मधु – कैटभ वध

स्वरोचिश  नाम के मन्वंतर में सुरथ नाम के एक राजा रहते थे |  राजा अपने प्रजा का बच्चों की तरह पालन करते थे, इनकी दुश्मनी कोलविध्वंसि नाम के क्षत्रियों से हो गई । कुछ ही दिनों में राजा का इनके साथ युद्ध हुआ , राजा की सेना संख्या में कोलविध्वंसियों से ज्यादा होने के बावजूद राजा सूरत कोलविध्वंसियों से हार गए और सिर्फ अपने ही राजधानी के राजा होकर रहने लगे, लेकिन यहां भी इनके दुष्ट मंत्रियों ने राजा के हाथ से राजधानी का कारोबार और सारी धन-संपत्ति हथिया ली । इस बात से राजा बहुत दुखी हुए और एक दिन शिकार खेलने के बहाने एक घोड़े पर चढ़कर  अपने  पत्नी और पुत्र को राजधानी में ही छोड़कर घने जंगल में चले गए |

 घने जंगल में उन्हें मेधा ऋषि का आश्रम मिला, वहां पर मेधा मुनि ने उनका आदर सत्कार किया और राजा सूरत मेधा मुनि के आश्रम पर रहने लगे । वहां रहते हुए उनके मन में यह विचार आते थे की मैंने इतनी मेहनत से जो राज्य खड़ा किया था वह आज किसी दूसरे के वश में है | जो लोग मेरे पीछे पीछे चलते थे न जाने आज उन दुरात्मा मंत्रियों के पीछे चलते होंगे , मेरी मेहनत से कमाया हुआ धन और संपत्ति न जाने यह दुरात्मा मंत्री और दूसरे राजा कैसे लूटा रहे होंगे |  ऐसे विचार करते हुए सूरत राजा मेधा मुनि के आश्रम पर अपना जीवन बिता रहे थे ।

  एक दिन राजा सुरथ की भेंट समाधि नाम के एक वैश्य से हुई, उससे मिलने के बाद राजा ने  उसके बारे में जानने के लिए पूछा कि भाई तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो | उस वैश्य ने  कहां मेरा नाम समाधि है, मैं  बहुत ही धनवान कुल में  उत्पन्न हुआ हूं मेरे   पत्नी और बच्चों ने धन के लालच में आकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया है इसीलिए मैं इस जंगल में आकर रह रहा हूं |  मुझे हमेशा इसी बात की चिंता रहती है की मेरे पत्नी और बच्चे सुख से होंगे या नहीं होंगे, वे लोग क्या कर रहे होंगे, उनका जीवन कैसा चल रहा होगा । मुझे पता है यह लोग बुरे हैं, फिर भी न जाने मेरा मन उन्हीं के बारे में विचार कर रहा है, मैं जानता हूं कि  इनमें दोष है फिर भी मैं अपने मन को इनके बारे में विचार करने से रोक नहीं पा रहा हूं | 

समाधि वैश्य से बातें करने के बाद राजा  राजा ने कहा की  जो लोग तुम्हारी थोड़ी भी चिंता नहीं करते उनके  लिए तुम्हारे मन में ऐसा प्रेम है यह बड़े आश्चर्य की बात है | राजा ने भी उस  वैश्य को अपनी पूरी कहानी सुनाई, यह सुनकर उस वैश्य ने कहा कि जैसा  मेरे साथ हो रहा है वैसा ही तुम्हारे साथ भी हो रहा है,  जिन लोगों के मन में मेरे लिए प्रेम नहीं है और  जो राज्य तुम्हारा नहीं है, उन्हीं के बारे में यह जानते हुए   भी  की   यह हमारे नहीं है, हम इनके बारे में विचार करना नहीं छोड़ पा रहे हैं |  तब दोनों ने अपनी इस समस्या का समाधान पूछने के लिए मेघा ऋषि के पास जाने का निर्णय किया और दोनों ही उनके पास जाकर विनम्र भाव से प्रश्न करने लगे | 

 मुनि श्रेष्ठ  मैं आपसे एकबात पूछना चाहता हूं, मुझे पता है कि राज्य अब मेरा नहीं रहा फिर भी राज्य के लिए मेरे मन में अभी भी आकर्षण है , इस वैश्य की भी यही हालत है इसके घर वालों ने धन के लालच में आकर इसे घर से बाहर निकाल दिया फिर भी यह उनके ही भलाई के बारे में सोच रहा है जिसमें दोष है उन्हीं वस्तुओं की ओर  मूर्ख लोगों की तरह हमारा मन क्यों आकर्षित हो रहा है कृपया हमें यह बताने की कृपा कीजिए ।

