देवी भुवनेश्वरी की कृपा से इंद्र द्वारा वृत्रासुर के वध की कथा

वृत्रासुर नाम का एक दैत्य था , जिसे प्रजापति त्वष्ठा ने ,इंद्रा से आपने पुत्र त्रिशिरा की मृत्यु का बदला लेने के लिए उत्पन्न किया था । वृत्रासुर ने बृह्मा की तपस्या की और उनसे वरदान पाकर वह अति बलशाली और अभिमानी भी बन गया । उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाया था कि , लोहे अथवा काठसे बने हुए, सूखें एवं भीगे तथा इसके सिवा अन्य भी किसी प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे उसकी मृत्यु न हो सके । देवताओं के साथ युद्ध करके उसने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं ही इंद्र बनगया । स्वर्ग से निकलेहुए देवता अब पर्वतों की कन्दराओं में रहकर अपना जीवन व्यतीत करने लगे । स्वर्ग से निकल जाने के कारण अब उन्हें यज्ञ का भाग मिलना भी बंद होगया था ।

इसतरह वृत्रासुर से हारेहुए देवता , कैलाशपर्वतपर जहां भगवान शंकर ध्यान लगाकर बैठे थे वहां गए । देवताओं ने कहा , देवों के देव महादेव , वृत्रासुर ने युद्ध मे हमे परास्त कर दिया । कृपासिन्धो , करुणानिधे आप इस कष्टमय स्थिति से हमारी रक्षा कीजिये । वह वृत्रासुर बहोत ही बलवान है , उसने हमसे स्वर्ग छीन लिया और स्वयं ही इंद्र का कार्य कर रहा है । अब हम पर्वतोमें रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे है । आप उस वृत्रासुर का वध कर दीजिए और हमारा दुख दूर करने की कृपा कीजिये । देवताओंकी ऐसी विनती सुनकर महादेव बोले, अब हम सब लोगों को भगवान विष्णु के पास जाना चाहिए वही इस समस्या का समाधान दे सकते है । इस तरह कहकर , महादेव और ब्रह्मा सहित सारे देवता विष्णुलोक गये । 

भगवान विष्णु ,अंतर्यामी और सर्वशक्तिमान है । उनके पास सारी समस्याओं का हल होता है । देवताओं ने उनसे अपनी सारी समस्या कही और उनको इसीसे मुक्त होने का मार्ग भी पूछा । विष्णु जी कहते है , इस समय वृत्रासुर का समय बलवान है इसलिए उसे मारना कठिन है । शत्रु पे साम , दाम , दंड, भेद इनमे से किसी एक उपाय से अवश्य विजय प्राप्त करने की चेष्ठा करनी चाहिए । इस समय देवराज इंद्र को उससे मित्रता कर लेनी चाहिए , क्यों कि जब तक उसकी आयु समाप्त नही होती उसे नही मारा जा सकता । आयु समाप्त होकर ,मृतु का समय आने पर उसकी मृत्यु देवराज इंद्र के हाथों अवश्य होगी ।

इसतरह कहकर विष्णु जी ने देवताओं से कहा , वृत्रासुर से अपनी मित्रता स्थापित करने के लिए तुम लोगों को देवी योगमाया की शरण लेनी चाहिए । वे देवी ही समस्त जीवों की बुद्धि अधिस्ठात्री है । योगमाया वृत्रासुर को तुमरे अनुकुल बना देंगी । इसीलिए तुम लोग अब उनकी स्तुति कर उन्हें प्रसन्न करो , जिसके फलस्वरूप वे तुमारी सहायता अवश्य करेंगी । विष्णु जी के यह वचन सुनकर सारे देवताओं ने देवी योगमाया की स्तुति की । देवता बोले देवी , पूर्वकाल में तुमने महिषासुर आदि दानवों से हमारी रक्षा की थी । इस समय वृत्रासुर नाम का दानव हमे बहोत सता रहा है । उसने हमें स्वर्ग से बाहर निकाल दिया है इसीलिए हम पर्वतों की गुफाओं में रहकर अपना जीवन बिता रहे है । आप बुद्धि की अधिस्ठात्री है । आप वृत्रासुर की बुद्धि हमारे अनुकूल करके उनसे हमारी मित्रता करा दीजिये ।

