वैवस्वत मनु के पुत्र राजा शर्याति थे ,उनकी अनेक पत्नियां थी । शर्याति की एक पुत्री थी,जिसका नाम सुकन्या था । समस्त रानियों को राजकुमारी सुकन्या अत्यंत प्रिय थी और वह देखने में अति सुंदर थी । राजा शर्याति के नगर के बाहर मानसरोवर के समान एक बहुत बड़ा और सुंदर सरोवर था । उस सरोवर के आसपास अनेक प्रकार के वृक्ष थे जो सदा ही फूलों और फलों से लदे रहते थे । उस सरोवर के समीप अनेक प्रकार के प्राणी और पक्षी रहते थे । मोरों की ध्वनि वहां सदा सुनाई देती थी, इसलिए वह सरोवर पास जाने वालों के लिए अत्यंत प्रिय था ।
उस सरोवरके बिल्कुल पासमें ही वृक्षोंसे घिरे हुए एक पवित्र स्थानपर च्यवन मुनि निवास करते थे । उन तपस्वी मुनिके चित्त में सदा शान्ति बनी रहती थी । उस स्थानको निर्जन समझकर उन्होंने मनको एकाग्र करके तपस्या आरम्भ कर दी थी। वे आसन जमाकर बैठे थे। उन्होंने मौन धारण कर रखा था। प्राणोंपर उनका पूरा अधिकार था। सभी इन्द्रियाँ उनके वश में थीं। उन तपोनिधिने भोजन भी बंद कर दिया था। वे निर्मल रहकर भगवती जगदम्बाका ध्यान करते थे। राजन् ! उनके शरीरपर चारों ओरसे लताएँ चढ़ गयी थी । दीमकाने उन्हें अपना घर बना लिया था । राजन् ! बहुत दिनोंतक यो बैठे रहने के कारण चीटियों उनपर चढ़ गयी थीं और उनसे वे घिर गये थे। ऐसा जान पड़ता था मानो केवल मिट्टीके धूहे हों ।
एक समय की बात है, राजासर शर्याति उस सुंदर सरोवर पर गए । सरोवर में अनेक प्रकार के कमल खिले हुए थे जिससे वह सरोवर बहुत ही आकर्षक दिख रहा था । उनके साथ बहुत से सैनिक थे और मंत्री गण भी उपस्थित थे । उनकी पुत्री सुकन्या और रानी भी राजा के साथ उस स्थान पर गए थे । चंचलता के कारण राजकुमारी सुकन्या उस सरोवर के समीप पुष्प तोड़ते हुए इधर-उधर घूम रही थी । राजकुमारी सुकन्या ने वहां पर एक मिट्टी का ढेर देखा जो लताओं से घिरा हुआ था । उसमें से दो छिद्र थे, जिनमें से रोशन आ रही थी । यह देखकर राजकुमारी को कौतूहल हुआ और वहीं से कुछ काटे उठाकर राजकुमारी ने दीमकों के घर उस मिट्टी के ढेर को हटाना आरंभ कर दिया ।
उसी समय राजकुमारी पर च्यवन ऋषि की दृष्टि पड़ी । एक ही स्थान पर बैठे रहने के कारण दीमकों ने उनके शरीर को अपना घर बना लिया था । ऋषि ने कहा राजकुमारी मैं यहां पर तपस्या कर रहा हूं ,तुम इस मिट्टी के ढेर को मत हटाओ । किंतु राजकुमारी ने मुनि की बात नहीं सुनी, यह कौन सी वस्तु ऐसे चमक रहे हैं यह जानने के लिए उसने कांटे से मुनि के नेत्र छेद दिए । दैव की प्रेरणा से राजकुमारी के द्वारा यह अप्रिय घटना घट गई । आंख फुट जाने के कारण मुनि को बहुत ही कष्ट हो रहा था, फिर तो उसी समय राजा के सैनिकों मंत्रियों और स्वयं राजा का ही मल मूत्र बंद हो गया । इसके अतिरिक्त उनके घोड़े और समस्त प्राणियों का भी यही हाल हो गया । तब राजा ने बहुत चिंता के साथ इसके कारणों पर विचार किया ,कुछ समय विचार करने के बाद राजा अपने घर को वापस लौट आए ।
संसार में भगवती जगदंबा के भक्तों को भूलवश या जानबूझकर कष्ट पहुंचा कर कोई भी मनुष्य सुखी नहीं रह सका है , उसे अवश्य ही कष्ट भोगने पड़े हैं । महल आने के बाद, राजा ने अपने सारे सैनिकों और मंत्रियों से पूछा आप लोगों से कहीं कोई त्रुटि तो नहीं हो गई । उस सरोवर के निकट चवन ऋषि तपस्या कर रहे हैं कहीं किसी ने भूलवश या जानबूझकर उनका अपमान तो नहीं किया । तब मंत्रियों ने अपने सारे सैनिकों से पूछताछ की उसके बाद उन्होंने राजा से कहा, राजन हमने सारे सैनिकों से पूछताछ कर ली है, किसी ने भी जानबूझकर या भूलवश महर्षि च्यवन का कोई अपमान नहीं किया है । जब राजकुमारी सुकन्या को यह बात पता चली तो वे अपने पिता के समीप आकर उनसे कहने लगे पिताश्री मैंने उस सरोवर के समीप एक मिट्टी का ढेर देखा था ,जो दीमार्को का घर था, उसमें दो छिद्र थे और उसमें से प्रकाश निकल रहा था । मैंने कौतूहलवश कांटे लेकर उसमें छेद कर दिया था। हो ना हो मेरी इस भूल के कारण ही आपके और सैनिकों के लिए यह संकट उत्पन्न हुआ है ।
