रक्तबीज का वध

बहोत पहले की बात है , शुम्भ और निशुम्भ नामके दैत्यों ने देवराज इंद्र से त्रिलोकी का राज्य छीन के सारे देवतावों के काम स्वयं ही करने लगे और देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकल दिया । तब देवताओं ने आदिशक्ति के दिये हुए वरदान – की जब भी देवता संकट में होंगे वे स्वयं प्रकट होकर उनका संकट निवारण करेंगी याद करके हिमालय पे जाकर उनकी स्तुति की । तब माँ जगदम्बा   देवी पार्वती के शरीर से कौशिकी के रूप में प्रकट होकर शुम्भ और निशुम्भ के साथ युद्ध का आरंभ किया था

इस युद्ध मे धूम्रलोचन और चंड और मुंड के मारे जाने के बाद शुंभ और निशुंभ ने , रक्तबीज को देवी से युद्ध करने के लिए भेजा । रक्तबीज  अपनी सारी सेना को लेकर वहां आया जहां पर देवी उपस्थित थी और उसने देवी के साथ युद्ध छेड़ दिया । कालिका और जगदंबा ने रक्तबीज की समूची सेना का वध करना आरंभ कर दिया , इस युद्ध में अन्य सारे देवताओं की शक्तियां भी उनके ही तरह रूप धारण करके युद्ध में प्रकट हुई थी । ब्रह्मा की शक्ति ब्रह्माणी हाथ में कमंडलु लेकर आई थी । नरसिंह की शक्ति नरसिंही भी युद्ध में अति भयानक क्रोध लेकर आई थी । वाराह की शक्ति वाराही , भगवान शिव की शक्ति शिवानी  विष्णु की शक्ति वैष्णवी , कार्तिकेय की शक्ति जगदम्बिका , इंद्र की शक्ति ऐन्द्री ,  इसी तरह समस्त देवताओं की शक्तियां युद्ध में माता जगदंबा की सहायता के लिए उपस्थित हुई थी ।

तदनंतर  सारि देवियों से घिरे हुए महादेवजी ने चंडिका से कहा , मेरी प्रसन्नता के लिये तुम इन सभी असुरों का नाश करो । तब देवी के शरीर से बहोत ही भयानक और उग्र चंडिका शक्ति प्रकट हुई और महादेवजी से कहा कि देवाधिदेव आप शीघ्र ही शुम्भ और निशुम्भ के पास जाइये और उनको ये संदेश दीजिये , दैत्यों तुम इंद्र को त्रिलोकी का राज्य सौंप कर पाताल को चले जाओ नही तो मेरी ये देवियां तुम राक्षसों के रक्त से अपनी भूख मिटाने के लिए बड़ी उत्सुक है । भगवान शिव को अपना दूत बनाने के कारण इन देवी को शिवदूती भी कहा जाता है । महादेव का ये संदेश सुनकर राक्षस और भी क्रोधित हुए और देवी की और बढ़े ।   

तदनंतर देवियों ने राक्षसों के साथ युद्ध छेड़ दिया ।  देवियों ने रक्तबीज को जैसे ही रक्त बहाया उस रक्त से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होजाता । नारसिंही ने जैसे ही  अपने नखों से रक्तबीज के शरीर पर वार किया , तब उसके शरीर से जो एक बूंद  रक्त की गिरी थी,  उससे एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो गया । वैष्णवी ने जब रक्तबीज पर अपने चक्र से प्रहार किया , तब रक्तबीज के शरीर से जो रक्त बहा था उससे कई रक्तबीज उत्पन्न होकर रणभूमि  में खड़े हो गए । ऐन्द्री के वज्र के प्रहार से भी रक्तबीज का जो रक्त गिरा था उससे कई राक्षस उत्पन्न होकर देवी के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गए । कार्तिकेय की शक्ति कौमारी के शास्त्रो से गिरे रक्त से भी कही रक्तबीज उत्पन्न हुए । ऐसे सारी रणभूमि अनेक रक्तबीजों  से भर गई । तब जगदंबा ने काली को कहा ,  काली के तुम अपना मुंह खोल के रखो, जैसे ही मैं इस दुष्ट राक्षस का सर उसके धड़ से अलग करती हूं ,  तुम उसका सारा रक्त पी  जाओ ।  ऐसे नए रक्तबीज  उत्पन्न नहीं होंगे,  क्योंकि उसका रक्त  धरती पर गिरेगा ही नहीं ।

जगदंबा की यह बात सुनकर कालिका ने अपना मुंह बहुत ही विकराल और बड़ा बना लिया । तभी सारी देवियों ने रणभूमि में उपस्थित सारे रक्तबीजों के सर काटना आरंभ कर दिया , जूही देवियां रक्तबीज के सर को काटती, काली ठीक उसी समय उसका रक्त पी जाती ।  ऐसे कर थोड़े ही देर में देवी ने रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए सारे राक्षसों का अंत कर दिया और इसके बाद केवल जो मूल रखतबीज था वही रहगया ।  बाद में देवी ने उसका भी सर धड़ से अलग कर उसे भी मौत के घाट उतार दिया ।

इस तरह देवी ने रक्तबीज का वध किया



Categories: दुर्गा देवी की कथाएँ

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