देवताओं के इसतरह स्तुति करने पर देवी प्रकट होकर ,उन्हे सहायता करने का वरदान देती है । इसके बाद कुछ प्रधान देवता वृत्रासुर के पास जाकर , इंद्र से उसकी मित्रता करा देते है । अब इंद्र और वृत्रासुर में शांति का समझौता हो जाता है और दोनों अच्छे मित्र बन जाते हैं । दोनो एक साथ ही उपवनों में घूमने लगे , एक साथ ही अनेक स्थानों में विहार करने लगे । वृत्रासुर , इंद्र को अपना सच्चा मित्र मानकर उसपर विश्वास कर बैठा था , किन्तु इंद्र केवल ऊपरी मन से ही दिखावा कर रहे थे । 

वृत्रासुर के पिता त्वष्ठा ने अपने पुत्र को बुलाकर कहा, पुत्र एक बार जिससे शत्रुता होजाये ऐसे मित्र पर कभी पूर्ण रूप से भरोसा नही करना चाहिए । इंद्र परिस्थिति का लाभ उठाने में बहोत ही कुशल है । वो तुम्हें समय देख कर हानि पहुंचा सकता है । इसीलिए तुम्हें उससे सावधान रहना चाहिए । पूरी तरह से उसपे भरोसा नही करना चाहिए । उसने पूर्व में भी तुम्हरे भाई विश्वरूप को धोके से मार दिया था । मेरा वह पुत्र विश्वरूप बहोत ही धार्मिक था और समस्त वेदों का ज्ञाता था । फिर भी बिना कोई चूक किये इंद्र ने उसे मार दिया था । इसीलिए तुम उसपे विश्वास मत करो । 

एक दिन की बात है इंद्र और वृत्रासुर समुद्र के किनारे विहार कर रहे थे । उस समय संध्या का समय था और समुद्र के तट पर कोई भी नही था । तब इंद्र की बुद्धि भ्रष्ट होगयी और वह सोचने लगा कि मैं इस समय वृत्रासुर की हत्या करदूं । वृत्रासुर इंद्र पर पूरी तरह से विश्वास करता था इसीलिए ओ नोश्चिन्त था । उसी समय इंद्र ने मन ही मन देवी आदिशक्ति की स्तुति की , की वे वृत्रासुर का अंत करने के लिए वे उसकी सहायता करें ।

समुद्र के तट पर उस समय झाग उत्पन्न होगया था । जो ना लोहे का था ना ही काठसे ही बना था । झाग को ना ही सूखा माना जाता है ना ही भीगा । इंद्र ने उस झाग में अपने वज्र को छुपा दिया था और देवी ने उसमे अपनी शक्ति संचार करदी थी । इंद्र ने वृत्रासुर पे उस झाग से छुपे हुए वज्र से प्रहार कर दिया ।

इंद्र के उस प्रहार से वृत्रससुर का सर कटगया और उसका शरीर धरती पर पड़ गया । वृत्रासुर के प्राण चले गए ये सुनकर त्वष्ठा को बहोत दुख हुआ । त्वष्ठा ने इंद्र को शाप दिया कि उन्हें इस कार्य का परिणाम अवश्य ही भोगना पड़ेगा । त्वष्ठा ने अपने पुत्र की चिता को आग दी और स्वयं सुमेरु पर्वत पर जेक तपस्या में लीन होगये । इंद्र को वृत्रासुर की हत्या से ब्रह्म हत्या का पाप लगा था । उसने मित्र के साथ विश्वास घात किया था इसीलिए उसे कही भी चैन नही आता था और इंद्र मानसरोवर में एक कमल पुष्प की डंडी में जाकर छीप गया था ।

देवी ने इस तरह इंद्र के द्वारा वृत्रासुर का अंत कराया था । इसीलिए संसार मे ये बात फैल गई कि इंद्र ने वृत्रासुर का अंत किया है । परंतु वास्तव में देवी की शक्ति से ही उसका अंत हुआ था । इंद्र तो केवल निमित्त मात्र थे ।



Categories: देवी भागवत पुराण

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