आधी आयु देकर रुरु मुनि द्वारा मरी हुई अपनी भावी पत्नी को जीवित करने की कथा

भृगु के कुल में प्रमती नाम के एक पुरुष उत्पन्न हुए थे प्रमति की पत्नी का नाम प्रतापी था । प्रतापी के गर्भ से रुरुमुनि का जन्म हुआ था जो महान तेजस्वी थे । उसी समय की बात है स्थूलकेशी नाम के कोई एक ऋषि हुए थे बड़े धर्मात्मा और सत्यवादी थे ।  एक समय की बात है मेनका नाम की अप्सरा नदी के जल में क्रीड़ा कर रही थी । अप्सरा पर विश्वावसु ऋषि की दृष्टि पड़ी और उन दोनों का सयोंग होगया । कुछ महीनों बाद मेनका ने स्थूलकेशी मुनि के आश्रम के निकट एक कन्या का प्रसव किया और वह स्वर्ग लोक चलिगायी । स्थूलकेशी ऋषि ने उस कन्या को अपने पास रखलिया, उसका नाम प्रमद्वारा रख दिया और उस अनाथ कन्या का पालन पोषण किया । समय के साथ वह कन्या बड़ी होगयी , उसमे सभी शुभ लक्षण थे । रुरुमुनि ने प्रमद्वारा को देखा और उसपर मोहित होगये ।

अपने आश्रम आकर रुरुमुनि कुछ खिन्न से होगये । पुत्र की ये दशा देख कर रुरुमुनि के पिता ने उनसे खिन्नता का कारण पूछा । रुरु मुनि ने कहा मैं स्थूलकेशी मुनि की पुत्री प्रमद्वारा से विवाह करना चाहता हूं । रुरु के पिता यह बात सुनकर स्थूलकेशी मुनि के आश्रम जाकर शुभ वचनों से पहले उन्हें अपने अनुकूल बनाते है बादमे उनसे अपने पुत्रके लिए प्रमद्वारा का हाथ मांगते है । स्थूलकेशी मुनि भी इस विवाह के लिए मान जाते है । दोनो मुनि साथ रहकर अपने पुत्र और पुत्री के विवाह की तैयारी करते है । उसी समय एक दिन  प्रमद्वारा अपने घर के आंगन में घूम रही थी । घर के आंगन में एक अलसाया हुआ साँप पड़ा था , प्रमद्वारा का पैर पड़ते ही साँप ने प्रमद्वारा को डांस लिया । उसी क्षण प्रमद्वारा के प्रण पखेरू उड़ गए और उसका शरीर जमीन पर गिर पड़ा ।

प्रमद्वाराके मृत शरीर को यू धरती पर पड़े हुए देख  सारे ब्राह्मणों में हाहाकार मच गया । सभी लोग आकर वहां पर खड़े हो गए और कहने लगे यह क्या हो गया, विवाह के शुभ महोत्सव पर यह कैसी अहित कर घटना घट गई । स्तूलकेशी मुनि घर से बाहर आए और अपनी पुत्री को मरे हुए देखकर विलाप करने लगे कुछ ब्राह्मणों ने उन्हें समझाने की कोशिश की परंतु उनके दुख का अंत होते नहीं दिखा । किसी तरह से रुरु मुनि के पास भी यह समाचार पहुंचा तो वह रोते हुए उस स्थान पर आए जहां पर प्रमद्वाराका घर था और उसका मृत शरीर पड़ा था । वहां आकर मृत शरीर को देखकर रुरुमुनि को बहुत दुख हुआ और सब की बातें सुनकर वे बहुत ही आहत हुए । किसी तरह से लोगों की भीड़ में से बाहर आये और नदी के तट पर आकर दुखी होकर यह सोचने लगे, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं, भाग्यने ही उस सर्प को वहां पर भेजा है जो मेरे प्रारब्ध को साकार करने में केवल निमित्त मात्र बना था ।

