जानिए कैसे नारद मुनि ने राजकुमारी दमयंती से विवाह किया था

देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के श्रेष्ठ भक्तों में से एक है । वे सदा भ्रमण करते रहते हैं और भगवान विष्णु का नाम स्मरण भी करते रहते हैं । एक समय की बात है देवर्षि नारद ने अपने बहन के पुत्र ,पर्वत मुनि के साथ पृथ्वीका भ्रमण करने का निश्चय किया । वे दोनों स्वर्ग से  पृथ्वीलोक को चलें । स्वर्ग से निकलते वक्त दोनों ने एक दूसरे को या वचन दिया कि, जो भी उनके मन में आएगा ,चाहे वह विचार अच्छा हो या बुरा हो, बिना संकोच के मुक्त ह्रदय से एक दूसरे को बता देंगे ।

इस तरह निर्णय करके देवर्षि नारद और पर्वत मुनि दोनों ही, स्वेच्छा से भूमंडल पर भ्रमण करने लगे । कई महीने घूमने के बाद वर्षाऋतु का आगमन हुआ । वर्षाऋतु बहुत ही कष्ट दाई होती है और सदा बारिश होने के कारण घूमना फिरना कठिन होता है । इस ऋतु में नदियों का जल अपवित्र हो जाता है और उपयोग करने योग्य नहीं होता । आंधी और तूफान का भय सदा लगा रहता है । इसी कारणवश ,वर्षाऋतु में मुनिगण भ्रमण नहीं करते और चार महीनों तक किसी एक स्थान पर ही टिके रहते हैं । नारद और पर्वत मुनि ने भी वर्षाऋतु में एक जगह पर रुकने का निर्णय लिया । वे दोनों राजा संजय की नगरी में रुक गए ।

राजा संजय बहुत ही धर्मात्मा पुरुष थे , उन्होंने नारद मुनि और पर्वत मुनि का आदर पूर्वक सत्कार किया । उन दोनों को अपने भवन में रहने का स्थान दिया । वहां पर उनकी सेवा के लिए, अनेक दास दासियों को नियुक्त किया । राजा संजय की एक बहुत ही सुंदर और गुणवान पुत्री थी । संजय की पुत्री का नाम दमयंती था । राजकुमारी दमयंती भी इन दोनों मुनियों की सेवा में लग गई । वह दोनों मुनियों को सदा ही समान दृष्टि से देखती । दोनों की इच्छा के अनुरूप ही उन्हें भोजन प्रदान करती , मुनि जिस किसी भी वस्तु को मांगते, उन वस्तुओं को वह स्वयं ही उनके सामने प्रस्तुत कर देती ।

महर्षि नारद ,संगीत में प्रवीण थे , वे सदा ही सामवेद का गायन करते रहते थे और पर्वत मुनि सदा वेदों के पाठ में अपना समय व्यतीत करते थे । इस तरह दोनों मुनि , राजा संजय के नगर में वर्षाऋतु बिता रहे थे । संजय की पुत्री दमयंती अभी-अभी नव युवती हुई थी और महर्षि नारद के अनुपम संगीत को सुनकर वह उन पर मोहित हो गई । देवर्षि नारद भी उस राजकुमारी के मोह में पड़ गए और उससे विवाह करने का मन बना लिया । इसके बाद राजकुमारी ने , पर्वत मुनि और नारद मुनि में भेद करना आरंभ कर दिया । दोनों को भोजन और वस्तुएं देते समय वह नारद मुनिपे ज्यादा ध्यान देती ।

पर्वत मुनिने देखा, राजकुमारी दमयंती नारद पर ज्यादा ध्यान दे रही है ,मानो जैसे नारद उनके पति हो । तब  पर्वत मुनिने, नारद मुनि से पूछा , मित्र मैं क्या देख रहा हूं, सच बताओ, क्या यहां पर वही हो रहा है, जिसकी मैं आशंका कर रहा हूं । जहां से मैं देख रहा हूं ,राजकुमारी दमयंती तुम पर मोहित हो चुकी है ।  मुझे  यह लगता है कि तुम भी उससे विवाह करने का मन बना चुके हो । पर्वत मुनि की बातें सुनकर, नारद मुनि कहते हैं, मित्र यह बात सच है कि दमयंती मुझ पर मोहित हो चुकी है  और मैं भी उससे विवाह करना चाहता हूं ।

नारद मुनि की बातें सुनकर, पर्वत मुनि को क्रोध आ जाता है । वे  कहते हैं , स्वर्ग से निकलते वक्त,हमने  एक दूसरे को यह वचन दिया था कि, जो भी भावना हमारे मन में उत्पन्न होगी, उसे हम निसंकोच होकर एक दूसरे से अवश्य कह देंगे । तुमने यह बात मुझसे छुपाई है ,इसीलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि , तुम्हारा मुख बंदर जैसा बन जाये । पर्वत मुनि के शाप देते ही , नारायण भक्त नारदजी का मुख बंदर जैसा हो गया  ।उस वक्त नारदको भी क्रोध आगया और उन्होंने पर्वत मुनि को शाप दिया, पर्वत मुनि , मैं तुम्हें शाप देता हूं कि, तुम स्वर्ग जाने का अधिकार खो बैठो । आज के बाद तुम केवल पृथ्वी पर ही भ्रमण करते रहोगे । इसके बाद पर्वत मुनि, संजय का महल छोड़कर चले गए ।