 ऋषि कहते हैं महाराज विषय  मार्ग का  ज्ञान सभी  जीवो को है , इसी प्रकार विषय भी सबके लिए अलग-अलग है । कुछ प्राणी दिन में नहीं देखते और दूसरे रात में नहीं देखते, तथा कुछ ऐसे जीव हैं जो दिन और रात्रि में बराबर ही देखते हैं । यह ठीक है कि मनुष्य समझदार है किंतु केवल वही ऐसे नहीं होते पशु पक्षी आदि सभी प्राणी समझदार होते हैं मनुष्यों की  समझ भी वैसे ही होती है जैसे उन पशु और पक्षियों की होती है | समझ होते हुए भी इन पक्षियों को तो देखो, यह खुद भूखे रहते हुए भी   मोह में पड़कर अपने बच्चों की  चोंच में अन्न का दाना डालते रहते हैं |  मनुष्य भी कुछ ऐसा ही करते हैं , यह सोच कर कि बुढ़ापे में बच्चे हमारा ख्याल रखेंगे उनके लिए दिन रात मेहनत करते रहते हैं और अपने पुत्रों से सेवा की अभिलाषा करते हैं । यूं तो यह सभी नासमझ नहीं है , लेकिन महामाया के प्रभाव से ममता के भंवर  में गोते लगा रहे हैं, इसीलिए इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए | 

महाराज यह भगवान विष्णु की योग माया ही है जो संपूर्ण जगत के जीवों को  मोहित कर रही है , यही देवी जगत की सृष्टि करती हैं और ज्ञानियों के मन को भी मोहित कर देती है | यही वह देवी है जो संसार बंधन से मुक्त करती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है |

राजा ने पूछा मुनि श्रेष्ठ यह देवी कौन है इनकी उत्पत्ति कैसे हुई और यह देवी कहां से आई है । यह पूछने पर मुनि ने कहा राजन वास्तव में तो यह देवी नित्यस्वरूपा ही है । संपूर्ण जगत उन्हीं का रूप है और  इन्होंने ही संपूर्ण विश्व को व्याप्त कर रखा है | यूं तो यह देवी अव्यक्ता है किंतु जब देवताओं का कार्य करने के लिए स्वयं को व्यक्त करती है, तभी प्रकट हुई कहलाती है | 

 अब मैं तुम्हें  वह कहानी सुनाता हूं, जब देवी ने मधु और कैटभ नाम के राक्षसों को मारने के लिए भगवान ब्रह्मा और विष्णु की स्तुति करने पर प्रकट हुई थी | कल्प के अंत में जब भगवान विष्णु सारी सृष्टि को अपने में समेट कर शेषनाग की शैय्या पर सो रहे थे , तब उनके कान के मल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस उत्पन्न हुए |  यह दोनों राक्षस ब्रह्मा जी को देखकर उन्हें मारने के लिए तैयार हो गए | भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल पर विराजमान ब्रह्मा जी ने  जब इन दो राक्षसों को अपने और आते देखा तो वह सहायता के लिए भगवान विष्णु की तरफ देखने पर , वे उन्हें सोए हुए दिखाई दिए तब भगवान विष्णु के नेत्रों में निद्रा रूप से विराजमान भगवती योगनिद्रा की ब्रह्मा जी ने  प्रार्थना की | ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर देवी योगनिद्रा भगवान विष्णु के शरीर से अलग होकर ब्रह्मा जी के सामने खड़ी हो गई | योग निद्रा से मुक्त होकर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी की  प्रार्थना पर मधु और  कैटभ से लड़ने के लिए तैयार हो गए |

 देखते ही देखते भगवान विष्णु और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध शुरू हो गया | यह युद्ध 5000 वर्षों तक चलता रहा, फिर भी भगवान विष्णु इन दोनों राक्षसों को नहीं मार सके | तब उन्होंने अपनी अंतर्दृष्टि से जाना कि इन दोनों को देवी योगनिद्रा की सहायता से मारा जा सकता है, तब उन्होंने देवी योगनिद्रा की प्रार्थना की कि वे उन्हें इस युद्ध में राक्षसों के हराने में सहायता करें | विष्णु जी की प्रार्थना सुनकर  देवी ने दोनों राक्षसों को मोह में डाल दिया | तब भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसों की प्रशंसा करते हुए उनसे वर मांगने के लिए कहा । विष्णु जी की यह बात सुनकर मोह में पड़े हुए राक्षसों ने कहा कि तुम क्या हमें वर दोगे हम ही तुम्हें और देंगे , जो चाहे वह मांग लो । राक्षसों की यह बात सुनकर विष्णु जी ने प्रसन्नता पूर्वक उनसे  कहा कि यहां दूसरे  किसी वर से क्या लाभ होगा अगर तुम मुझे वर ही देना चाहते हो, तो यह वर दो कि मेरे हाथों से तुम दोनों की मृत्यु हो जाए |

 विष्णु का यह कथन सुनकर दोनों राक्षसों को यह आभास हो गया कि उन दोनों ने बड़ी भूल कर दी है । जब उन्होंने चारों ओर जल ही जल देखा, तो वह विष्णु से कहने लगे कि जहां जल नहीं हो वही तुम हमें मार दो, तब भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारण किया और दोनों राक्षसों को अपनी जन्घा पर रख चक्र से उनके सर धड़ से अलग कर दिए |

 इस प्रकार देवी ने  ब्रह्मा जी की स्तुति करने पर स्वयं प्रकट हो कर मधु और कैटभ नाम के दैत्यों को मारने के लिए भगवान विष्णु की सहायता की थी | 



Categories: दुर्गा देवी की कथाएँ

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