हर एक परिस्थिति में अपने कर्तव्य की जानकारी रखने वाले और विकट से विकट स्थिति में भी पूर्ण निष्ठा के साथ धर्म पालन करने वाले महात्मा वसुदेवजी ने आकाशवाणी के समय दिए हुए वचन अनुसार जन्म लेते ही उनके पुत्रों को कंस को सौप दिया था । दुराचारी कंस आकाशवाणी से भयभीत होकर अपने प्राणों की रक्षा करने में तत्पर होगया और उसने वसुदेवजी और देवकी के छः पुत्रों को जन्म लेते ही पत्थर पे पटक के मार दिया था ।
जब कंसने एक-एक करके देवकीके छः बालक मार डाले, तब देवकीके सातवें गर्भमें भगवान्के अंशस्वरूप श्रीशेषजी जिन्हें अनन्त भी कहते हैं,पधारे। शेष भगवान्ने विचार किया कि ‘रामावतारमें मैं छोटा भाई बना, इसीसे मुझे बड़े भाईकी आज्ञा माननी पड़ी और वन जानेसे मैं उन्हें रोक नहीं सका। श्रीकृष्णावतारमें मैं बड़ा भाई बनकर भगवान्की अच्छी सेवा कर सकूँगा। इसलिये वे श्रीकृष्णसे पहले ही गर्भमें आ गये। देवी पृथ्वी ,गाय के रूप में उनके कष्ठ से मुक्ति का निवेदन लेके जब ब्रह्मा जी के साथ विष्णु लोक गयी थी । तब वहां देवताओं ने भगवान विष्णु की स्तुति की और भगवान ने पृथ्वी की वेदना सुनकर उसके कष्ट दूर करने का वचन दिया था । स्तुति किये जानेपर भगवान् परमेश्वरने अपने श्याम और श्वेत दो केश उखाड़े और देवताओंसे बोले-‘मेरे ये दोनों केश पृथिवीपर अवतार लेकर पृथिवीके भाररूप कष्टको दूर करेंगे । उनिमे से भगवान के श्वते केश शेषनाग जी के स्वरूप ही थे । आनन्द-स्वरूप शेषजीके गर्भमें आनेके कारण देवकीको स्वाभाविक ही हर्ष हुआ। परन्तु कंस शायद इसे भी मार डाले । इस भयसे उनका शोक भी बढ़ गया ।
विश्वात्मा भगवान्ने देखा कि मुझे ही अपना स्वामी और सर्वस्व माननेवाले यदुवंशी कंसके द्वारा बहुत ही सताये जा रहे हैं। तब उन्होंने अपनी योगमायाको यह आदेश दिया – ‘देवि! कल्याणी! तुम व्रजमें जाओ! वह प्रदेश ग्वालों और गौओंसे सुशोभित है। वहाँ नन्दबाबाके गोकुलमें वसुदेवकी पत्नी रोहिणी निवास करती हैं। उनकी और भी पत्नियाँ कंससे डरकर गुप्त स्थानोंमें रह रही हैं । इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं, देवकीके उदरमें गर्भ रूपसे स्थित है। उसे वहाँसे निकालकर तुम रोहिणीके पेटमें रख दो । कल्याणी! अब मैं अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशोंके साथ देवकीका पुत्र बनूँगा और तुम नन्दबाबाकी पत्नी यशोदाके गर्भसे जन्म लेना । तुम लोगोंको मुँहमाँगे वरदान देनेमें समर्थ होओगी। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओंको पूर्ण करनेवाली जानकर धूप-दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकारकी सामग्रियोंसे तुम्हारी पूजा करेंगे ।
पृथ्वीमें लोग तुम्हारे लिये बहुत-से स्थान बनायेंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका, कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत-से नामोंसे पुकारेंगे । देवकीके गर्भमेंसे खींचे जानेके कारण शेषजीको लोग संसारमें ‘संकर्षण’ कहेंगे, लोकरंजन करनेके कारण ‘राम’ कहेंगे और बलवानोंमें श्रेष्ठ होनेके कारण ‘बलभद्र’ भी कहेंगे । जब भगवान्ने इस प्रकार आदेश दिया, तब योगमायाने ‘जो आज्ञा’—ऐसा कहकर उनकी बात शिरोधार्य की और उनकी परिक्रमा करके वे पृथ्वी-लोकमें चली आयीं तथा भगवान्ने जैसा कहा था, वैसे ही किया । देवी योगमाया ने देवकी के सातवे गर्भ के पांचवे महीने में उस गर्भ को देवकी के उदर से खींच कर रोहिणी के उदर में स्थापित किया, कंसके भयसे उद्विग्न होकर वसुदेवजीकी वे प्रेयसी भार्या रोहिणी उस समय गोकुलमें कालक्षेप कर रही थीं।
जब योगमायाने देवकीका गर्भ ले जाकर रोहिणीके उदरमें रख दिया, तब रजस्वला रोहिणी आधी रातके समय अपने भीतर स्थापित हुए उस गर्भको गिरानेकी चेष्टा करने लगी; परंतु सहसा निद्रासे आविष्ट होकर वह स्वयं पृथ्वीपर गिर पड़ी । उसने अपने पेटसे निकले हुए उस गर्भको स्वप्नकी भाँति देखकर फिर नहीं देखा (क्योंकि योगमायाने उसे अदृश्य कर दिया था); इससे दो घड़ीतक उसके मन में बड़ी व्यथा हुई । रात्रिके अन्धकारमें बुद्धिमान् वसुदेवकी पत्नी रोहिणी चन्द्रमाकी प्यारी भार्या रोहिणीके समान दिखायी देती थी । वह उस गर्भके लिये उद्विग्न हो रही थी। उस समय देवी योगनिद्राने उससे कहा – ‘शुभे! तुम्हारे उदरमें स्थापित हुआ जो यह गर्भ है, यह तुमरे ही पति का है जिसे मैंने भगवान की आज्ञा अनुसार देवकी के उदर से खींचकर तुमरे उदर में स्थापित किया है इसीलिए तुम्हें व्यथित होने की आवश्यकता नहीं है । रोहिणी इसका आकर्षण हुआ है, इस कारण यह पुत्र संकर्षण नामसे प्रसिद्ध होगा’ । इस प्रकार उस पुत्रको पाकर रोहिणी मन ही – मन प्रसन्न हुई; किंतु लज्जासे उसका मुख कुछ नीचेको झुक गया। फिर तो वह उत्तम प्रभासे युक्त रोहिणीके समान अपने भवनके भीतर चली गयी ।
मथुरा के लोगों को जब ये बात पता चली कि देवकी का गर्भपात होगया तब पुरवासी बड़े दुःखके साथ आपसमें कहने लगे- ‘हाय! बेचारी देवकीका यह गर्भ तो नष्ट ही हो गया’ । देवकीका गर्भपात हो गया—यह बात कंसको भी ज्ञात हो गयी। यह समाचार उस दुरात्माके लिये बड़ा ही सुखप्रद था। सुनकर वह आनन्दमें भर गया। समय आने पर भगवान शेषनाग ने गर्भवास त्याग कर दिया और जन्म ग्रहण के बाद वे अपनी माता सहित प्रियजनों के आनंद के करण बने ।
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