भगवान विष्णु जी के हयग्रीव अवतार की कथा

एक समय की बात है भगवान विष्णु ने 10000 वर्षों तक घोर युद्ध किया । इस युद्ध के बाद थक गए और अपने वैकुंठधाम को आकर समाधि लगा कर अपने धनुष के सहारे सो गए । उसी समय देवताओं की यज्ञ करने की योजना चल रही थी और उन्होंने भगवान विष्णु से मिलने  ब्रह्मा और शिव सहित वैकुंठ आए । वहां उनोहनें देखा कि भगवान विष्णु गढ़ निद्रा में है । सोए हुए को नहीं जगाना चाहिए , यह सोच कर वह लोग वहीं खड़े हो गए । किंतु बहुत देर बाद भी भगवान विष्णु निद्रा से जागे नहीं तब उन्होंने सोच विचार कर,  भगवान विष्णु को जगाने का निर्णय किया । तब ब्रह्मा ने एक कीड़ा उत्पन्न किया और उसे भगवान विष्णु को जगाने के लिए कहा । यह काम करने से हविष्य का भाग मिलेगा,  यह सोच कर उस कीड़े ने  धनुष की रस्सी काट डाली । धनुष की रस्सी कटते एक भयानक शब्द हुआ और चारों ओर अंधेरा छा गया ।

जब कुछ समय बाद धीरे-धीरे अंधेरा कम हुआ तो देवताओं ने देखा कि भगवान विष्णु का सर उनके शरीर पर नहीं है । तब वह देवता अत्यंत चिंतित हो गए, देवताओं को चिंता में देख ब्रह्मा जी ने कहा देवताओं चिंता ना करो ,  संसार में जो होता है ,  कुछ कारण सही होता है यहां पर बिना कारण कोई कार्य नहीं होता । हम लोग देवी पराशक्ति की आराधना करेंगे , अवश्य ही वे इस समस्या का समाधान करेंगी । ऐसा कहकर ब्रह्मा जी ने वेदों को देवी की स्तुति करने का आदेश दिया ।  जब वेदों ने देवी की स्तुति की तो देवी अति प्रसन्न हुई ।

ईसके बाद आकाशवाणी हुई , देवताओं मैं वेदों की स्तुति से अति प्रसन्न हूं । आप लोगों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है । भगवान विष्णु का जो सर कटा है इसमें दो कारण है , पहला तो इन्हें एक बार लक्ष्मी जी ने कह दिया था किए बिना सर के हो जाओ,  क्योंकि लक्ष्मी जी को देखकर विष्णु जी हंस रहे थे । दूसरा  कारण है , हयग्रीव नाम के दैत्य का अंत करना ।  हयग्रीव नाम का एक दैत्य है । इसने  अन्य जल सब त्याग कर 1000 वर्षों तक मेरी तपस्या की थी । उस समय इस दैत्य ने अपनी सारी इंद्रियों को अपने वश में कर लिया था और केवल मेरे एक बीजाक्षर मंत्र का जाप करता था । इसने मेरे तामसी रूप के दर्शन पाने के लिए ऐसी घोर तपस्या की , तब मैं पराशक्ति ही अपने तामसी रूप से इस दैत्य के सामने प्रकट हुई थी ।

देवी को अपने सामने प्रकट हुए देखकर ये दैत्य अत्यंत प्रसन्न हुआ और उठकर खड़े हो गया । वह मेरे उस रूप की  परिक्रमा करने लगा और मेरी स्तुति की ।  मैंने उसे मनोवांछित वर मांगने के लिए कहा । तब उसने कहा देवी मैं अमर होना चाहता हूं । उसकी बातें सुनकर मेरी उस तामसी शक्ति ने कहा दैत्यराज संसार में मृत्यु सभी की होने है,  यही नियम है । इस नियम  को मैं भांग नहीं करूँगी, इसीलिए आप सोच समझकर कोई और वरदान मांग लीजिए । तत्पश्चात उस दैत्य ने  मुझसे वर मांगा कि मेरी मृत्यु केवल भगवान हयग्रीव के द्वारा ही हो । तब मैंने उसे ऐसी से मत मृत्यु प्राप्त करने का वरदान दे दिया था ।

इस समय वही दैत्य अपने बल के घमंड में आकर , ब्राह्मणों, देवताओं और साधु जनों को पीड़ित कर रहा है।  सभी को इस दैत्य की उत्पीडना से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु का हयशीर होना आवश्यक है । इसीलिए आज इनका सिर कट गया है । ब्रह्मा जी आप एक घोड़े का सर काट कर विष्णु के शरीर पर लगा दीजिए इससे उनका हयग्रीव अवतार होगा और वे  उस हयग्रीव दैत्य  का अंत कर देंगे ।  इतना कहकर देवी अंतर्धान हो गई । इसके बाद देवी के आदेश अनुसार ब्रह्मा जी ने अपनी तलवार से घोड़े का सर  काटकर उसे भगवान विष्णु के शरीर पर लगा दिया और उसी क्षण भगवान विष्णु उठकर खड़े हो गए । इस तरह भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ ।

इसके बाद  हयग्रीव स्वरूप भगवान विष्णु और हयग्रीव नाम के उस दैत्य  में भयानक युद्ध छिड़ गया । उसको मारना इतना सरल नहीं था , भगवान विष्णु ने बहुत समय तक उसके साथ युद्ध किया , बाद में देवी जगदम्बा के वरदान अनुसार ,भगवान हयग्रीव के हाथो  उसका अंत हो गया ।



Categories: श्री कृष्ण की कथाएँ

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