुष अति प्रसन्न हो गया और उसने अगस्त्य आदि मुनियों को बुलाया । नहुष ने उनसे कहा, देवी शचि, मुझसे विवाह करना चाहती है । किंतु उनकी शर्त है कि,  मैं उन्हें पाने के लिए, आप मुनियों के द्वारा उठाई गई पालकी में बैठकर जाऊं । आप लोग मेरी सहायता कीजिए और मेरी पलके उठा कर मुझे शचि के पास लेकर चलिए । अधिक करुणावश, या दैव के अधीन होकर ही, अगस्त्य जी ने उसकी बात मान गए । उसे पालकी में उठाकर शचि के पास लेकर जाने लगे । उस समय नहुष, अपनी सुध बुध खो कर, जोर-जोर से सर्प – सर्प  कह रहा था, मतलब चलो-चलो और अगस्त जी को अपने पैरों से मार भी रहा था ।

नहुष के पांव लगने पर अगस्त्य मुनि बहोत क्रोधित हो गए । उन्होंने, नहुष को शाप दे दिया की, तुम इसी समय सर्प बन जाओ और स्वर्ग से गिर जाओ  ।सर्प योनि में तुम्हें ,बहुत दुख झेलने पड़ेंगे । हजारों वर्ष व्यतीत करने के बाद, धर्म के अंश से उत्पन्न ,युधिष्ठिर नाम के एक पुण्यात्मा व्यक्ति से तुम्हरी भेंट होगी । उनके मुख से प्रश्नों के उत्तर सुनने के बाद, तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। उसके बाद देवताओं ने देवराज इंद्र को उनके पद पर  स्थापित कर दिया ।

इस तरह नहुष अगस्त्यमुनि के शाप  से सर्प बन गए थे ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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