जब राजकुमारी दमयंती , नारद मुनि को भोजन कराने आयी तब उन्होंने देखा कि ,नारद मुनि का मुख बंदर जैसा हो गया है । इससे वह बहुत ही दुखी हुई, राजकुमारी दमयंती को दुखी देखकर उसके मोह में पड़े नारद मुनि भी दुखी हो गए । किंतु इसके बाद राजकुमारी दमयंती के आचरण में कोई फर्क नहीं पड़ा और वह पहले की तरह ही नारद मुनि की सेवा करती रही । मुनि के प्रति उसका प्रेम पहले की तरह ही था । उसने सोचा मनुष्य के गुणों से प्रेम करना चाहिए, बल्कि शरीर से नहीं । मनुष्य की पहचान उसके गुणों से ही होती है ,रंग रूप केवल कुछ समय तक ही रहता है । किंतु जब मनुष्य के गुण खराब हो जाते हैं, तो चाहे वह दिखने में कितना भी सुंदर हो किसी को भी अच्छा नहीं लगता ।

 जब राजा संजय ने देखा, उनकी पुत्री युवती हो गई है, तब उसका विवाह करने का निर्णय लिया । उसके लिए योग्य वर ढूंढने की प्रक्रिया आरंभ कर दी । राजकुमारी को यह बात पता चली । राजकुमारी दमयंती ने अपनी एक ध्याय द्वारा राजा से कहलवाया की वे नारद मुनि से विवाह करना चाहती हैं । अपनी पुत्री का यह विचार सुनकर राजा संजय ने अपनी पत्नी से कहा, देवी तुम अपनी पुत्री के साथ बात करो ।  नारद तो बंदर के मुंह वाला है , मैं भला अपनी पुत्री को उसे कैसे दे सकता हूं । तुम उसे समझाओ कि, बहोत से भी अच्छे पुरुष उसे मिल जाएंगे ।

अपनी माता की बात सुनकर, राजकुमारी दमयंती ने कहा ,माता यह बात सच है कि देवर्षि नारद का मुख बंदर जैसा बन गया है । किंतु पहले उनका मुख अच्छा ही था , पर्वत मुनि ने मेरे ही कारण उन्हें शाप दे दिया था । इसीलिए उनका मुख बंदर जैसा हो गया है, इसमें उनकी कोई गलती नहीं है । संगीत में भगवान शिव के समान यह निपुण है, इसीलिए इनके जैसा अच्छा पति मुझे कहीं नहीं मिलेगा । मैं नारद मुनि से ही विवाह करूँगी, उनका मुख चाहे जैसा भी हो । अपनी पुत्री की बातें सुनकर, राजा संजय की पत्नी ने सारी बातें अपने पति को सुनादी । अपनी पुत्री को ना मानते हुए देखकर राजा संजय ने भी नारद मुनि से ही दमयंती का विवाह कराने का निर्णय ले लिया ।

एक शुभ मुहूर्त देखकर, राजा संजय ने नारद मुनि और दमयंती का विवाह करा दिया । इसके बाद नारद मुनि राजा के महल में रहने लगे । कुछ दिनों बाद पर्वत मुनि भ्रमण करते हुए ,नारद मुनि का  हालचाल पूछने के लिए फिर से राजा संजय के महल में आए । तब उन्होंने देखा , नारद मुनि बहुत ही दुखी है और दमयंती भी नारद के बंदर जैसा मुख हो जाने के कारण दुखी है । यह देखकर पर्वतमुनि को नारद और दमयंती पर करुणा आ गई ।  पहले दिए हुए अपने शाप को याद करके पर्वत मुनि ने कहा , मित्र नारद आप रिश्ते में मुझे मामा लगते हैं । इसीलिए मैं आपका और इन राजकुमारी दमयंती का दुख नहीं देख पा रहा हूं ।

पर्वत मुनि ने कहा, मैं अभी तुम्हें पहले दिए हुए शाप से मुक्त करता हूं । इसके बाद नारद मुनि का मुख पहले जैसा ही सुंदर होगया । जिसे देखकर दमयंती और नारद  दोनों ही बड़े प्रसन्न हुए । नारद मुनि ने भी अपने बहन के पुत्र पर्वत मुनि से कहा, मैंने भी क्रोधवश जो तुम्हें शाप दे दिया उसे वापस लेता हूं । तुम अब  फिर से स्वर्ग जाने के अधिकारी बन जाओगे । इस तरह नारद और पर्वत मुनि ने एक दूसरे को शाप से मुक्त कर दिया ।

इस तरह नारद मुनि और राजकुमारी दमयंती का विवाह हुआ था ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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