Stories from Hindu Scriptures

कृष्ण भाग २६ – कालियके कालियदहमें आनेकी कथा

  पूर्वकाल की बात है, भगवान विष्णु के वाहन गरुडजीकी माता विनता और सर्पोंकी माता कद्रूमें परस्पर वैर था। माताका वैर स्मरण कर गरुडजी जो सर्प मिलता उसीको खा जाते। इससे व्याकुल होकर सब सर्प ब्रह्माजीकी शरणमें गये। तब ब्रह्माजीने यह नियम कर दिया कि प्रत्येक अमावास्याको प्रत्येक सर्पपरिवार बारी-बारीसे गरुडजीको एक सर्पकी बलि दिया…

कृष्ण भाग २५ – कालियपर कृपा

  यमुनाजीमें कालिय नागका एक कुण्ड था। उसका जल विषकी गर्मीसे खौलता रहता था। यहाँतक कि उसके ऊपर उड़नेवाले पक्षी भी झुलसकर उसमें गिर जाया करते थे ⁠।⁠ उसके विषैले जलकी उत्ताल तरंगोंका स्पर्श करके तथा उसकी छोटी-छोटी बूँदें लेकर जब वायु बाहर आती और तटके घास-पात, वृक्ष, पशु-पक्षी आदिका स्पर्श करती, तब वे उसी…

कृष्ण भाग २४ – धेनुकासुरका उद्धार

अब बलराम और श्रीकृष्णने पौगण्ड-अवस्थामें अर्थात् छठे वर्षमें प्रवेश किया था। अब उन्हें गौएँ चरानेकी स्वीकृति मिल गयी। वे अपने सखा ग्वालबालोंके साथ गौएँ चराते हुए वृन्दावनमें जाते और अपने चरणोंसे वृन्दावनको अत्यन्त पावन करते ⁠।⁠ यह वन गौओंके लिये हरी-हरी घाससे युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पोंकी खान हो रहा था। आगे-आगे गौएँ, उनके पीछे-पीछे बाँसुरी…

कृष्ण भाग २३ – ब्रह्माजीके द्वारा भगवान्‌की स्तुति

  ब्रह्माजीने स्तुति की—प्रभो! एकमात्र आप ही स्तुति करनेयोग्य हैं। मैं आपके चरणोंमें नमस्कार करता हूँ। आपका यह शरीर वर्षाकालीन मेघके समान श्यामल है, इसपर स्थिर बिजलीके समान झिलमिल-झिलमिल करता हुआ पीताम्बर शोभा पाता है, आपके गलेमें घुँघचीकी माला, कानोंमें मकराकृति कुण्डल तथा सिरपर मोरपंखोंका मुकुट है, इन सबकी कान्तिसे आपके मुखपर अनोखी छटा छिटक…

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