भाग १ – देवी पृथ्वी के असहनीय दुख और भगवान् द्वारा अवतार ग्रहण का वचन

Krishna Incarnation - Sufferings of Mother Earth

 

द्वापर युग की बात है,लाखों दैत्यों ने राजाओं का वेश धारण करके इस पृथ्वी पर जन्म लिया था । कंस,पूतना,चाणूर, कालयवन, जरासंध, तृणावर्त, कागासुर, अघासुर, प्रलंबासुर, नरकासुर, शकटासुर, वत्सासुर,बकासुर,अरिष्टासुर,धेनुकासुर, कालिया ,व्योमासुर, कैवल्यपीड, बाणासुर, पौंड्रक, शिशुपाल,दंतवक्र ये सारे दैत्य इन में से प्रमुख थे।  राजा रूपी दैत्यों ने पृथ्वी पर स्थित मनुष्यों पर अनेक अत्याचार करने आरंभ कर दिए थे ।

इन असुरों के अत्याचारों से और पापों से माता पृथ्वी बहुत ही दुखी हो गई थी और ऐसे दुष्ट जीवो को अपने ऊपर विचरण करते हुए देखकर वे अनेक कष्ट भोग रही थी । अपनी प्रजा और अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए माता पृथ्वी ने एक गाय का रूप बना लिया और सहायता के लिए सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी की शरण में गई । ब्रह्मा जी के पास जाते समय उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे और उनके मुंह पर आ रहे थे । गाय के रूप में स्थित माता पृथ्वी का शरीर बहुत ही दुबला पतला हो गया था । देवी पृथ्वी को रोते हुए ब्रह्मलोक जाते हुए देख स्वर्ग के अनेक देवता भी उनके साथ चल पड़े ।

ब्रह्मा जी के पास जाकर पृथ्वी देवी ने उन्हें प्रणाम किया । माता पृथ्वी को गाय का रूप धारण करके अपने लोक में आए हुए देख ब्रह्मा जी ने उन्हें वहां आने का कारण पूछा । तब देवी पृथ्वी ने अपने सारे कष्टों को ब्रह्मा जी के सामने कह सुनाया कि किस तरह लाखों असुर , राजाओं का वेश धारण करके पृथ्वी पर शासन कर रहे हैं और प्रजा पर अनेक अन्याय कर रहे हैं । ब्रह्मा जी ने ध्यान से देवी पृथ्वी की सारी बातें सुनी, इसके बाद वे समस्त देवताओं और माता पृथ्वी को अपने साथ लेकर भगवान शंकर के धाम कैलाश गए  । कैलाश से भगवान शंकर को भी साथ में लेकर ब्रह्मा, शंकर आदि समस्त देवता माता पृथ्वी के साथ क्षीर सागर में गए जहां पर परम प्रभु भगवान नारायण सदा विराजमान रहते हैं ।

भगवान देवताओं के आराध्य देव है, वे ब्रह्मा और शंकर के भी आराध्य और पूजनीय है । भगवान अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करते हैं और सदैव उनकी रक्षा करते हैं । ब्रह्मा और सभी देवताओं ने पुरुष सूक्त से भगवान की स्तुति करना आरंभ कर दिया । स्तुति करते करते ब्रह्मा जी समाधिस्त  तो हो गए और उन्हें समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनाई दी । इसके बाद ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा,  देवताओं भगवान को पहले से ही पृथ्वी देवी के दुखों के बारे में पता है ,। भगवान तो सर्वांतर्यामी है, पृथ्वी के दुखों का अंत करने के लिए, वे स्वयं पृथ्वी पर अवतीर्ण होंगे । उनके साथ उनकी परम प्रिय भगवती राधा भी अवतार लेंगी । अपने इस अवतार में, भगवान अपने भक्तों के लिए अनेक लीलाएं करेंगे और इन दैत्यों का जो पृथ्वी का भार बन बैठे हुए हैं उनका अंत भी करेंगे ।

ब्रह्मा जी कहते हैं, देवताओं भगवान पृथ्वी पर यदुकुल में जन्म लेंगे । इसलिए उनकी सेवा और अनेक लीलाओं में उनके सहयोग के लिए तुम लोगों को यदुकुल में जन्म लेना चाहिए । भगवान की प्रेमिका श्री राधा रानी की सेवा के लिए बहुत सारी देव पत्नियां भी गोकुल में जन्म ले । भगवान यदुकुल में वसुदेव और देवकी जी की संतान के रूप में जन्म लेंगे । ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति ही , वासुदेव और देवकी के रूप में जन्म लेंगे । भगवान की परम प्रिय श्री राधा जी बरसाने में वृषभानु जी के घर में जन्म ग्रहण करेंगी । भगवान अनंत, जो शेषनाग कहलाते हैं और जिन्होंने भगवान के श्रीराम के अवतार के समय उनके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में जन्म लिया था, इस अवतार में उनके बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लेंगे । उनका जन्म वसुदेव और उनकी दूसरी पत्नी रोहिणी के द्वारा होगा । भगवान की ऐश्वर्यशालिनी योगमाया जिनके द्वारा यह समस्त ब्रह्मांड मोहित है वे भी भगवान की आज्ञा से गोकुल में नंद और यशोदा के घर में जन्म लेंगी और भगवान की बहन कहलाएंगी ।

देवताओं, इंद्र, वायु, धर्मराज ,अश्विनी कुमार और सूर्य यह सभी अपने अंश के द्वारा पृथ्वी पर जन्म ग्रहण करें । आपके अंशों के द्वारा भगवान अनेक दैत्यों का वध करेंगे और इन्हीं के माध्यम से संसार को वेद और उपनिषदों में छुपा हुआ ज्ञान भी बतलाएंगे । इसलिए अब तुम लोग ज्यादा देर न करके शीघ्र से पृथ्वी पर जन्म लो और अपने अपने कार्य में लग जाओ । ब्रह्मा जी ने देवताओं को ऐसा आदेश दिया और देवी पृथ्वी को जो दैत्यों के  दुराचार से बहुत ही दुखी थी , समझाया और सांत्वना दी कि भगवान स्वयं अवतार लेकर तुम्हारे कष्टों का निवारण करेंगे और उन्हें वापस भेज दिया । इतना कह कर ब्रह्मा जी स्वयं अपने लोक को चले गए ,शंकर तथा बाकी सब देवता भी अपने अपने लोकों को चले गए और भगवान के अवतार में अपना सहयोग देने के लिए अपना कार्य आरंभ कर दिया ।



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