जानिए क्यों दक्षके मन में उत्पन्न हुआ था शिव और सती के प्रति द्वेष

पूर्व समय की बात है सृष्टि में हलाहल नाम के देत्य उत्पन्न हुए थे । ब्रह्माजी के वरदान से यह दैत्य बहुत ही अभिमानी हो गए थे । समस्त त्रिलोकी को जीतकर इन दैत्यों ने विष्णु लोक और शिव लोके को जीतने के अभिप्राय से इन दोनों लोकों को घेर लिया था । दैत्यों को अपने लोकों को घेरे हुए देखकर शिव और विष्णु जी इन दैत्यों के साथ युद्ध के लिए उपस्थित हुए । युद्ध आरंभ होने के बहुत समय बाद और बहुत परिश्रम करने के बाद भगवान विष्णु और शिव ने हलाहल नाम के दैत्यों को मार दिया । 

भगवती जगदंबा के प्रभाव से ही यह दोनों महान ईश्वर दैत्यों को मार सके थे । परंतु इन दोनों देवताओं ने उनकी शक्तियां लक्ष्मी और गौरी की अवहेलना कर दी और तिरस्कार भी कर दिया । जिसके कारण लक्ष्मी और गौरी विष्णु और शिव को छोड़कर अंतर्धान हो गई । लक्ष्मी और  गौरी के अंतर्धान होने के बाद विष्णु और शिव दोनों शक्तिहीन हो गए । तब ब्रह्मा जी ने ही इन दोनों का कार्य संभाला और अपने पुत्रों को भगवती जगदंबा की आराधना करने की आज्ञा दी , ताकि शिव और विष्णु को उन दोनों की शक्तियां पुनः मिल सके ।

ब्रह्मा पुत्रों की आराधना से भगवती जगदंबा अति प्रसन्न हुई और उनको वरदान दिया की विष्णु और शिव की शक्तियां शीघ्र ही पुनः अवतार धारण करेंगी । तब दक्ष प्रजापति ने भगवती जगदंबा से प्रार्थना की कि वे उसके घर में अवतार ग्रहण करके उसके जीवन को सफल करें । कुछ ही समय बाद भगवती जगदंबा के वरदान के फलस्वरुप भगवती जगदंबाकी शक्ति जो गौरी नाम से विख्यात है और पूर्व समय में भगवान शिव की संगिनी थी दक्ष के घर में जन्म धारण किया । भगवती जगदंबा के सत्यांश होने के कारण इस देवी का नाम सती रखा गया आगे चलकर इन्हीं देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया था ।

एक समयकी बात है मुनिवर दुर्वासा जम्बूनदके तटपर विराजनेवाली प्रधान देवता भगवती जगदम्बाके पास गये । वहाँ मुनिको भगवतीके साक्षात् दर्शन हुए। इसके बाद वे मायाबीज नामक मन्त्रका जप करने लगे । देवेश्वरीने प्रसन्न होकर मुनिको अपने गलेकी पुष्पमाला प्रसादस्वरूप दे दी । दिव्य पुष्पोंके परागसे परिपूर्ण होनेके कारण उस मालापर भ्रमर मँडराते और गुनगुनाते थे । मुनिने उस मालाको सिर झुकाकर ले लिया । इसके बाद वे परम तपस्वी मुनि वहाँसे तुरंत निकले और आकाशमार्गसे होते हुए जहाँ सतीके पिता दक्ष प्रजापति स्वयं विराजमान थे, वहाँ जा पहुंचे। उस समय दक्षने मुनिसे पूछा-प्रभो ! यह दिव्य माला किसकी है ? जगत्के मनुष्यों के लिये यह परम दुर्लभ माला आपने कैसे प्राप्त कर ली ।

दक्ष प्रजापतिका यह वचन सुनकर मुनिवर दूर्वासाकी आँखें आँसुओंसे भर गयीं प्रेमसे उनका हृदय विह्वल हो उठा । उन्होंने उत्तर दिया-भगवती जगदम्बाका यह अनुपम प्रसाद है । तब सतीके पिता दक्षने मुनिसे प्रार्थना की – यह माला मुझे देनेकी कृपा कीजिये । त्रिलोकीमें कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जो भगवती जगदम्बाके उपासकको न दी जा सके -यों विचार कर मुनि ने वह पुष्पहार दक्षको दे दिया । दक्षने सिर झुकाकर माला ले ली । तदनन्तर अन्तःपुरमें पति-पत्नी के आनन्दके लिये जो अत्यन्त सुन्दर शय्या थी उसपर उन्होंने उस मालाको रख दिया और उसी शय्यापर रात्रिके समय उन्होंने स्त्री-समागम किया।  इस पापकर्मके प्रभावसे भगवान् शंकर तथा देवी सतीके प्रति दक्षके मनमें द्वेष उत्पन्न हो गया। 

 उसी अपराधका परिणाम यह हुआ कि दक्षने अपने यज्ञमे शिव और सती को आमंत्रित नही किया । सति  पिता के प्रेमवश बिन बुलाए ही उस यज्ञ में चली गयी । भगवान शिव ने उन्हें जाने से रोका परंतु वे उनकी बात नहीं सुनी । उस यज्ञ में भगवान शिव का अपमान होते हुए देख ,सतीने सती-धर्मको प्रदर्शित करनेके विचारसे दक्षसे उत्पन्न अपने शरीरको योगामिद्वारा भस्म कर दिया। 

सती के शरीर त्याग के बाद भगवान् शंकर की कोपाग्निने त्रिलोकीमें प्रलय मचा दिया । जब वीरभद्र, प्रकट हो भद्रकालीको साथ लेकर तीनों लोकोंको नष्ट करने के लिये प्रस्तुत हो गये, तब ब्रह्मादि देवताओंने भगवान शंकरकी शरण ली । दक्षको मार दिया गया था और उनका यज्ञ सब प्रकारसे नष्ट हो गया था। तब करुणाके सागर भगवान् शिवने देवताओंको अभय प्रदान किया। साथ ही बकरेका सिर जोड़कर दक्षके जीवित होनेकी भी व्यवस्था कर दी । 

तत्पश्चात् वे महात्मा महेश्वर अत्यन्त उदास होकर यज्ञ-स्थलमें गये। उन्होंने देखा, सतीका चिन्मय शरीर अग्निमें जल रहा था। ‘हा सती !’ इस शन्दको बार-बार दुहराते हुए शिवने उस शरीरको उठाकर अपने कंधेपर रख लिया और पागल जैसे होकर वे देश-देशमें भटकने लगे । तब ब्रह्मा आदि देवताओंका मन अत्यन्त चिन्तासे व्याप्त हो गया । उस समय भगवान् विष्णुने अपने चक्र से सती के शरीर को काट दिया । तदनन्तर जहाँ-कहीं भी शरीरके टुकड़े थे, वहीं शंकरकी अनेक मूर्तियाँ प्रकट हो गयी ।

जिस स्थान पे भी भगवतो सती के अंग गिरे थे ओ सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाये । उस प्रतेयक स्थान में भगवती जगदम्बा का भगवान शिव के साथ निवास है ।

 इस तरह अपने पाप कर्म के कारण दक्षके मनमे  शिव और शक्ति के प्रति द्वेष उत्पन्न होगया ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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