कृष्ण भाग ९ – वसुदेवजी द्वारा कृष्णा को गोकुल लेके जाना और कन्या रूपी योगमाया को लेके आना

Krishna Episode 9

 

मथुरा के कारागृह में पूर्ण परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर राजाओं के रूप में जन्म लिए हुए राजाओं का अंत करने के लिए अवतार ले लिया था । उसी समय गोकुलमे नन्दपत्नी यशोदाके गर्भसे उस योगमायाका जन्म हुआ, जो भगवान्‌की शक्ति होनेके कारण उनके समान ही जन्म-रहित है ⁠।⁠ दिव्यरूप धारण करके वे अपने पूर्ण अंशसे पधारी थीं। उनका विग्रह त्रिगुणमय एवं परम अलौकिक था। वे एक छोटी-सी कन्याके रूपमें विराज रही थीं।

 

इधर मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी के वचानोका सम्मान करते हुए  चतुर्भुज रूप को त्याग कर बाल रूप धारण करलिया था । भगवान के उनको गोकुल पहुचानें के आदेश को सुनकर देवकीजी ने वसुदेवजी से कहा – पूर्वसमयमें मुझसे नन्दरानीकी बात हुई थी। उन्होंने कहा था—‘मानिनि! तुम अपने पुत्रको मेरे घर भेज देना। यह निश्चय जानो, मैं भलीभाँति उसे पाल-पोस दूँगी। कंसके मनमें विश्वास हो जाय कि यह तुम्हारा पुत्र नहीं है, इसीलिये यह प्रयत्न करना है। फिर तुम्हें पुत्र वापस कर दूँगी।’ परंतु प्रभो! आज तो बड़ी विषम स्थिति सामने आ गयी है। बाहर कंस के ये द्वारपाल खड़े है जो अति क्रूर है और हमारे पुत्र के जन्म की सूचना कंस को देने की प्रतीक्षा कर रहे है । इस बंदीगृह के सभी दरवाजे बंद है उनमे लोहे के ताले लगे है । पतिदेव ,इस समय क्या करना उचित होगा? शूरनन्दन! ऐसी परिस्थिति में आप संतानको अदल-बदल करनेमें कैसे सफलता प्राप्त कर सकेंगे? 

 

वासुदेव और देवकजी यों व्याकुलतापूर्वक सोच रहे थे। इतनेमें आकाशवाणी हुई। वसुदेवजीको सम्बोधित करके आकाशवाणीने कहा—‘वसुदेव! तुम इस बालकको लेकर अभी गोकुल पहुँचा आओ। सम्पूर्ण रक्षकोंको नींदसे अचेत कर दिया जाएगा। आठों दरवाजोंके फाटक खुल जाएगा। किसीमें साँकल नहीं होगा । तुम इस बालकको तुरंत नन्दके भवनमें छोड़कर वहाँसे योगमायाको उठा ले आओ।’ आकाशवाणी को सुनकर वसुदेवजी ने बालक रूप धारण किये हुए परब्रह्म श्रीकृष्ण को लेकर बाहर जाने की इच्छा की । इसके बाद वसुदेवजी ने पुत्र को हाथ मे उठाया और बंदीगृह के दरवाजे की और चलपडे । पुत्र को अपने से दूर जाते देख माता देवकीको दुख तो अवश्य हुआ परंतु उनका पुत्र स्वयं परब्रह्म है यह विचार उनके मन मे आते ही उनका दुख काम हो गया ।

 

वसुदेवजी जैसे ही बालक को लेकर बंदीगृह के पहले दरवाजे के पास गए ,उनोहने देखा भगवान की परम शक्ति योग माया ने द्वारपालों को अचेत कर दिया है । दरवाजे के ताले और सालके अपने आप टूट गए , तब वसुदेवजी पहले दरवाजे से बाहर निकल गए । दूसरे दरवाजे के पास जाते ही फिर से दरवाजे के ताले और सालके योगमाया की कृपा से टूट गए । द्वारपालों को यपगमाया ने पहले ही अचेत कर दिया था । इस तरह वसुदेवजी  आठ दरआवाजों को पार करके बंदीगृह के बाहर निकले , उस समय बादल गरज रहे थे और थोड़ी थोड़ी बारिश हो रही थी । वसुदेवजी ने बिना समय गवाये गोकुल जाने का रास्ता पकड़ लिया । रास्ते मे जाते वक्त वसुदेवजीने सारी मथुरा नगरी को अचेत पाया । भगवान की योगमाया ने उन सबको अपना कार्य सिद्ध करने के लिए अचेत कर दिया था ।

 

वसुदेवजी के गोकुल जाते समय ,बारिश में भगवान को भीगते हुए देख कर , अनंत फनो वाले भगवान शेष ,जो सम्पूर्ण सृष्टि को अपने एक फन पर तिल के एक दाने के समान धारण करते है । अपने फनो से जलको रोकते हुए भगवान के पीछे पीछे चल पड़े । मथुरा से गोकुल जाने के लिए यमुना नदी को पार करके जाना पड़ता है । नगर से बाहर निकल कर वसुदेवजी यमुना के तट पर आ पहुंचे । उन दिनों बार बार बारिश हुआ करती थी इसलिए यमुना नदी में बाढ़ आती रहती थी । उनका प्रवाह गहरा और तेज हो गया था। तरल तरंगोंके कारण जलपर फेन-ही-फेन हो रहा था। सैकड़ों भयानक भँवर पड़ रहे थे। यमुना नदी की ऐसी स्थिति देख कर वसीदेवजी इस चिंता में पड़ गए कि अब इस नदी को मैं कैसे पार करूँगा । तभी भगवान की परम प्रिय नदी  यमुना जी ने भगवान  को  उसी तरह मार्ग दिया जैसे समुद्र ने भगवान राम को मार्ग दिया था । यमुना जी के प्रवाह को कम हुए देख वसुदेव जी प्रसन्न हो गए और वे यमुना जी को पार करके जल्दी से गोकुल की और बढ़ने लगे । कुछ ही समय के बाद वसुदेव जी गोकुल पहुंच गए , गोकुल में भी देवी योगमाया ने सभी ग्रामवासियों को अचेत कर दिया था  । 

 

गोकुल में पहुंचकर वसुदेवजी सीधे नंद बाबा के घर गए वहां कुछ ही समय पहले नंद पत्नी यशोदा ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया था  । वह कन्या स्वयं भगवान की परम शक्ति योगमाया ही थी जो भगवान के समान ही है  । नन्द बाबा के घर पहुंच कर वसुदेव जी ने अपने पुत्रको यशोदाजीकी शय्यापर सुला दिया और उनकी नवजात कन्या लेकर वे बंदीगृहमें लौट आये ⁠।⁠ जेलमें पहुँचकर वसुदेवजीने उस कन्याको देवकीकी शय्यापर सुला दिया और अपने पैरोंमें बेड़ियाँ डाल लीं तथा पहलेकी तरह वे बंदीगृहमें बंद हो गये ⁠।⁠ उधर नन्दपत्नी यशोदाजीको इतना तो मालूम हुआ कि कोई सन्तान हुई है, परन्तु वे यह न जान सकीं कि पुत्र है या पुत्री। क्योंकि एक तो उन्हें बड़ा परिश्रम हुआ था और दूसरे योगमायाने उन्हें अचेत कर दिया था ⁠।



Categories: कृष्ण अवतार, भागवत पुराण, श्री कृष्ण की कथाएँ

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