पुत्री की यह बात सुनकर राजा ने सोचा, शायद मेरी पुत्री ने च्यवन मुनि का कोई अपकार कर दिया है । इसीलिए यह सारी घटनाएं घट रही है, मुझे इसी समय जाकर च्यवन मुनि से क्षमा मांगनी चाहिए । ऐसा सोच कर राजा शर्याति च्यवन मुनि के पास गए । राजा ने देखा आंखे फूटने के कारण मुनि बहुत पीड़ा भोग रहे थे राजा ने अपनी पुत्री के कार्य के लिए क्षमा मांगी।
च्यवन मुनि कहते हैं ,राजन मैं वृद्ध हो गया हूं अब तो मेरी आंखें भी चली गई, मेरा कोई भी सहायक नहीं है । अब मैं क्या करूं, तुम्हारे कारण मेरे सामने यह बहुत बड़ा कष्ट दाई समय उत्पन्न हो गया है । राजा कहते हैं महर्षि मैं आपकी सेवा में, मेरे बहुत सारे सैनिकों को रखूंगा जो आप की देखभाल करेंगे ।
राजा की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा, राजन यह ठीक बात है कि आप सैनिक रखेंगे । किंतु सैनिक मेरा प्रेम से ध्यान नही रखेंगे ,आपके निर्देशन के अधीन मेरा ख्याल रखने का कार्य करेंगे । आप मेरी सेवा में आपकी पुत्री को रख दीजिए वहां अच्छी तरह से मेरा ध्यान रखेगि ,यह मेरा विश्वास है । आपकी पुत्री द्वारा मेरी सेवा करने के कारण आपकी कोई निंदा नहीं करेगा । आपकी पुत्रिको प्राप्त करने के बाद मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी ,जिससे आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे । ऋषि की बात सुनकर राजा चिंता में पड़ गए, उस समय उन्होंने हां या ना कोई उत्तर नहीं दिया । मुनिको प्रणाम करके अपने घर लौट आए । राजा यह विचार कर रहे थे कि मेरी सुकोमल और इतनी सुंदर पुत्री को इस वृद्ध ऋषि को कैसे सौंपदु । यह ऋषि अंधा है देखने में कुरूप भी है और आयु होने के कारण मेरी पुत्री का ख्याल रखने और उसकी इच्छाओं की पूर्ति करने में असमर्थ है ।
राजा ने अपने सारे मंत्रियों को बुलवाया और उनसे पूछा , मंत्रीगणों इस समय मुझे क्या करना चाहिए, आप लोगों को क्या लगता है । क्या मुझे मेरी पुत्री को उस च्यवन ऋषि को सौंप देना चाहिए, या फिर हमें इस मल मूत्र त्यागने की व्याधि से ऐसे ही पीड़ा पाकर मृत्यु को प्राप्त हो जाना चाहिए । मंत्रियों ने कहा, राजन आपकी कन्या अति सुंदर और गुणवती है, आपको इसे ऐसे कुरूप और अंधे मुनि को नहीं सौपना चाहिए । राजा ने सोच विचार करके निश्चय कर लिया, जो भी हो मैं उसे भुगतने के लिए तैयार हूं । किंतु अपनी पुत्री को बूढ़े, कुरूप ऋषि को नहीं दूंगा । जब राजकुमारी को यह बात पता चली तो वह स्वयं ही उस सभा में आकर अपने पिता और मंत्रियों के समक्ष कहने लगी ।
पिताश्री, मैं च्यवन ऋषि की सेवा में जाने के लिए बिल्कुल तैयार हूं । यदि मेरी उनकी सेवा में जाने से आप लोग अपनी समस्या से मुक्त हो सकते हैं तो मेरा कर्तव्य है कि मैं उनके पास चली जाऊं । राजा शर्याति को भी अपनी पुत्री की यह बात जच गई और वे भी च्यवन मुनि के साथ अपनी पुत्री का विवाह कराने के लिए मान गए । एक शुभ मुहूर्त देखकर शर्याति ने अपनी पुत्री सुकन्या और च्यवन ऋषि का अपने महल में है विवाह करा दिया । विवाह के बाद च्यवन अति प्रसन्न हो गए और उनकी प्रसन्नता के कारण राजा शर्याति के सैनिकों और मंत्रीयों का जो मल मूत्र बंद हो गया था वह समस्या ठीक हो गई ।
जब राजा शर्याति अपनि पुत्री को मुनि के आश्रम छोड़ने गए तो उन्होंने पुत्री को बहुत सारे साड़ियां और गहने दीये । किंतु सुकन्या ने अपने पिता से कहा, पिताश्री अब मैं एक तपस्वी की पत्नी हूं इसीलिए मुझे यह वस्तुएं नहीं चाहिए , मुझे तपस्विनी के वस्त्र दीजिए । ऐसे पिता की दी हुई अमूल्य वस्तु वापस कर दी और एक तपस्विनी की भांति ही अपना जीवन व्यतीत करने लगी ।
इस तरह शर्याति की पुत्री सुकन्या का विवाह अंधे और बूढ़े च्यवन मुनि के साथ हुआ था ।
Categories: देवी भागवत पुराण
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