रुरुमुनि सोच रहे थे, क्या मुझे आत्मदाह कर लेना चाहिए , किंतु आत्महत्या जैसे घ्रणित कार्य को करने से मुझे क्या मिलेगा ।क्या मेरी ओ प्रिया प्रमद्वारा जीवित हो जाएगी, या फिर परलोक में  मुझे पत्नी रूप में प्राप्त होगी, ऐसा तो कुछ नहीं होने वाला है, उल्टे मेरे सर पर आत्म हत्या का पाप  लगेगा । इसीलिए इस समय आत्महत्या जैसा कार्य नहीं करना चाहिए । इसके बाद रुरुमनी सहसा ही उठकर खड़े हो गए और हाथ में नदी का जल लिया और प्रण किया , यदि मैंने अपने जीवन काल में निष्ठा पूर्वक अपने माता पिता की सेवा की है, वेदों का अध्ययन किया है, सदा सच ही बोला है ,किसी को दुख नहीं दिया है, तो यह मेरी प्राणप्रिया प्रमद्वारा जीवित हो जाए, नहीं तो मैं अवश्य ही अपने प्राण का त्याग कर दूंगा और सर्पों का विनाश कर दूंगा। यह कहकर रुरुमुनि ने हाथ में लिया हुआ वह जल धरती पर छोड़ दिया ।

रुरुमुनि अपनी भावी पत्नी की मृत्यु के शौक से दुखी होकर यू विलाप कर रहे थे । तब भगवान का भेजा हुआ एक दूत वहां पर आया और रुरुमुनि से कहने लगा, मुनिवर  तुम ऐसा दुस्साहस क्यों कर रहे हो । क्या कभी मरी हुई स्त्री जीवित हो सकती है , तुम अभी प्रमद्वारा को भूल जाओ । अरे मूर्ख मरने के बाद कैसा प्रेम , तुम अपने लिए कोई एक दूसरी स्त्री ढूंढ लो और उससे विवाह कर सुखी जीवन व्यतीत करो । ऐसी मूर्खता मत करो, मेनका की ये कन्या थी  उसकी आयु समाप्त हो गई  इसीलिए इसकी मृत्यु हो गई । आयु समाप्त होने पर तो  सारे प्राणी  मर जाते है । देवदूत की बातें सुनकर रुरुमुनि कहते हैं अब चाहे प्रमद्वारा जीवित हो या ना हो ,यह बात सत्य है कि मैं किसी अन्य स्त्री से कभी विवाह नहीं करूंगा । रुरुमुनि की यह बात सुनकर देवदूत अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा ,मुमिवर आपकी पत्नी को जीवित करने का एक उपाय है जिसका लाभ पूर्व काल में देवता लोग उठा चुके हैं आप चाहे तो  अपनी आधी आयु  पत्नी को देकर उसे जीवित कर सकते हो ।

देवदूत की यह बात सुनकर रुरुमुनि तुरंत ही अपनी आधी आयु देकर प्रमोद द्वारा को जीवित करने के लिए तैयार हो गए । उसी समय विश्ववसु मुनि भी विमान पर बैठकर वहां आगए ,अपनी पुत्री की मृत्यु का समाचार सुनकर उनका वहां पर आना हुआ था । तब देवदूत और रुरुमुनि दोनों धर्मराज के पास गए और उनसे कहा, धर्मराज यह विश्वावसु मुनि और मेनका की कन्या है । जिसको स्थूलकेशी मुनिने  पाल-पोस कर बड़ा किया है, रुरुमुनि के साथ इस का विवाह तय हुआ है । आयु समाप्त होने के कारण इसकी मृत्यु हो गई है और अब अपनी आधी आयु देकर रुरुमुनि इसे पुनः जीवित करना चाहते हैं ।

देवदूत की बात सुनकर धर्मराज कहते हैं ,यदि तुम प्रमद्वारा को जीवित करना चाहते हो तो जाओ रुरुमुनि की आधी आयु देकर इसे जीवित कर दो । देवदूत ने आश्रम पर आकर प्रमद्वारा को जीवित कर दिया इसके बाद रुरुमुनि और प्रमद्वारा का विवाह हो गया और वे दोनों अपनी आयु समाप्त होने तक सुखी पूर्वक रहे ।



Categories: देवी भागवत पुराण, महाभारत

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